Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्रीमहावीराय नमः॥ ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ ५९२३६. (+) दशाश्रुतस्कंध सह विषमपद टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, १३४३७). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: उवदंसेति त्ति बेमि, दशा-१०. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-विषमपद टिप्पण", मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५९२३७. (+) संघयणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४११.५, ६x४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई १; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३५२. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ , मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत; अंति: प्रवर्तइ ता सीम नंदउ. ५९२३८. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(१)=२९, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ११४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-१ गाथा-११ अपूर्ण से अध्ययन-१७ गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-पर्याय टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ५९२३९. (+) पंचकल्पसूत्र का भाष्य, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१(३)=२६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११,१५४४८-५१). पंचकल्पसूत्र-भाष्य, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: वंदामि भद्दबाहु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७६ ___अपूर्ण तक व गाथा-११३ अपूर्ण से १०८९ अपूर्ण तक है.) ५९२४०. (+) दशवकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५४-२९(२,१२ से १४,१७ से १९,२१ से ३४,३७ से ४०,४३,५१ से ५३)=२५, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, ५४३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है, विनयसमाधि अध्ययन, उद्देश-२ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनप्रणित; अंति: (-). ५९२४१. (#) क्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२(१ से २)=२२, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७४११.५, ५४२९). बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, गाथा-१८८, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ५९२४२. आगमिक विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-८(१ से २,१७,१९ से २१,२९ से ३०)=२३, जैदे., (२६.५४११, ३६४१६-२०). आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: ए परोक्षं श्रुतज्ञान. ५९२४३. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४११, ६x४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान २ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते काल; अंति: (-). ५९२४४. (+) पट्टावलीसह टीका, संपूर्ण, वि. १९६६, आषाढ़ शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. मुंबइ (लालबाग), पठ.पं. हरखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२६४१२, १४४४१). For Private and Personal Use Only

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