Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 13
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि: पंचरूप, अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीनेमि क० भगवंत अंतिः टावला सावधान छड़ ५२०६०. (#) स्तवन, पद व लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. ५, ले. स्थल. वडगाम, प्रले. मु. मानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीचिंतामणिपार्श्वनाथ प्रसादात्, अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, वे (२४४१०.५, १२-१५X३३). १. पे. नाम. जिनवाणी माहात्म्य स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगम स्तवन, ग. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुत अतिहि भलो संघ, अंति: खिमाकल्याण सदा पावै, गाथा- ७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. चिदानंद, पुहिं, पद्म, आदि: जग सपनेकी माया समज, अंतिः चिदानंद० नेह सवाया, गाथा-५. ३. पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. १अ २अ संपूर्ण. मु. जिनदास, रा. पद्य वि. १७वी आदि मनसुन रे तेरी सफल अंतिः जिनदास मन नही मार्वे, गाथा ५. o 1 ४. पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. सुमतिकुमति लावणी, जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तु कुमति कलसी रे नार; अति: बात खोटी मत खेडे, गाथा-४. ५. पे नाम, प्रस्ताविक गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण, जैनगाथा संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५२०६१. (४) नेमिनाथ रास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै, (२५x११.५ १२४४०). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सारद पत्र पणमी करी, अंतिः पुनिरतन० संघ प्रसंन, गावा- ६५. ५२०६२. (#) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, ११X३६). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंति: पातु फणींद्रपत्नी, श्लोक-२७. ५२०६३ (४) बुधि रास, संपूर्ण वि. १८६३ श्रावण अधिकमास शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. आहोरनयर, प्र. मु. शिवचंद (पुनमगच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., ( २१४९.५, १२x२७-३०). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवी अंबाह पंच, अंतिः सालिभद्र०टलब कलेस तो, गाथा-६३. ५२०६४. हरीयाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७२, चैत्र कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. मेंडतानगर, प्रले. पं. नायसागर, पठ. पं. लाभसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१०.५, ६x४१). आदिजिन हरियाली, मा.गु., पद्य, आदि; एक अचंभो उपनो कहो जी, अंतिः सुणो भविक सहु संत, गाथा- १०. आदिजिन हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुरषो आउखो हवडानै सम, अंति: रावको तुमैपिण सांभलो. ५२०६५. (४) नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, वे., (२५.५४१२, १५X३४). नेमिजिन स्तवन, मु. खोडी, मा.गु., पद्य, आदि: काम आया काम की; अंति: खोडी० रथ पाछा वीलो ए, गाथा - २१. ५२०६६. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, वैशाख कृष्ण, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले. स्थल. नगोर, प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१२, १७४४०). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आदि जिणंद आज; अंति: ज्यो छो तुम धाणी रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. मुरागुण वर्णन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only

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