Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 19
________________ खास नाम न दे कर, उसे आप प्राकृत व प्राचीन प्राकृत कहना ही विशेष सुसंगत है । ___अधिक विचार किया जाय तो आप प्राकृत, पाली और संस्कृत भाषामें उच्चारणोंकी विभिन्नता ही विभागका कारण है। देश-काल आदिके प्रभावसे जैसे सब पदार्थों में हानिवृद्धि हुआ करती है, उसी तरह मनुष्योंके उच्चारणों में भी हेरफेर हुआ करता है। प्राकृत और पालीके उच्चारण संरकृतकी अपेक्षा अधिक सरल हैं। क्योंकि उसमें लिष्ट उच्चारवाले व्यंजनोंका प्रयोग नहीं है। इसी सरलताके कारण, ये दोनों भाषा आवालगोपाल तक फैली हुई थी। और इसके विपरीत क्लिष्ट उच्चारके कारण संस्कृत भाषाका क्षेत्र परिमित था। आचार्य हेमचंद्रने और दूसरे दूसरे प्राकृत भापाके वैयाकरणोंने प्राकृत शब्दके मूल 'प्रकृति' शब्दका अर्थ 'संस्कृत' किया है। और कहा है कि संस्कृत (प्रकृति ) से माया हुआका नाम 'प्राकृत है। इस उल्लेखका तात्पर्य, प्राकृत भापाका उत्पत्तिकारण, संस्कृत भापा है, ऐसा नहीं है। परंतु प्राकृत भाषा सीखनेके लिये संस्कृत शब्दोंको मूलभूत रख कर, उनके साथ उच्चारभेदके कारण प्राकृत शब्दोंका जो साम्य-वैषम्य है उसको दिखाते हुए प्राकृत भाषाके वैयाकरणोंने अपने अपने व्याकरणोंकी रचना की है। अर्थात् संस्कृत भाषाके वाहन द्वारा प्राकृत सिखलानेका उन लोगोंका यत्न है। इसी लिये और इसी आशयसे उन लोगोंने संस्कृतको प्राकृतकी योनि-उत्पत्तिक्षेत्र-कही है ऐसा मालूम होता है । दर असल संस्कृत और प्राकृत भापाके ३." प्रकृतिः संस्कृतम्, तत्र भवम् , तत आगतं वा प्राकृतम्"। ८-१-१ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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