Book Title: Jinpooja Vidhi madhyakalin Vidhan Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 5
________________ 36 . अनुसंधान-२२ पण ते प्रचलित होवो जोईए (आजे तो छोडी देवायो छे) तेम आ विधिगत विधान वांचवाथी जणाई आवे छे. प्रांते, आ विधिनी प्रति मारा पर मोकलती वखते लखेला पत्रमा मुनि श्रीभुवनचन्द्रजीए लखेल केटलाक मुद्दा नोंधं तो - "अष्टप्रकारीनो क्रम, नव अंग, अक्षत वगेरे अंगेनी ते वखतनी . प्रणालिका कंईक जुदी ज छे. पं. कल्याणविजयजीनी 'जिनपूजापद्धति'नां केटलांक विधानोने समर्थन मळे तेवू आमां घणुं छे.... प्रणालिका अने परंपराने शाश्वत जेवी समजी बेसनाराओना हाथमां आ मूकवा जेवू छे.... अत्यारे जेम छे तेम पहेलो पण हतुं- अर्थात् हालनी विधि 'सनातन' छे एवी मान्यता बरोबर नथी." लेखनी भाषा मारुगुर्जर एटले के राजस्थानी (मारवाडी) मिश्रित गुजराती लागे छे. केटलाक शब्दोनो संग्रह छेवाडे आपेल छे. पूजानी विधि लिखिइ छइ । पूरवदिसि बइसी अंघोलि कीजि । भूमिका पुंजीनइ जीव काजि । पडे धोतीउं पहिरीइं । पगे भई अणफरत उत्तरदिसि साम्ह रही धोतीउं पहिरई अनि उत्तरासंग करि । ते धोतीआ श्वेत निर्मल चोखां । किरिडिआं नही । फाटा नही । साध्या नहीं । आंतरी सहित । पुरुष नइ २, स्त्री नइ ३ धोतीआं ॥ पिहिलं बारणि 'निसिही' कहइ । तेणी निसिहीइ मन वचन कायाई करी घरनुं व्यापार निषेधाई । मांहि पइसतां अभिगमन चारि करीई - जिन पूजा व्यतिरेक सचित्त छांडीइं १, अचित्त वस्तु आभरणादिक राखीइं २, मननुं एकांतपणु करीइं ३, एकसाडिउ उत्तरासंग करीइं ४ । पूजानु उपस्कर सर्व लेई जईइ । पहिलुं जिमणउ पग मांहि मुंकीइ । जगन्नाथनइ जिमणइ पासई रहीई । मूलनायक- मूख देखी माथि हाथ चडावी नमता थिका 'नमो जिणाणं' कहीइ वार ३ । ए पांचमु अभिगमन साचवीइं ।। पछंइ वाजिब वाजतइ परिवार लेई सृष्टिं प्रदक्षिणा ३ दीजइ । जगन्नाथना जिमणि पासाथी डावि पासि ऊतरीइ । तिहां "जयजंतु कप्पपायव०" ए त्रिणि गाथा भणीइं । नीचुं जोतां मनमाहि एहवं चितवीई 'ज्ञान-दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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