Book Title: Jin Pratima Ke Vishay Me Shiksha Author(s): Mehulprabhsagar Publisher: Mehulprabhsagar View full book textPage 4
________________ नाम ठवण द्रव्य भावसुं रे, श्री अनुयोग दुवार जिन मुनि सेवा कारणे रे, आरंभ जे इहां थाइ च्यारि निषेपा जिनतणा, वंदे पूजे रे ध्यावे अप्प करम बहु निज्जरा, भगवति सूत्रे रे भाषे जिनराइ समकितधार कि सुणज्यो रे सुविचारी, ||17 || कि सुणज्यो रे सुविचारी, / / 5 / / सूत्र वचन जे ओलवे रे, जे आणे संदेह भावपूजा कही साधुनै रे, श्रावक ने द्रव्य भाव मिथ्यामत ना उदयथी, भारीकरमा रे जाणो नर तेह धरम सकल जिनसेव में सिवसुख नो रे एहिज उपाय कि सुणज्यो रे सुविचारी, ||18 || कि सुणज्यो रे सुविचारी, | 16 || जिनमूरति नंदीजीये रे, तिण नंद्या जिनराय दान सील तप दोहिला रे, अहनिसि ए नवि थाइ पूजा ना अंतरायथी, जीव बंधइ रे दसविधि अंतराय भावे जिनबिंब वंदता, भवभवना रे सहु पातक जाय कि सुणज्यो रे सुविचारी, ||19 / / कि सुणज्यो रे सुविचारी,117 || अंग उपंग सिद्धांत में रे, श्रावकनइ अधिकार नाम जपंता जिन तणो रे रसना जौ निरमल थाय न्हाया कयवलि कम्मिया. पूजाना रे ए अरथ विचार तौ जिनबिंब जुहारता, निहचै सुं रे हुइ निरमल काय कि सुणज्यो रे सुविचारी, | |20 / / कि सुणज्यो रे सुविचारी, | 18|| जीवाभिगम उवाईये रे, ज्ञाता भगवती अंग साधु अने श्रावक तणा रे, कह्या धर्म दोइ प्रकार रायपसेणी में वली, जिनपूजा रे भाखी सतरह भंग श्री जिनवर ने गणधरे सर्वविरती रे देसविरति विचार कि सुणज्यो रे सुविचारी, | |21|| कि सुणज्यो रे सुविचारी,। 19 / / / श्री भगवंतइ भाषीया रे, पूजा ना फल सार श्रावक ने थावर तणी रे, न पले दया लिगार हित सुख मोक्ष कारण सही, ए अक्षर रे मन में अवधार सवा विश्वा पाले सही, जो होवे रे बारह व्रतधार कि सुणज्यो रे सुविचारी, ||22 / / कि सुणज्यो रे सुविचारी, / / 10 / / चित्रलिखित नारी तणो रे, रूप देख्यां कामराग वीस विश्वा पाले जती रे, रहतो निज आचार तिम वैराग नी वासना, मनि उपजे रे देख्यां वीराग सरसव मेरु नो अंतरो, गृहधरम रे मुनि धरमइ संभार कि सुणज्यो रे सुविचारी, ||23 || कि सुणज्यो रे सुविचारी, ||11 / / श्रीशिज्जभव गणधरू रे, तिम वलि आद्रकुमार तिण कारण श्रावकभणी रे, समकित प्रापति काज प्रतिबधा प्रतिमा थकी, तिणे पाम्यो रे भवसागर पार पूजा श्रीजिनबिंब नी, मुनि सेवा रे बोली जिनराज कि सुणज्यो रे सुविचारी, | |24 / / कि सुणज्यो रे सुविचारी, ||12|| दानव मानव देवता रे, जे धरे समकित धर्म पर्व दिवस पोसो कयो रे, आवश्यक दोइ वार ते उत्तम करणी करे, ते न करे रे कोई कुच्छित कर्म अवसर सामाइक करे भोजन करे रे जिन मुनिनइ जुहार कि सुणज्यो रे सुविचारी, | 125 / / कि सुणज्यो रे सुविचारी, ||13 / / सर्वलोक मांहे अबे रे, जिनवर चैत्य जिकेवि घर करसण व्यापार में रे, भाख्यो छे आरंभ ते पंचम आवश्यके, आराधे रे मुनि श्रावक बेवि पूजा जिहां जिनबिंबनी, तिहां भाषी रे जिनभगति अदंभ कि सुणज्यो रे सुविचारी, ||26 || कि सुणज्यो रे सुविचारी, ||14 || सार सकल जिनधर्मनो रे, जिनवर भाष्यो एह पुत्र कलत्र परिवारमइ रे, शुद्ध न हवे तप सील लक्षमीवल्लभ गणि कहे, जिनवचने रे मति धरो संदेह दान थकी पूजा थकी, श्रावक ने रे थाये सुख लील कि सुणज्यो रे सुविचारी, ||27 || कि सुणज्यो रे सुविचारी, ||15 / / || इति श्री जिनप्रतिमा विषये सम्यग्दृष्टीनां जिनवर वचन उथापिनइ रे निज मन कलपना मेलि शिक्षा सज्झाय संपूर्णम् / / जिनमूरति पूजा तजे, ते जाणो रे मिथ्यात नी केलि -जिनहरि विहार धर्मशाला कि सुणज्यो रे सुविचारी, ||16 / / तलेटी रोड़, पालीताना-364270 गुजरात 17| जहाज मन्दिर * फरवरी - 2017Page Navigation
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