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जिनपूजाविधि : मध्यकालीन विधान
केटलाक वखत पहेलां मुनि श्रीभुवनचन्द्रजीने मांडलना भंडारमांथी एक चोपडो (गुटको ) जोवा मळेलो; तेमांनां अमुक पृष्ठोनी झेरोक्स करावी तेणे मने मोकलेल, तेमां आ 'जिनपूजाविधि' छे. तेमना लखवा प्रमाणे आ गुटको श्रीहीरविजयसूरिजीना निकटना साधु वा श्रावकनो होवो जोईए. अने तेम होय तो आ लखाणनुं मूल्य घणुंबधुं आंकवुं जोईए, केमके ते १७मा शतकना चलणी विधाननुं लखाण गणाय.
सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
आ लखाणमां आम तो जिनप्रतिमानी पूजानो विधि अने क्रम आपवामां आव्यो छे. पूजाविधि आम तो प्रचलित ज छे. परंतु प्रचलित विधिमा केटलुक एवं प्रवेशी गयुं छे, जे आ विधिमा जोवा नथी मळतुं. एवी वातो तरफ ध्यान दोरवाना अभिप्रायथी ज आ लखाण अत्रे प्रकट करवामां आवे छे.
१. स्नान पूर्वाभिमुख बेसीने करवानुं छे, ते पण जीव विनानी - निर्जीव धरती पर धोतीयुं - वस्त्र पहेरवानी क्रिया उत्तर दिशा भणी ऊभा रही करवानी छे. साधे वस्वनी संख्या अने स्वरूप पण लख्यां छे.
२. देरासरमां दाखल थईए त्यारे पहेलो जमणो पग अंदर मूकवो ए सूचन ध्यानपात्र छे.
३. प्रदक्षिणा परिवार सहित, वाजते गाजते, नीची नजरे, सृष्टिक्रमे करवानुं विधान मळे छे, जे सुज्ञो माटे उपयोगी गणाय विधिविधानमां केटलीक क्रियाना बे क्रम होय छे : १. सृष्टिक्रम; २. संहारक्रम. उत्तम अने पोषक विधायक क्रिया सृष्टिक्रमे थाय. तेथी ऊलटा प्रकारनी क्रिया अवळा - संहारक्रमे थाय. आ मंत्र-तंत्र शास्त्रनी रहस्यनी वात छे. प्रदक्षिणा, पूजा वगेरे उत्तम पोषक -लाभकारक क्रिया छे, ते सृष्टिक्रमे ज थाय. प्रदक्षिणा देतां आजे सर्वत्र बोलाता दूहाना स्थाने ते वखते प्राकृत ३ गाथा बोलाती हती, तेनुं पण सूचन अहीं मळे छे. उपरांत, प्रदक्षिणा दई शकाय तेम न होय तो प्रभु आगळ ऊभा रही, हाथ जोडी आवर्त
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देतां देतां ३ गाथा बोलीने ते विधि साचवी लेवानुं सूचन पण करेल छे. आ पछी देरासर पुंजवानुं एटले के झाडु, पुंजणी वगेरेथी साफ करवानुं छे, अने साथे साथे बीजां देरासरो (होय तो ) नी चिन्ता (तेनी पूजानो प्रबंध करवानी चिन्ता) करवानी सूचना छे.
४.
आ पछी ज सुखड - केसर घसवानुं छे, ते पण मुखकोश बांधीने ज. तेमांये पूजानुं तथा तिलक माटेनुं अलग करी मूकवानुं छे. पछी बधुं लईने गभाराना दरवाजे जाय, त्यां आठपडो मुखकोश बांधीने ज अंदर जाय तेवुं सूचन छे.
