Book Title: Jinabhashita 2007 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 35
________________ स्व. पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य की प्रतिमा का अनावरण सागर (म.प्र.) में कटरा-नमकमंडी के त्रिपथ पर स्थापित की गयी स्व. डॉ. पं. पन्नालाल जी जैन साहित्याचार्य का प्रतिमा का अनावरण और मार्ग-पट्टिका का लोकार्पण उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज एवं आर्यिका दृढ़मति माता जी के ससंघ सान्निध्य में म.प्र. शासन के नगरीय प्रशासन एवं विकास तथा अवास-पर्यावरण मंत्री श्री जयंत मलैया द्वारा समारोहपूर्वक किया गया। प्रतिमा की स्थापना एवं कटरा नमक मंडी कीर्ति स्तंभ से जामा मस्जिद तक के मार्ग का नाम साहित्याचार्य डॉ. पन्नालाल जैन के नाम पर शासन द्वारा किये जाने के उपलक्ष्य में श्री जयंत मलैया ने कहा कि इतनी जल्दी प्रतिमा की स्थापना करने के लिये स्थानीय निकाय और राज्य शासन बधाई के पात्र हैं। समारोह को संबोधित करते हुए नगर-विधायिका श्रीमती सुधा जैन ने कहा कि सागर के इतिहास में लाखा बंजारा, डॉ. गौर और महाकवि पद्माकर के साथ पं.पन्नालाल जी जैन का नाम अमर हो गया। विधायक श्री कपूरचंद घुवारा ने कहा कि विद्वान् का समारोह देखकर मन में प्रसन्नता हो रही है कि उनकी प्रेरणा से आगे भी ऐसे ही विद्वान् समाज से निकलें। पूर्व सांसद डालचंद जैन ने कहा कि पन्ना और रत्न ऐसे दो रत्न सागरवासियों को मिले है, जो अपनी प्रतिभा के नाम से देश और दुनियाँ में जाने जाते हैं। पूर्व मंत्री विठ्ठलभाई पटेल ने कहा कि आज सागर के हीरे की इज्जत की गयी है। स्वागत भाषण डॉ. जीवनलाल जैन और स्वागत गीत कवि ऋषभ समैया ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए श्रीमती मीना पिंपलापुरे ने कहा कि स्थापित प्रतिमा के माध्यम से आनेवाली पीढ़ी को भी उनके बताये मार्ग पर चलने की दिशा मिल सकेगी। जनसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने कहा कि पंडित जी की साहित्यिक सेवाएँ दुनियाँ के कोने-कोने में स्वीकारी गयी हैं। उनकी प्रतिमा का अनावरण सागर, म.प्र. तथा भारत के लिये ही नहीं है, वरन् दुनियाँ के लिये गौरव की बात है, क्योंकि उन्होंने अन्त:राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य के क्षेत्र में काम किया है। आर्यिका दृढमति माता जी ने कहा कि गुणों और गुणवानों की कद्र करना भारतीय संस्कृति रही है। ज्ञान की ज्योति जिनके जीवन में प्रज्वलित थी, श्रावक के योग्य व्रत, संयम जिनके जीवन में शोभित था, ऐसे पंडित पन्नालाल जी साहित्याचार्य को पाकर सागर धन्य हुआ है। ब्र. जिनेश जी ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए पंडितजी को सागर की पहचान बताते हुए स्वयं को उनका असली बेटा बताया। डॉ. भागचंद जी भास्कर ने पंडितजी के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा करते हुए कहा कि यह पहला अवसर है, जब चतुष्पथ पर किसी पंडित की प्रतिमा का स्थापन और मार्ग का नामकरण किया जा रहा है। डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने कहा कि पंडितजी का विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग से अटूट संबंध था। साहित्यकार डॉ. आर.डी. मिश्र ने पंडित जी को ऋषितुल्य नमन करते हुए कहा कि पंडित जी के अंदर सृजन की चेतना थी। संस्कृत के प्रो. एवं सुप्रसिद्ध पत्रिका 'जिनभाषित' के सम्पादक डॉ. रतनचंद्र जैन, भोपाल ने पंडित जी के व्यक्तित्वको ज्ञाननिष्ठ, धर्मनिष्ठ एवं साहित्यसेवापरायण बताते हुए कहा कि उनकी प्रतिमा की स्थापना कर सागर शहर ने अपना श्रृंगार किया है। पंडित शीतलचन्द्र जयपुर ने कहा कि पंडित जी ने लगभग 93 ग्रंथों का अनुवाद और संपादन किया है। उनके द्वारा किये गये ग्रंथों और पुराणों के अनुवाद से जिन मंदिरों में स्वाध्याय का वातावरण बना है। डॉ. भागचंद्र जैन 'भागेन्दु' दमोह ने कहा कि पण्डित जी विवादरहित विद्वत्ता के धनी और एक महान् साहित्यकार थे। पूर्व प्राचार्य नेमीचंद्र जैन ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि पंडित जी की शिक्षा को हम अपने जीवन में उतारें। जनसभा को पंडित गुलाबचंद जी दर्शनाचार्य जबलपुर ने भी संबोधित किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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