Book Title: Joindu krut Amrutashiti
Author(s): Sudip Jain
Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf

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Page 4
________________ जोइन्दुकृतअमृताशीति ध्वनति', बिन्दुदेव, योगनिद्रा, नालिद्वार, हृदयकमलगर्भ,५, श्रवणयुगलमूलाकाश' तथा सदद्वारसार आदि। इन शब्दों का उन्होंने प्रयोग जैन रहस्यवादी या आध्यात्मिक अर्थों व ध्यान की प्रक्रिया के सन्दर्भो में किया है। इसमें कुछ छन्द तो ऐसे हैं, जो कि विशुद्ध योगशास्त्रीय व रहस्यवादी धारा का चरमोत्कर्ष प्रस्तुत करते हैं।' __ डॉ० नेमिचन्द जैन शास्त्री, ज्योतिषाचार्य स्वीकारते हैं कि 'जैन रहस्यवाद का निरूपण रहस्यवाद के रूप में सर्वप्रथम इन्हीं (जोइन्दु) से आरम्भ होता है। यों तो कुन्दकुन्द, वट्टकेर और शिवार्य की रचनाओं में भी रहस्यवाद के तत्त्व विद्यमान हैं, पर यथार्थतः रहस्यवाद का रूप जोइन्दु की रचनाओं में ही प्राप्त होता है। ...." इस प्रकार जोइन्दु..... ऐसे सर्वप्रथम कवि हैं जिन्होंने क्रान्तिकारी विचारों के साथ आत्मिक रहस्यवाद की प्रतिष्ठा कर मोक्ष का मार्ग बतलाया है।" __इस प्रकार निष्कर्षतः तीन बिन्दु विचारार्थ प्रस्तुत होते हैं - 1. योगीन्द्र या जोइन्दु छठी शताब्दी ई० के कवि नही हैं। मेरे मन्तव्य अनुसार अकलंक व विद्यानन्दी का उल्लेख करने से इन्हें आठवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध व नवमी शताब्दी के पूर्वाद्ध का कवि होना चाहिए। 2. जोइन्द्र की संस्कृत भाषामयी 'अमताशीति' व प्राकृतभाषामयी 'निजात्माष्टक' कृतियों के प्रामाणिक रूप से मिल जाने के बाद इन्हें मात्र अपभ्रंश भाषा का महाकवि कहना उचित नहीं, यह अपभ्रंश के महाकवि तो हैं ही, परन्तु प्राकृत और संस्कृत पर भी आपका समान अधिकार सिद्ध होता है। सिद्धान्त चक्रवर्ती नयकीर्तिदेव के शिष्य व अनेक ग्रन्थों के विश्रुत कन्नड़ टीकाकार मुनि बालचन्द्र के आधार पर 'अमृताशीति' व 'निजात्माष्टक'- इन दोनों ग्रन्थों को हम 'परमात्म प्रकाश' व 'योगसार' के समान ही आचार्य जोइन्दु की प्रामाणिक कृतियाँ मान सकते हैं। - व्याख्याता, जैन दर्शन विभाग लालबहादुर शास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्ली-११००१६ 1. अमृताशीति, 2. वही, छन्द 38 3. वही, छन्द 39 4. वही, छन्द 40 5. वही, छन्द 43 6. वही, छन्द 45 7. वही, छन्द 45 8. वही, छन्द 46, 48, 73 / 9. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा ( खण्ड 2) पृ० 253-254 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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