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६. अंगपूजाना आरंभे निर्माल्य वासी फूल, केसर वगेरे उतारवानी वात छे. खोखुं उतारवानी वात नथी. पुराणां खोखां आज लगी क्यांय मळ्यां पण नथी. २००-४०० वर्ष जूनी आंगी मळे छे तेमां पण पाखर, हंस, मुगट, कुंडल, बाजुबंध, हार, श्रीफल आटलुं ज, वधुमां वधु, मळ्युं छे; आखुं के खंडशः धातुनुं खोखुं नहिज. पछी पखालनी वात आवे छे. एमां दूधनी वात आवती नथी. सुगन्धित पाणी अने तेमां सुखड - केसर-फूल त्रण वानांनुं मिश्रण करवानी अने ते थकी प्रक्षाल करवानी सूचना छे. आमां दूध क्यांय नथी आवतुं आजे तो दूधनी ज प्रधानता होय छे. दूध न होय तो प्रक्षाल अधूरो- विधिहीन मनाय छे. फलतः वासी, कोथळी के फ्रीजनां दूधनो पण छोछ रह्यो नथी, ते नितान्त आशातना गणाय तेम छे. वळी, आ विधिमां जीव्रोनी जयणानी वात वारेवारे करी छे; ज्यारे दूधना के दूधमिश्रित पखालथी थती चीकाश, फूग, जीवोत्पत्ति, तेनाथी आकर्षाईने आवती गरोळी, उंदर, वांदा वगेरेनो उपद्रव, ते बधांनी पूजारी द्वारा थती हिंसा आ बधांनो विवेक आजना पूजाप्रेरको तथा पूजा - कारको पासे जोवा मळतो नथी ज.
७. अंगलूहणांनी वात विगते समझवायोग्य छे. कुल ४ अंगलूहणां राखवा. बे आजे वापर्यां, ते काले न वापरवां; काले बीजां बे वापरवां. एकेक अंगलूहणुं साडा त्रण गजना मापनुं लेवुं तेने केसर सुखडनो पास आपी पीळां करवानां छे. वळी तेने सुगंधभर्या स्थाने राखवानी सूचना छे. ८. पखालनुं पाणी तथा निर्माल्यभूत बीजा पदार्थ भेगा न राखतां जुदा
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राखवानी सूचना छे. तेने निरवद्य-निर्जीव जमीन पर परठवाय; त्यां कुंथवा जेवी जीवात उत्पन्न न थाय तेनी तथा वरसाद पडे तो फूग न वळे तेनी दरकार राखे; गमे तेम नाखे तो पाप लागे; ते पदार्थोने ओळंगाय नहि; आ बधी वातो विवेकी माटे खूब प्रेरणादायी छे. नव अंगोना क्रममा भाल, कंठ, हृदय, उदर- आ अंगोनो समावेश नथी. तेनुं कारण, अहीं बे पगने बे अंग, बे जानु, हाथ, खभाने पण २-२ अंग गणेल छे, ज्यारे अन्यत्र बे पग, जानु, हाथ, खभाने १-१
(संयुक्त) अंग गणेल होय छे, ते होवू जोईए. १०. फूल पूजा पण सृष्टिक्रमे ज करवानो विधि नोंधपात्र छे; मन फांवे तेम
गमे ते अंगे फूल. गोठववानां नथी. उपरांत, फूल केवां लेवां ने केवी रोते, ते अंगना सूचन पण ध्यानाह छे. आ वातो आजे कोण स्वीकारे
समजे छ ? - ११. पहेलेथी कोईए पूजा करी लीधी होय तो ते दूर करवी अने आपणे
नवेसरथी पूजा करवी, ते बाबतनो अहीं स्पष्ट निषेध थयो छे. घणाने ८ प्रकारी पूजानो नियम होय छे, तेओ पूर्वकृत पूजाने रद्द करी फरी बधुं करवाना जड आग्रही होय छे, तेमणे आ विवेक समजवा योग्य छे. पूजा करतां प्रतिमाना मुख पर सुखडनुं विलेपन करवानी मनाई पण
फरमावाई छे. १२. अग्रपूजामां कयो पदार्थ भगवाननी कई बाजुए मुकवो तेनो विधि खूब
महत्त्वपूर्ण छे. दीवो जमणे, धूप डाबे, अने नैवेद्य-फल-जलपात्र सन्मुख प्रतिमानी बराबर सामे धरवानुं विधान अहीं छे. साथियो-सिद्धशिलानुं विधान नथी; फक्त अक्षतनी ३ ढगलीओ ज करवानुं विधान छे; अने छेक छेवटे (अष्ट) मंगल चोखा वडे आलेखवानुं विधान छे. आजे केटलाक लोको अष्टद्रव्यपूजा पछी मात्र मंगलदीवो करे छे, आरतीनो निषेध करे छे. पण आ विधिमां आरती तथा मंगल दीवो बन्ने करवानुं
स्पष्ट सूचन छे. १३. फलपूजा तो थईज छे, छतां छेवटे नाळियेर धरवानुं पण विधान छे.
