Book Title: Jinabhashita 2008 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 33
________________ में जनसमुदाय मुनिश्री के प्रवचन के लिये एकत्रित हुई ।। पू. मुनिश्री के धारा प्रवाह अध्यात्मपरक प्रवचन से प्रभावित जनसमुदाय की संख्या दिनों दिन बढ़ती ही चली गई एवं दिनांक 19 अक्टूबर 08 को समापन के अवसर पर पच्चीस हजार जनता का सैलाव पू. मुनिश्री के प्रवचन सुनने के लिए उमड़ पड़ा। पू. मुनिश्री ने रामायण एवं गीता के पात्रों एवं प्रसंगों का जैनधर्म के अनुरूप अध्यात्म परक प्रतीकात्मक प्रवचन प्रस्तुत किया जिसे सुनकर गया नगर की जनता भावविभोर एवं मुग्ध हो गयी । गया नगर के इतिहास में इसके पूर्व किसी भी संत के प्रवचन में इतनी भारी | दिनांक 19 अक्टूबर 08 को कार्यक्रम समापन का मुख्य आतिथ्य करते हुए बिहार सरकार के लोक स्वास्थ्य एवं अभियंत्रणा मंत्री श्री अश्विनी चौबे ने पू. मुनिश्री के प्रति बिहार प्रान्त की जनता एवं बिहार सरकार की ओर से कृतज्ञता ज्ञापन करते हुए राजकीय सम्मान अर्पित किया एवं विश्वधर्म जागरण मंच द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के आयोजन की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि पू. मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज के प्रभावी प्रवचन मानवीय चेतना के रूपान्तरण एवं विश्वशान्ति को साकार करने मे परम सहायक हैं। उन्होंने कहा कि पू. मुनिश्री के प्रवचन मगध की इस धरती पर हुए भगवान् महावीर की देशना का जीवन्त प्रतिबिम्ब हैं । संख्या में जनता कभी नहीं उमड़ी, प्रवचन सुनने पुरुषोंपूज्य मुनि श्री प्रमाण सागर जी ने चातुर्मास के मध्य के अतिरिक्त भारी संख्या में महिलाएँ- स्कूली छात्रछात्राएँ एवं सेना के जवान भी पहुँचे। पू. मुनिश्री ने • प्रसंगवशात् व्यसनमुक्ति एवं धर्म की उपादेयता पर भी अत्यन्त प्रभावी प्रवचन किया । पू. मुनि श्री के इन प्रवचनों से गया नगर की जनता पर जैनधर्म एवं दिगम्बर जैनसंत की प्रभावना की अमिट छाप पड़ी है । पू. मुनि श्री की रोचक एवं धारा प्रवाह प्रवचन शैली एवं दिगम्बरत्व की कठिन चर्या गया नगर में आम चर्चा का विषय बन गई है। स्थानीय नागरिकों ने पू. मुनिश्री की तुलना साक्षात् परमात्मा से करते हुए अपनी श्रद्धा व्यक्त की। मुनिश्री के दर्शन एवं चरण-स्पर्श हेतु भारी संख्या में जनता उमड़ पड़ी। नियमित कक्षाओं के माध्यम से जैनतत्त्व विद्या के विभिन्न विषयों के साथ ही गुणस्थानों के स्वरूप की व्याख्या सरलतम रूप में पहले ही समझाई है। प्रस्तुत संगोष्ठी से जिज्ञासुओं को गुणस्थानों की शास्त्रीय, मनोवैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से विवेचना समझने में काफी लाभ प्राप्त हुआ । त्रिदिवसीय संगोष्ठी के विभिन्न विषयों पर सम्पन्न आठ सत्रों में अट्ठाईस शोध आलेख विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किए गए। इस संगोष्ठी की विशेषता यह रही कि प्रत्येक विद्वानों को गुणस्थान पर उनके विषयों के शीर्षक के साथ ही उनके बिन्दु भी निर्धारित कर दिए गए थे। प्रत्येक सत्र के अन्त में पूज्य मुनिश्री ने अपने मांगलिक उद्बोधन के द्वारा प्रत्येक शोधालेख की जो समीक्षा प्रस्तुत की उससे जिज्ञाषु श्रोताओं एवं विद्वानों को भी अत्यधिक लाभ एवं अनेक नूतन दृष्टियाँ प्राप्त हुईं। में यह ज्ञातव्य है कि शाश्वत तीर्थराज सम्मेद शिखरजी निर्मित हो रहे इन्हीं गुणस्थानों के रहस्य को सहज और सजीव रूप में समझने और इससे आत्मिक विकास करने की दृष्टि से विशाल एवं भव्य रूप में निर्मित हो रहे 'गुणायतन' की सार्थकता और आवश्यकता से भी समाज सुपरचित हुई। इस 'गुणायतन' में आधुनिक तकनीकि एवं वैज्ञानिक संशाधनों के माध्यम से गुणस्थानों को सरलता से समझने में काफी लाभ प्राप्त होगा। साथ ही सभी ने यह आवश्यकता भी महसूस की कि गुणस्थानों के अनेक अनछुए पक्षों पर शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक विवेचना हेतु विशाल स्तर पर विविध विद्याओं के विद्वानों की ऐसी अनेक संगोष्ठियों का आयोजन आवश्यक है। प्रस्तुत संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता 'नवम्बर 2008 जिनभाषित 31 विमल कुमार सेठी, गया गुणस्थान विषयक राष्ट्रीय विद्वत्संगोष्ठी सम्पन्न गया (बिहार) दिनांक १२.१०.२००८ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के सुयोग्य शिष्य मुनि श्री प्रमाण सागरजी महाराज के ससंघ सान्निध्य में दिगम्बर जैनसमाज, गया (बिहार) की ओर से दिनांक 10 से 12 अक्टूबर 2008 तक आयोजित त्रिदिवसीय 'जैन तत्त्व विद्या और गुणस्थान' विषयक राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी अनेक उपलब्धियों के साथ सम्पन्न हुई। Jain Education International प्रस्तुत संगोष्ठी में करणानुयोग के गूढ़तम विषय 'गुणस्थान' के विभिन्न पक्षों पर देश के प्रतिष्ठित तीस विद्वानों ने अपने शोध आलेखों के माध्यम से जो विवेचना प्रस्तुत की उससे उपस्थित हजारों नेताओं ने लाभ उठाया और गुणस्थानों के रहस्य को समझा । यह ज्ञातव्य है कि For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org

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