Book Title: Jinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan Author(s): Smitpragnashreeji Publisher: Vichakshan Prakashan TrustPage 12
________________ । उपसंहार में शोधप्रबन्ध से निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया है। परिशिष्ट में प्रकाशित व अप्रकाशित संस्कृत व प्राकृत कृतियाँ का अनुवाद दिया गया है । अन्त में संदर्भ ग्रंथ सूचि (तालिका) में उन प्रमुख ग्रंथों की तालिका दी गयी है, जिनका उपयोग शोध प्रबन्ध की तैयारी में विशेष रूप से किया गया है । प्रस्तुत शोध प्रबन्ध की गुरुवर्या श्री प्रेरिका है, अतः मैं सर्वप्रथम अपनी प्रेरणादात्री, उदारचेता, वात्सल्यमूर्ति, शतावधानी, शासनज्योति, शासनउत्कर्षिणी प. पू. आदरणीया गुरुवर्याश्री मनोहरश्रीजी म.सा. का आभार व्यक्त करती हूँ, जिनकी प्रेरणा तथा आशीर्वाद मुझे इस कार्य में हर पल प्रोत्साहित करता रहा। उनका ऋण मैं जन्मजन्मान्तर तक नहीं भूल सकती । मैं कृतज्ञ हूँ प. पू. विदुषीवर्याश्री मुक्तिप्रभाश्रीजी म.सा. की जिनका साद्यान्त आशीर्वाद मिलता रहा। जिनके सहयोग ने मेरे मनोबल को मजबूत किया उन ज्येष्ठ भगिनी प. पू. मधुस्मिताश्रीजी म. सा. जिसने मेरे पुरुषार्थ को गति प्रदान की जिससे महानिबन्ध का कार्य पूर्ण हुआ, उनका मैं आभार मानती हूँ। साथ ही साथ संघस्थ गुरु भगिनियों का भी प्रेरणादायक उत्साह मिला। प्रस्तुत शोधग्रंथ के विषय चयन से सम्पूर्ण पूर्णाहुति तक अमूल्य मार्गदर्शन देने के लिए गुजरात युनिवर्सिटी के प्राकृत-पालि विभाग के अध्यक्ष डॉ. रमणीक भाई शाह की मैं आभारी हुँ । प्रस्तुत शोधग्रंथ में विद्वत् रत्न कलकत्ता के अनुभववृद्ध श्रीमान् भँवरलालजी नाहटा जिन्हों ने दादासाहब की कृतियों के विषय में मार्गदर्शन देने का काफी सहयोग दिया उनको भी धन्यवाद । संस्कृत और प्राकृत ज्ञाता अमृतभाई पटेल एवं प्राचीन लिपि विशेषज्ञ लक्ष्मणभाई भोजक तथा ग्रंथपाल करसनभाई वणकर का भी सहयोग मिला । एवम् महानिबन्ध के संशोधन में लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिर के ग्रंथालय से मुझे सहायता प्राप्त हुई है, इन सभी का आभार व्यक्त करती हूँ । इस ग्रंथ को प्रकाशित करने में जोधपुर निवासी श्रीमान् किरनचंदजी सुपुत्र जगदीशजी, अनिलजी - लुनिया परिवार साधुवाद के पात्र है जिन्होंने अपने “विचक्षण अभय स्मृति ट्रस्ट" द्वारा अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग करके ज्ञान की आराधना में अपना द्रव्य लगाया । Jain Education International XI For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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