चंदनना थापा देवानुं पण विधान छे. वधुमां, देरासरमा पोते रह्यो, बेठो,
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35 तेना निमित्ते (वळतररूपे ?) भंडार मूकवानुं एटले के भंडारमा नाणुं मूकवानुं विलक्षण विधान पण छे. आज़े दरेक देरासरमां भंडार होय छे, ने तेमां पैसा नाखवानो रिवाज छे. वळी, ते पैसाने निर्माल्यपूजाद्रव्य तरीके गणावाय छे. वळी, आजे तो सर्वत्र साथियो वगेरे रचीने ते पर फलादिनी साथे पैसा मूकवानी तथा तेने स्वहस्ते भंडारमा नाखवानी प्रथा छे. ते प्रथानं पगेरुं पण अने तेनी अयोग्यता पण अहीं आ विधान द्वारा जणाय छे. खरेखर तो समग्र पूजाविधिमां धन के नाणुं मूकीने पूजा करवानुं क्यांय विधान ज नथी. बधे अष्ट द्रव्यो वगेरे द्वारा ज पूजा करवानी वात छे. अटले नाणुं पूजाद्रव्य (उपकरण) नहि, माटे ते निर्माल्य पण नथी थतुं. छतां भंडार छे, तथा नाणुं भरवानुं होय छे, ते शी रीते ? शा माटे ? तेनी स्पष्टता आपणने आ विधिमांना 'जेतलीवेला देहरामा रहीइ ते
निमित्त भंडारि मूंकीई" - ए वाक्यथी सांपडे छे. १४. आ वाक्यना अनुसन्धानमां, आ ज विधिगत, एक बीजं वाक्य पण
पकडवानुं छे : "घणी वेला धोतीयां राखीइ नहीं, राखइ तु दोष लागि"। अर्थात् पूजानां वस्त्रो लांबो वखत पहेरी राखवामां दोष कह्यो छे. आजकाल कलाको लगी पूजाना कपडामा रहेवानी, पूजा उपरांत माळा, व्याख्यान, सामायिक, वहीवटी कार्य आ बधुं करवानी जे पद्धति चाले छे, ते सामे आ वाक्यो लालबत्तीरूप छे. सारांश ए के झाझो समय पूजाना कपडे रहेवाय नहि, ने ते कपडे देरासरमां जेटलो वखत
रहे तेना चार्ज-वळतररूपे भंडारमा नाणु नाखवानुं रहे. १५. एक बीजी महत्त्वनी वात आ विधिमां वर्णवी छे. ते वात छे जलपूजानी.
मूर्तिनी जूनी पूजा उतार्या बाद जे थाय छे तेने प्रक्षाल उपरांत अभिषेक गणवानो चाल आजे छे. आ विधिमां तेने प्रक्षाल ज गणावेल छे; ते पण प्रतिमाने स्वच्छ करवानी दृष्टिए ज. पछी थी दरेक ८ प्रकारी पूजा करवानी, तेमां जलपूजा पण करवानी छे ते भगवान सामे फल-नैवेद्यनी जेम अने तेनी साथे जलभरेलुं पात्र धरीने-मूकीने; नहि के प्रतिमाने न्हवडावीने. आ विधि शास्त्र ग्रंथोमां तो मळे ज छे, परंतु १७मा सैकामां
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पण ते प्रचलित होवो जोईए (आजे तो छोडी देवायो छे) तेम आ विधिगत विधान वांचवाथी जणाई आवे छे.
