Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमंतो सुहहेउ; अंति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-२१. पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: सिरिमंतोत्ति यत्तदो; अंति: कल्याण० शिष्यः प्रथम. ५९२४५. (+) दशवकालिकसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १५०५, भाद्रपद, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. जंघरालनगर, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११४३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: धर्म उत्कृष्टम्मंग, अंति: ब्रवीमि पूर्ववत्. ५९२४६. (+) संघयणीसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८८०, कार्तिक शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले.पं. परमसुख; राज्ये आ. जिनोदयसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१११२) कर दुख अंगुलि नेन दुख, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२९३, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अर्हदादीन् नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५९२४७. (+) जीवविचार प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-१६(१ से १६)=१८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५,११४३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा १५ से है.) जीवविचार प्रकरण-टीका, पा. रत्नाकर, सं., गद्य, वि. १६१०, आदि: (-); अंति: तस्मादित्यक्षरार्थः. ५९२४८. दृष्टांतशतक, संपूर्ण, वि. १८५३, पौष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रले.पं. विवेकसागर; पठ.मु. नथु (गुरु पं. विवेकसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ६४३९). दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभं सदा; अंति: धीरैर्विशोध्यं वरै, श्लोक-१०२. ५९२४९. सिद्धांतगाथा संग्रह व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १५-१७X५५). १. पे. नाम. सिद्धांतगाथा संग्रह, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: भावेणघोसिरे, गाथा-७२. २.पे. नाम. सिद्धांतविचार संग्रह, पृ. ३अ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ५९२५०. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१२, १२४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम व्याख्यान अपूर्ण मात्र कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: तीणइ कालि तीणइ समइ; अंति: (-). ५९२५१. वंगचूलिका प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, दे., (२७४१२, ५४२१). वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिब्भरनमियसुरवर; अंति: दढचित्तोह हवइ दियहं. वंगचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिना भरसमुह तेणे; अंति: चित प्रतितवंत होज्यो. ५९२५२. आगमिक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४११.५, ५४२६-३५). आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: सालवणो पडतोवि अप्प; अंति: (-), (पू.वि. आयु उदाहरण पाठ अपूर्ण तक For Private and Personal Use Only

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