Book Title: Jivan Ka Arthvetta Ahimsa Me Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 7
________________ ही सभी प्राणियों को अभयदान देता है, उसे भी सभी अभयदान देते हैं। अहिंसा ही एकमात्र पूर्ण धर्म है। हिंसा, धर्म और तप का नाश करने वाली है । अतः यह स्पष्ट है कि वैदिक धर्म भी अहिंसा की महत्ता को एक स्वर से स्वीकार करता है । इन वचनों पर से स्पष्ट है कि वैदिक परम्परा में यज्ञ प्रादि में हिंसा का जो प्रचलन हुआ, वह बहुत बाद में मानव की स्वार्थ परक मनोवृत्ति के कारण ही हुआ । मूलतः ऐसा नहीं था । इस्लाम धर्म में हिंसा भावना : इस्लाम धर्म की अट्टालिका भी मूलतः अहिंसा की नींव पर ही टिकी हुई है । इस्लामधर्म में कहा जाता है- "खुदा सारे जगत ( खल्क) का पिता ( खालिक ) है । जगत में जितने प्राणी हैं, वे सभी खुदा के पुत्र ( बन्दे ) हैं ।" कुरान शरीफ की शुरूआत में ही अल्लाहताला 'खुदा' का विशेषण दिया है- "बिस्मिल्लाह रहिमानुर्रहीम"" - इस प्रकार का मंगलाचरण देकर यह बताया गया है कि सब जीवों पर रहम करो । मुहम्मद साहब के उत्तराधिकारी हजरत अली साहब ने कहा है- "हे मानव ! तू पशु-पक्षियों की कन अपने पेट में मत बना" अर्थात पशु-पक्षियों को मार कर उनको ना भोजन मत बना | इसी प्रकार 'दीनइलाही' के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर ने कहा है-- " मैं अपने पेट को दूसरे जीवों का कब्रिस्तान बनाना नहीं चाहता । जिसने किसी की जान बचाई - उसने मानों सारे इन्सानों को जिन्दगी बख्शी । " उपर्युक्त उदाहरणों से यही प्रतिभासित होता है कि इस्लाम धर्म भी अपने साथ अहिंसा की दृष्टि को लेकर चला है। बाद में उसमें जो हिंसा का स्वर गूंजने लगा, उसका प्रमुख कारण स्वार्थी व रसलोलुप व्यक्ति ही हैं। उन्होंने हिंसा का समावेश करके इस्लामधर्म को बदनाम कर दिया है, वरना उसके धर्मग्रन्थों में हिंसा का कोई महत्त्व नहीं है । ईसाई धर्म में हिंसा भावना : महात्मा ईसा ने कहा है कि- " तू अपनी तलवार म्यान में रख ले, क्योंकि जो लोग तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से ही नाश किए जाएँगे " अन्यत्र भी बतलाया है--"किसी भी जीव की हिंसा मत करो। तुमसे कभी कहा गया था कि तुम अपने पड़ोसी से प्रेम करो और अपने दुश्मन से घृणा । पर मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम अपने दुश्मन को भी प्यार करो और जो लोग तुम्हें सताते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो। तभी तुम स्वर्ग में रहने वाले अपने पिता की संतान ठहरोगे क्योंकि वह भले और बुरे — दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है । धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेह बरसाता है । यदि तुम उन्हीं से प्रेम करो, जो तुम से प्रेम करते हैं, तो तुमने कौन मार्के की बात की ?"* इतना ही नहीं, वरन अहिंसा का वह पैगाम तो काफी गहरी उड़ान भर बैठा है - "अपने शत्रु से प्रेम रखो। जो तुम से वैर करें, उनका भी भला सोचो और करो । जो तुम्हें शाप दें, उन्हें भी आशीर्वाद दो । जो तुम्हारा अपमान करे, उसके लिए भी प्रार्थना करो। जो तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी तरफ दूसरा भी गाल कर दो। जो तुम्हारी चादर छीन ले, उसे अपना कुरता भी दे दो ।"" ईसाई धर्म में भी प्रेम, करुणा और सेवा की अत्यन्त सुन्दर भावना व्यक्त की गई । यह बात दूसरी है कि स्वार्थी और अहंवादी व्यक्तियों ने धर्म के नाम पर लाखों-करोड़ों १. अहिंसा सकलो धर्मः । - महाभारत शान्ति पर्व २. व मन् अया हा फकनमा अन्नास जमीन: । - कुरान शरीफ ५/३५ ३. मत्ती । ---२।५१-५२ ४. मती । - ५।४५-४६ ५. लुका ६।२७-३७ ॥ जीवन की अर्थवत्ता : श्रहिंसा में Jain Education International For Private & Personal Use Only २६५ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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