प्रांते, आ विधिनी प्रति मारा पर मोकलती वखते लखेला पत्रमा मुनि श्रीभुवनचन्द्रजीए लखेल केटलाक मुद्दा नोंधं तो -
"अष्टप्रकारीनो क्रम, नव अंग, अक्षत वगेरे अंगेनी ते वखतनी . प्रणालिका कंईक जुदी ज छे. पं. कल्याणविजयजीनी 'जिनपूजापद्धति'नां केटलांक विधानोने समर्थन मळे तेवू आमां घणुं छे.... प्रणालिका अने परंपराने शाश्वत जेवी समजी बेसनाराओना हाथमां आ मूकवा जेवू छे.... अत्यारे जेम छे तेम पहेलो पण हतुं- अर्थात् हालनी विधि 'सनातन' छे एवी मान्यता बरोबर नथी."
लेखनी भाषा मारुगुर्जर एटले के राजस्थानी (मारवाडी) मिश्रित गुजराती लागे छे. केटलाक शब्दोनो संग्रह छेवाडे आपेल छे.
पूजानी विधि लिखिइ छइ । पूरवदिसि बइसी अंघोलि कीजि । भूमिका पुंजीनइ जीव काजि । पडे धोतीउं पहिरीइं । पगे भई अणफरत उत्तरदिसि साम्ह रही धोतीउं पहिरई अनि उत्तरासंग करि । ते धोतीआ श्वेत निर्मल चोखां । किरिडिआं नही । फाटा नही । साध्या नहीं । आंतरी सहित । पुरुष नइ २, स्त्री नइ ३ धोतीआं ॥
पिहिलं बारणि 'निसिही' कहइ । तेणी निसिहीइ मन वचन कायाई करी घरनुं व्यापार निषेधाई । मांहि पइसतां अभिगमन चारि करीई - जिन पूजा व्यतिरेक सचित्त छांडीइं १, अचित्त वस्तु आभरणादिक राखीइं २, मननुं एकांतपणु करीइं ३, एकसाडिउ उत्तरासंग करीइं ४ । पूजानु उपस्कर सर्व लेई जईइ । पहिलुं जिमणउ पग मांहि मुंकीइ । जगन्नाथनइ जिमणइ पासई रहीई । मूलनायक- मूख देखी माथि हाथ चडावी नमता थिका 'नमो जिणाणं' कहीइ वार ३ । ए पांचमु अभिगमन साचवीइं ।।
पछंइ वाजिब वाजतइ परिवार लेई सृष्टिं प्रदक्षिणा ३ दीजइ । जगन्नाथना जिमणि पासाथी डावि पासि ऊतरीइ । तिहां "जयजंतु कप्पपायव०" ए त्रिणि गाथा भणीइं । नीचुं जोतां मनमाहि एहवं चितवीई 'ज्ञान-दर्शन
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चारित्र आराधवानइ काजिई वलि समोसरणि बिठा चिहुं रूपे तिहां देउं छू ।' जउ प्रदक्षिणानुं ठाम न हुई तु ऊभु रही हाथ फेरवतु गाथा ३ कहइ । पछ देहरूं पूंजई । वली बीजा देहरानी चिंता करई ॥
मुखकोश बांधी सूकडि केसर घसि पूजानी अनि तिलकनी जूजूई ऊसारि पूजानु ऊपसकर सघलु लेई ऊभु थाइ । गभारानि बारणि जईन निसिही बीजी कहि । पंचांग प्रणाम करि वार ३ मस्तक भुइ लगाडइ । 'नमो जिणाणं' कहइ । पछइ आठपुडु मुखकोश करि, जिम मुखनु सास अनि नासिकानुं सास प्रतिमानइ न लागई ॥
I
हवि अंगपूजा लिखीइ छइ । जगन्नाथनु निर्माल्य ऊतारीइं । पछि पुंजणी प्रतिमा पुंजीइ । जीवनी यतना कीजइ । पषालनि सुगंध पाणी कई । माहिं सूकड केसर फूल मुंकी कलश भरी । पछइ प्रतिमा प्रनालीइ बाजोठि अथवा थाली ऊपरि ऊंची मुंकीइं । कलश बिहुं हाथि लेई
