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खंड ९ से १२ के विक
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कैलास श्रुतसागर म
धन्यधरा व पुण्यतमा बंगभूमि के जाह्नवीतट पर अवस्थित सुप्रसिद्ध अजीमगंज-मुर्शिदाबाद के धर्मनिष्ठ, संस्कारसमृद्ध, श्री-संपन्न एवं श्रीसंघ सेवापरायण श्रीबोथरा जैनकुल की उज्ज्वल परंपरा में स्वनामधन्य पितामह श्रीमान प्रसन्नचन्द्रजी बोथरा, धर्मनिष्ठ पिता श्री गंभीरचंदजी बोथरा, उनके ज्येष्ठ बंधुद्वय श्री परिचंदजी एवं श्री श्रीचन्दजी बोथरा जैसे जाज्वल्यमान् नक्षत्रसम महानुभावों ने अपना जीवन सफल और यशस्वी बनाया. उसी गौरवमयी परंपरा में देवगुरुश्रुतभक्तिकारक श्री रविचन्द्रजी बोथरा एवं उनकी धर्मपत्नि सौभाग्यशालिनी श्रीमती कुमुदकुमारी ने भी अपने जीवन में अनेकविध शासन प्रभावना व धर्मप्रभावना के कार्य करके वीतराग परमात्मा के श्रद्धासम्पन्न एवं समर्पित सन्निष्ठ श्रावक-आविका के रूप में अपने-अपने नाम को यथार्थ करते हुए स्वजीवन को सही अर्थ में सफल बनाया है, उनके कार्य वास्तव में श्रीसंघ व समाज के लिये कल्याणकारी है.
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सुकृतसागर की झलक 76 तृतीय तीर्थकर श्री संभवनाथ परमात्मा के गृहजिनालय का निर्माण, पोरुर (चेन्नई) में मूलनायक श्री मुनिसुव्रतस्वामी की प्रतिष्ठा. विशाखापत्तनम् (आन्ध्रप्रदेश) स्थित श्रीसंघमंदिरजी में कायमी ध्वजारोहण का लाभ एवं अजीमगंज से लायी गयी नयनरम्य व मनोहारी पार्श्वनाथ प्रभु की प्राचीन प्रतिमा की प्रतिष्ठा का भी लाभ प्राप्त किया. वहीं पर दादावाड़ी के प्रांगण में आपने अपनी मातामही-नानीमां परम सुश्राविका श्रीमती ताराबेन कांकरिया के साथ मिलकर समवसरण मंदिर की संरचना का लाभ लिया. कुंडलपुरतीर्थ (बिहार में) श्री अजितनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की. इस्वी सन् १९९३ में पूज्य गुरुदेव राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में मधुपुरीतीर्थ (महुड़ी) से तारंगातीर्थ का छरी पालित पदयात्रा संघ का सुंदर आयोजन किया. पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा से कोबातीर्थ के मूलनायक चरम तीर्थपति श्री महावीरस्वामी परमात्मा को रत्नजड़ित स्वर्णहार अर्पण का धन्यतम लाभ लिया. कोबा तीर्थ में ही आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में तृतीय तल पर स्थित आर्य रक्षितसूरि शोधसागर (कम्प्यूटर कक्ष) का सुंदर एवं अनुमोदनीय लाभ लिया है. श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में नूतन श्राविका उपाश्रय का भव्य एवं यशस्वी लाभ लिया है. पूज्य आचार्यश्री की ही पावन निश्रा में उज्जैन से नागेश्वर तीर्थ का ऐतिहासिक छरी पालित संघ का भव्य आयोजन कार्य आपश्री ने पूज्य गुरुदेवश्री की प्रेरणा पाकर जीवदया, साधर्मिकभक्ति, अनुकंपा,जीर्णचैत्योद्धार, श्रुतसंरक्षण इत्यादि बहुविध सुकृतों की सुवास से अपने जीवन को सार्थक किया.
आपश्री ने जीवन का सही मर्म समझकर अंतिम साँस तक धर्म को हृदयस्थ किया. अपने परिवार को सद्धर्म-सदगुरु व सुसंस्कार की संपत्ति विरासत में देते हुए धर्मवैभव को समृद्ध किया. परिवार को समर्पण-सरलता एवं सदाचार के पथ पर चलने का अनमोल शिक्षापाठ देकर धर्मरसिक बनाया. जिनशासन के प्रति श्रद्धान्वित एवं पूज्य गुरुदेव के प्रति समर्पित आपश्री के जीवन का प्रत्येक कार्य परिवार और श्रीसंघ को सदैव नया संदेश, नई शक्ति व नई प्रेरणा देता है. आज भी आपके द्वारा बतलाए गए इस उज्ज्वल पथ पर चलते हुए आपके दोनों सुपुत्र श्री वीरचंदजी एवं श्री अजितचंदजी बोथरा सपरिवार श्री जिनशासन की सेवा और धर्मप्रभावना के अनेक सुकृत करने के लिए अग्रसर और उत्सुक है.
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