Book Title: Jivan Ka Arthvetta Ahimsa Me Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 8
________________ यहूदियों का खून बहाया, धर्मयुद्ध रचाए और करुणा की जगह तलवार तथा प्रेम की जगह घृणा का प्रचार करने लगे। यहूदी धर्म में अहिंसा भावना : यहूदी मत में कहा गया है कि---"किसी आदमी के प्रात्म-सम्मान को चोट नहीं पहुँचानी चाहिए। लोगों के सामने किसी आदमी को अपमानित करना, उतना ही बड़ा पाप है, जितना उसका खून कर देना।" “यदि तुम्हारा शत्रु तुम्हें मारने को आए और वह भूखा-प्यासा तुम्हारे घर पहुँचे, तो उसे खाना दो, पानी दो।"२ / / "यदि कोई आदमी संकट में है, डूब रहा है, उस पर दस्यु-डाकू या हिंसक शेरचीते प्रादि हमला कर रह है, तो हमारा कर्तव्य है कि हम उसकी रक्षा करें। प्राणिमात्र के प्रति निवरभाव रखने की प्रेरणा प्रदान करते हुए यह बतलाया गया है कि---अपने मन में किसी के प्रति वैर का, दुश्मनी का दुर्भाव मत रखो।"३ / ___इस प्रकार यहूदी-धर्म के प्रवर्तकों की दृष्टि भी अहिंसा पर ही आधारित प्रतीत होती है। पारसी और तानो धर्म में अहिंसा भावना : पारसी-धर्म के महान् प्रवर्तक महात्मा जरथुस्त ने कहा है कि-"जो सबसे अच्छे प्रकार की जिन्दगी गुजारने से लोगों को रोकते हैं, अटकाते हैं और पशुओं को मारने की खुश-खुशाल सिफारिश करते हैं, उनको अहुरमज्द बुरा समझते हैं। अतः अपने मन में किसी से बदला लेने की भावना मत रखो। सोचो कि तुम अपने दुश्मन से बदला लोगे तो तुम्हें किस प्रकार की हानि, किस प्रकार की चोट और किस प्रकार का सर्वनाश भुगतना पड़ सकता है, और किस प्रकार बदले की भावना तुम्हें लगातार सताती रहेगी ? अतः दुश्मन से भी बदला मत लो। बदले की भावना से अभिप्रेरित होकर कभी कोई पापकर्म मत करो। मन में सदा-सर्वदा सून्दर विचारों के दीपक सँजोए रखो।" ताप्रो-धर्म के महान प्रणेता---'लामोत्से ने अहिंसात्मक विचारों को अभिव्यक्त करते हुए कहा है कि-"जो लोग मेरे प्रति अच्छा व्यवहार करते हैं, उनके प्रति मैं अच्छा व्यवहार करता हूँ। जो लोग मेरे प्रति अच्छा व्यवहार नहीं भी करते, उनके प्रति भी मैं अच्छा व्यवहार करता हूँ।"५ कनफ्यूशस-धर्म के प्रवर्तक कांगफ्यूत्सी ने कहा है कि-"तुम्हें जो चीज नापसन्द है, वह दूसरे के लिए हर्गिज मत करो।" / इस प्रकार विविध धर्मों में अहिंसा को उच्च स्थान दिया गया है। वस्तुतः अहिंसा और दया की भावना से शून्य होकर कोई भी धर्म, धर्म की संज्ञा पाने का अधिकारी नहीं हो सकता। 1. ता. बाबा मेतलिया--५८ (ब)। 2. नीति, 25 / 21 परमिदारास 3. तोरा-लव्य व्यवस्था 16 / 17 4. गाथा / हा० 34, 3 5. लाओ तेह किंग। 266 Jain Education Interational पन्ना समिक्खए धम्म www.jainelibrary.org For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 6 7 8