बालत्तणंमि सामिअ ! सुरगिरिसिहरंमि कणयकलसेहिं । तिअसासुरेहिं न्हविउ ते धन्ना जेहि दिट्ठो सि ॥
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अथवा 'स्नातस्या०' गाथा एक मुखि ऊचरतु ढालि । पछइ वालाकूचीइ मइल टालि शुद्ध कीजि । तिह्वार पछी अंग लूहीइ । ते आंगलूहणा २ कीजि । ते अंगलूहणा सूकडि केसरि पीलां कीजइ । सुगंध ठामि मुकीइ । सुहाली भेरवना सष ( प ? ) २ कीजि । एक दिनना अंगलूहणां बीजि दिनि वासी मूकीइ । एवं अंगलूहणा ४ कीजि । पषालपाणी निर्माल जूजूआ राखीइ, निरवद्य भूमिकाई परठवीइं । उलंडाई नही । तिहां कुंथुआदिक जीव ऊपजइ नही तिम करीइ । वरसातमांहिं क्कलि ( फूलि ) न वलि तिम करोड़ | भावि तिम नाखीइ तु आशातना लागि ||
पूजा करता भणीइ नही, वात न कीजि, षणीइ नही । एकाग्र चित पूजा उपरि राखी । सूकडि केसर कर्पूर लेई नवांगि सृष्टि पूजा कीजि । पग २ जानु ४ हाथ ६ षभा ८ मस्तक ९ । पछइ आभरण चडावी । पछि सृष्टि फूल चडावीइ । ते फूल अखंडित अम्लान काप्यां नहीं, जीवे खाधां नहीं, सर्व जाति, रूडि वस्त्रि घाली रूडे परि आण्या, एहवा चडावी । प्रथम मूलनायक पूजीइं । मूलनायकनि विशेष पूजा कीजि । जउ पहिलू विशेष
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पूजा कीधी हुइ तु आपण न ऊतारीइं । ते ऊपरि आपण करी । जउ घणी वेला थई हुई तु फूल करमाणा हुइ तु ऊतारी विशेष पूजा करीइं ||
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पछी सृष्टि सृष्टि सघली पासानी प्रतिमा पूजीड़ । पछि बाहिरला चउमुखनी पूजीइ । पछि मंगल चैत्य पूजीइ । प्रतिमानि मुखि सूक्रडि कांई नलगाडीई । रूडि आसनि बइसी प्रतिमा पूजीई ॥
हवि अग्रपूजा लिखी छ । दीवु जगन्नाथनि जिमणि पासि मेहलीई । नैवेद्य धान घृत पकवांन फल पांणीइ भरिउ भाजन जगन्नाथ नइ सामुं ढोईइ । अने चोखाना त्रिणि पुंज आगलि करीई जगन्नाथनि डावि पासि धूप ऊखेवीई । पछि आरती मंगलेवु घीनु करीइ । पछि गीतवाजित्र वाजति सृष्टि वार ३ आरती ऊतारीई, मंगलेवु वार ३ ऊतारीइं । पछि चमर ढालीइं । पछि भंडारि मूंकीइं ॥ जेतली वेला देहरामां रहीइ ते निमित्त भंडारि मूंकीइं । नालिकेर ढोईई । चंदनना हाथा दीजीई । तुंदुलना मंगल आलेखीई ।
हवइ भावपूजानि अवसरि त्रीजी निसीही कही । रंगमंडप आवी चैत्यवन्दन कीजि | घणी वेला धोतीयां राखीइं नही । राखीइ तु दोष लागि ।। एतला पूजाना उपस्कर जोईइ : देहरासर हाथ डउढ उंचड मांडीइ । चंदूओ ऊपरि बांधीई । कलस १ धूपधाणुं १ बाजोठ १ डंडासणउं १ काजाउद्धरणी १ वली १ कलसीउ १ पाणी ढोवानि सीप १ सूकड ऊसारवा वासकुंपी १ वास घालवा डाबडी १ केसर घालवा डाबडी १ अगरुनी डाबडी १ वास घालवानी डाबडी (?) कपूर घालवा थांट १ पुंजणी १ वालाकुची १ डाबडु १ आंगलूहणा घालवा डाबडो १ चोखा घालवानि दोडीउ १ निर्माल घालवानि डालरि १ तालजोडुं १ दीवु १ पीतलनु, आरती १ मंगलेवु १ पाटलु १ बिसवानु, दीवी १ लाकडानी तथा पीतलनी, सूकडिनुं गाठीउ उरसीउ १ चंगेरी १ फूल घालवानी । धोतीआ जोडुं १ मुखकोश १ पडे धोती १ आंगलूहणा ४ गज साढा त्रीणिना, हाथलूहगुं १ गज १ एकनूं अनि पषाललूंहणुं गज च्यारिनू, त्राबानु घडु १ पाणी घालवानि, गलणुं १ गलवानि, गलणुं १ ने वानि । छत्र १ चामर २ |
पांच प्रकारे पूजा
५॥ आठ प्रकारे पूजा
सूकडि केसर १ फूल २ आषे ३ दीवु ४ धूप सूकडि केसर १ फूल २ दीवु ३ आषे ४ नैवेद्य
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भुई
५ फल ६ पाणी ७ धूप ८ ॥ सतरे प्रकारे पूजा - न्हवहण विल्हेवण १, चक्षु २ वा वस्त्र, छूटां फूल ३, फूलनी माला ४, वर्णक फूल ५, कर्पूर चूर्ण ६, आभरण ७, फूलहरूं ८, फूलपगर ९, आरती-मंगलेवु १०, दीवु ११, धूप १२, नैवेद्य १३, फल १४, गीत १५, नृत्य १६, वाजिंत्र १७ ।। एकवीस प्रकारे पूजा - पषाल १ विलेपन २ वस्त्रयुगल ३ वास ४ फूल ५ आभरण ६ धूप ७ दीप ८ फल ९ अक्षत १० नैवेद्य ११ पानीय १२ पाने १३ सोपारी १४ छत्र १५ चामर १६ वाजिब १७ गीत १८ नाटक १९ स्तवस्तुति २० कोशवृद्धि २१ ।।
शब्दकोश अंघोलि
स्नान पुंजीनइ पंजीने-जीवरक्षा थाय
तेम साफ करीने
भोय-भूमि उत्तरासंगे ऊपरj-खेस वस्त्र किरिडिआं जर्जरित के करोळियां वाळां (?) साध्या
सांधेला आंतरी वस्त्रने छेडे थोडाक तार काढीने छेडा काढवा ते पूजाव्यतिरेक पूजा सिवायर्नु एकसाडिउ एकवडो (खेस) उपस्कर
सामग्री सृष्टि
सृष्टिकम एटले आपणे डाबेथी जमण जq ते,
प्रभुने जमणेथी डाबे. चिहुं रूपे घार 'मुखे . चौमुख रूपे मुखकोश मोढा पर बांधवानो रुमाल सूकडि
सुखड-चंदन
जुदी जुदी ऊसारि
काढी, राखी आठपुडु रुमालना आठ पड(करवा)
जूजूई
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________________ 40 अनुसंधान-२२ निर्माल्य/निर्माल गई कालनी पूजा- वासी पूजानो उतारो यतना जीवहिंसा न थाय तेनी चीवट पषाल प्रक्षालन पनालीइ प्रणाळ-नीकवाळो वालाकूची सुगंधी वाळानी जूडी आंगलूहणा अंग लूछवानां वस्त्र सुहाली भेरवना सषर/सपर सुंदर/सुपेरे निरवद्य भूमिका निर्जीव धरती उलंडाई ओळंगाय कुंथुआ झीणी जीवात फूलि फूग भावि जाणी बूझीने आशातना दोष/पाप भणीइ भणीए/बोलीए षणीय खोतरीए-खंजवाळीए सृष्टिपूजा प्रभुने जमणेथी डाबे पूजा पासानी पाषाणनी(?) मंगलेवु मंगलदीवो भंडारि मूंकीइं पैसा मूकवा हाथा हाथना थापा तुंदुल चोखा-अक्षत डालरि वासण विशेष(?) सूंडली-टोपली-(म.गु.श.को.) तालजोडु पंखो(?) . गाठीउ उरसीउ घसवानो पत्थर-ओरसियो थांट --टाट (तासक)(?) पषाल लूंहणुं- भोयलूछणु नेवानि टुकडो