Book Title: Jivan ke Kalakar Sadguru Author(s): Pushkar Muni Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 3
________________ 36 जिनवाणी | 10 जनवरी 2011 | भगवती सूत्र में भगवान् श्री महावीर के जमाई जमाली का वर्णन है । वह भगवान के पीयूषवर्षी प्रवचनों को श्रवण कर पाँच सौ क्षत्रिय कुमारों के साथ प्रव्रजित होकर भगवान का शिष्य बनता है। आगमों का गंभीर अध्ययन भी करता है, तप से आत्मा को तपाता भी है, पर जीवनरूपी बल्ब विकृत था जिससे भगवान सदृश सर्वज्ञ सर्वदर्शी को प्राप्त करके भी अपने जीवन को चमका नहीं सका । मंखलीपुत्र गोशालक भी महावीर का अन्तेवासी बना । छह वर्ष तक निरन्तर छाया की तरह साथ रहा; किन्तु वह अन्धकार में ही भटकता रहा, अपने जीवन को प्रकाशित नहीं कर सका । भगवान के अवर्णवाद से उसने अपनी आत्मा अधिक काली बना ली। सद्गुरु की शरण में पहुँचकर भी उसने अपना दिवाला निकाल दिया, एतदर्थ ही मैं कह रहा हूँ कि सद्गुरु में ज्ञान का अखण्ड प्रकाश होने के बावजूद भी यदि शिष्य में योग्यता नहीं है तो वह अपने जीवन को आलोकित नहीं कर सकता। कलाकार ___ सद्गुरु एक सफल कलाकार है। कलाकार जैसे एक अनघड़ पत्थर को ऐसी सुन्दर आकृति प्रदान करता है जिसे देखते ही दर्शक आनन्द-विभोर हो जाता है वैसे ही सद्गुरु भी असंस्कारी आत्मा को ऐसी संस्कारी बना देता है कि जिसमें जीवन बोलने लगता है। अर्जुन मालाकार जो एक दिन हत्यारा था, जिसके नाम से राजगृह के निवासी काँपते थे, नगर से बाहर निकलने का नाम नहीं लेते थे; किन्तु सुदर्शन के साथ वह भगवान् श्री महावीर के चरणारविन्दों में पहुँचता है और महावीर का शिष्य बन जाता है। बेले-बेले वह पारणा करता है और पारणा के लिए प्रतिज्ञाबद्ध होकर जब नगर में जाता है तब उसे अनेक ताड़ना, तर्जना और त्रास दिया जाता है तब भी वह आक्रोश नहीं करता है, यह है सद्गुरु की कला । अंगुलीमाल जो एक दिन भयंकर डाकू था और अपने गले में अंगुलियों की माला पहना करता था, जिसकी आँखों से खून बरसता था, किन्तु जीवन के कलाकार सद्गुरु महात्मा बुद्ध ने उसके जीवन को बदल दिया, हिंसक को अहिंसक बना दिया । सम्राट् प्रदेशी जो क्रूर, कठोर और निर्दय था, मनोविनोद के लिए ही उसने अनेकों को मौत के घाट उतार दिया था। प्रजावर्ग जिससे सदा भयभीत रहता था, पर चतुर चित्त की प्रबल प्रेरणा से उत्प्रेरित होकर महाश्रमण केशी महाराज उसके जीवन का निर्माण करने हेतु श्वेताम्बिका आते हैं और उसके जीवन को ऐसा बदल देते हैं कि महारानी सूर्यकान्ता के द्वारा विष-दान देने पर भी सम्राट् शान्त, प्रशान्त और उपशान्त रहते हैं । यह है सद्गुरु का चमत्कार। स्टेशन सद्गुरु जीवन रूपी ट्रेन का स्टेशन है। ट्रेन यदि स्टेशन पर रुकती है तो उसे वहाँ किसी भी प्रकार का खतरा नहीं होता, यदि उसमें किसी भी प्रकार की कोई विकृति उत्पन्न हो जाय तो वहाँ शीघ्र ही दुरुस्त की जा सकती है। स्टेशन पर ही उसे पानी मिलता है, कोयला मिलता है और विश्रान्ति मिलती है। जीवन रूपी ट्रेन का स्टेशन सद्गुरु है, यदि हमारे जीवन में किसी भी प्रकार की विकृति पैदा हो गई है तो सद्गुरु उसे शीघ्र ही ठीक कर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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