Book Title: Jivan ke Kalakar Sadguru
Author(s): Pushkar Muni
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 5
________________ 38 जिनवाणी | 10 जनवरी 2011 || सुन्दर मठ किसके चमक रहे हैं? उसने उत्तर देते हुए कहा- उदासियों के / वह सोचने लगा कि जो संसार से उदास हैं और उनके मठ! यह कैसे सम्भव है? मदोन्मत्त हाथी झूमते हुए दिखलाई दिये / उसने फिर प्रश्न किया- ये हाथी किसके हैं? तो उस सज्जन ने कहा वैरागियों के हैं? वह सोच नहीं पा रहा था कि जो वैरागी हों, जिनके मन में वैराग्य की ज्योति जल रही हो उनके पास हाथी कैसे हो सकते हैं! कुछ और आगे बढ़ा तो कुछ बच्चे खेलते हुए दिखलाई दिये, उसने पूछा ये बच्चे किसके खेल रहे हैं? उत्तर मिला- ब्रह्मचारियों के? ब्रह्मचारी और फिर बच्चे? आगे बढ़ने पर कुछ बहिनें आती हुई दृष्टिगोचर हुईं? पूछा किसकी हैं? तो उत्तर मिला-सन्तों की। सन्त होकर जो पत्नियाँ रखें वे सन्त ही कैसे हैं? हाँ तो, यह है नामधारी गुरु कहलाने वालों का शब्द चित्र! वस्तुतः वे गुरु नहीं हैं। जो इस तरह स्वयं भोग-विलास में निमग्न रहते हों और व्यसनों से व्यथित हों, वे गुरु कैसे बन सकते हैं? ऐसे नामधारी गुरुओं ने ही सद्गुरु के महत्त्व को कम कर दिया है। सद्गुरु सद्गुरु के लिए अपेक्षित है कि वह पाँच इन्द्रियों को वश में करने वाला हो, तथा नवविध ब्रह्मचर्य गुप्तियों को धारण करने वाला हो / क्रोध, मान, माया और लोभ से मुक्त हो; अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह से युक्त हो; ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य से सम्पन्न हो; ईर्या, भाषा, एषणा, आदानभण्डमात्र और उच्चार प्रस्रवण-खेल-जल्ल संस्थापनिका समिति तथा मन, वचन और काय का गोपन करने वाला हो। इस प्रकार जो इन सद्गुणों का धारक है, वही वस्तुतः सद्गुरु है। जो इन सद्गुणों के परीक्षणप्रस्तर पर खरा उतरता है उसे ही भारतीय महर्षियों ने सद्गुरु कहा है पंचिदिय-संवरणो, तह नवविह बंभचेर गुत्तिधरो। चउविह-कसाय-मुक्को, इअ अवरस गुणेहि संजुत्तो।। पंच-महव्वय जुत्तो, पंचविहायार-पालण समत्थो। पंच समिओ तिगुत्तो, छत्तीस-गुणो गुरु मज्झा॥ वस्तुतः सद्गुरु का महत्त्व अपरम्पार है। दीपक को प्रकाशित करने के लिए जैसे तेल की आवश्यकता है, घड़ी को चलाने के लिए चाबी की जरूरत है, शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाने के लिए भोजन आवश्यक है वैसे ही जीवन को प्रगतिशील बनाने के लिए सद्गुरु की आवश्यकता है। सद्गुरु ही जीवन के सच्चे निर्माता हैं। - 'धर्म का कल्पवृक्ष : जीवन के आंगन में' पुस्तक से साभार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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