Book Title: Jinstuti
Author(s): Jaggatchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ [126] अर्थ हे अजन्मा ! वीतराग ! तुं मारी रक्षा कर... हे प्रभु ! आ पृथ्वी उपर तुं सूर्यसम छे. पापनां विषयसमूहोने छेदनार ! कर्मबंधनथी मुक्त ! हे विषय(वासना)रूप वायुने रोकनारा प्रभु !!! तुं अज्ञानता कषाय आदिथी रहित छे. चन्द्रनी जेम प्रख्यात सामुद्दिक आदि लक्षणोनो समुद्र = सारा उत्तम लक्षणवाळो कल्याणरूप प्रौढ - प्रतापी फलने मेळवनार संक्लेशथी रहित पृथ्वीनां महाभयोने दूर करनार (मोक्षरूप) श्रेष्ठ सुख लक्ष्मीने प्राप्त करनार हे प्रभु ! तने नमन.., वंदन... हो... नोंध : एक पुराणा फुटकर ह.लि. पानां सचवायेली आ लघुरचना अज्ञातकर्तृक होवा छतां साहित्यिक रीते चमत्कृतिपूर्ण लागवाथी यथामति संपादित करी अत्रे प्रस्तुत करी छे. बाराखडीना अक्षरो पासेथी केवं मजा- अर्थघटन हांसल करी शकाय छे तेनो तथा कर्तानी प्रतिभानो आमां आपणने परिचय थाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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