Book Title: Kahavali Pratham Paricched Part 02 Author(s): Kalyankirtivijay Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 9
________________ VIII सम्पादकीयम् ग्रन्थपरिचय आचार्य श्रीभद्रेश्वरसूरिविरचित कहावली नामक आ ग्रन्थमां भगवान् श्रीऋषभदेवथी प्रारम्भी सर्वे २४ तीर्थंकरो, १२ चक्रवर्तीओ, ९-९ वासुदेव - प्रतिवासुदेव - बलदेव, नारद, अन्य अनेक प्रसिद्ध - अप्रसिद्ध महापुरुषो राजाओ, श्रावको, महासतीओ वगेरेनां तथा भगवान् महावीरस्वामीना शासनमां थएल, आचार्य श्रीहरिभद्रसूरिजी पर्यन्तना, अनेक शासनप्रभावक गुरुभगवन्तोनां चरितो कथास्वरूपे आलेखायेलां छे. मुख्यत्वे आ सङ्कलन ग्रन्थ छे. आवश्यक चूर्णि, उत्तराध्ययन चूर्णि, दशवैकालिकचूर्णि, निशीथ चूर्णि, भगवतीसूत्र, ज्ञाताधर्मकथा सूत्र, उपासकदशा, अंतगडदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, निरयावलिका, औपपातिकसूत्र, वसुदेवहिण्डी, पउमचरिय, चउप्पन्नमहापुरिसचरिय, संखित्ततरंगवई कहा वगेरे अनेक आगमो तथा प्राचीन कथाग्रन्थोमांथी कथाओ / कथाखण्डो लई, क्यांक शब्दश: उद्धरी तो क्यांक पोतानी भाषामां गद्य वा पद्यमां ढाळी, आलङ्कारिक वर्णनो तथा चमत्कारपूर्ण भाषा - खण्डो सर्वथा टाळीने अत्यन्त सरल प्राकृतभाषामां आ ग्रन्थ रचायो छे. तेमां पण देशी शब्दो - धातुओ तथा जूनी गुजराती तरफ ढलता शब्दो अहीं प्रचुरपणे प्रयोजाया छे. आ ग्रन्थना प्रथम परिच्छेदनो प्रथम खण्ड आजथी चार वर्षो पूर्वे वि.सं. २०६८मां प्रकाशित कर्यो हतो. मां श्रीआदिनाथथी आरम्भी श्रीपार्श्वनाथ भगवानना चरितान्तर्गत बन्धुदत्तनी अधूरी कथा पर्यन्तनी कथाओ प्रकाशित थई हती. अहीं, प्रस्तुत पुस्तकमां, प्रथम परिच्छेदनो बीजो खण्ड, जेमां बन्धुदत्तनी शेष कथा, श्रीमहावीरस्वामीनुं सम्पूर्ण चरित, तेमनी साथै सङ्कळायेला अनेक गणधरो, साधु-साध्वीओ, श्रावक-श्राविकाओ, राजा-राणीओ, देवो तथा तेमना शासनमां थई गएल आचार्य श्रीभवविरहसूरि (श्रीहरिभद्रसूरिजी ) पर्यन्तना अनेक महापुरुषोनां चरितो आलेखायेलां छे ते, प्रकाशित थई रह्यो छे. बीजो परिच्छेद के मां आचार्य श्रीहरिभद्रसूरिजी पछीना अनेक महापुरुषोनां चरितो होवानी सम्भावना छे, अद्यपर्यन्त कोई प्रति उपलब्ध थई नथी. अन्यान्य दृष्टिकोणथी विचारीए तो, एवं पण सम्भवी शके के आचार्य श्रीभद्रेश्वरसूरिजीए बीजो परिच्छेद रचवानी भावना व्यक्त करी, परन्तु कोई विषम संयोगोमां तेनी रचना थई जन शकी होय ! अने तेथी ते ग्रन्थनी एक पण प्रति अथवा अन्य ग्रन्थोमां तेना उल्लेखो जोवा न मळ्या होय.Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 378