Book Title: Jo Kriyavan hai wahi Vidwan Hai
Author(s): Hastimal Acharya
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

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________________ • ३५४ · आज समाज में जो स्थिति है, उसमें धन की प्रमुखता है । पर ऐसा नहीं है कि समाज में विद्वान् नहीं हैं या समाज में विद्वत्ता के प्रति स्नेह और सम्मान का भाव नहीं है । समाज में विद्वानों के होते हुए भी धनिकों श्रीर श्रमिकों की भाँति उनका अपना कोई एक मंच नहीं था । अखिल भारतीय जैन विद्वत् परिषद् की स्थापना से श्वेताम्बर जैन समाज की यह कमी पूरी हुई है । विद्वानों यह कर्तव्य है कि वे अपनी बुद्धि का प्रयोग स्व-पर के कल्याण व आध्यात्मिक दिशा में करें तथा लोग यह समझें कि विद्वान् समाज के लिए उपयोगी हैं । समाज के साथ जैसे धनिकों का दायित्व है, वैसे ही विद्वानों का दायित्व है । धनिकों का यह कर्तव्य है कि वे विद्वानों को अपने ज्ञान और बुद्धि के सम्यक् उपयोग के लिए आवश्यक समुचित साधन उपलब्ध करायें और उनके सम्मान व स्वाभिमान की रक्षा करें । व्यक्तित्व एवं कृतित्व अच्छा और सच्चा विद्वान् वह है, जो समाज से जितना लेता है उससे ज्यादा देता है । धनपति बनना जहाँ बंध का कारण है, वहाँ विद्यापति बनना वंध को काटने का कारण है । पर विद्या तभी फलीभूत होती है, जब वह आचरण में उतरे। इसीलिए कहा है 'यस्तु क्रियावान् तस्य पुरुष सः विद्वान्' अर्थात् जो क्रियावान है, वही पुरुष विद्वान् है । विद्वत्ता के लिए अच्छा बोलना, लिखना, पढ़ना, सम्पादन करना आदि पर्याप्त नहीं है। श्रद्धालु-श्रश्रद्धालु, सबमें ऐसी विद्वत्ता आ सकती है, पर विद्या वह है जो भव-बंधनों से मुक्त होने की कला सिखाये । आज समाज में साक्षर विद्वान् तो बहुत मिल जायेंगे । सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर साक्षर शिक्षित बनाने के लिए हजारों की संख्या में स्कूल, कॉलेज आदि हैं, पर साक्षरता के साथ यदि सदाचरण नहीं है तो वह साक्षरता बजाय लाभ पहुँचाने के हानिकारक भी हो सकती है । संस्कृत के एक कवि ने ठीक ही कहा है Jain Educationa International " सरसो विपरीतश्चेत्, सरसत्वं न मुञ्चति । साक्षरा विपरीतश्चेत्, राक्षसा एव निश्चिताः ।।” / अर्थात् जिसने सही अर्थ में विद्या का साक्षात्कार किया है, वह विपरीत स्थितियों में भी अपनी सरसता को व समभाव को नहीं छोड़ता । सच्चा सरस्वती का उपासक विपरीत परिस्थितियों में भी 'सरस' ही बना रहता है । 'सरस' को उल्टा सीधा किधर से भी पढ़ो 'सरस' ही पढ़ा जायेगा । पर जो ज्ञान को आचरण में नहीं ढालता और केवल साक्षर ही है, वह विपरीत परिस्थितियों में अपनी समता खो देता है । वह 'साक्षरा' से उलटकर 'राक्षसा' बन जाता है । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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