Book Title: Jin Pratima Ke Vishay Me Shiksha
Author(s): Mehulprabhsagar
Publisher: Mehulprabhsagar

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Page 3
________________ HAMATPORAM YAAMATPORARY वाचक सहजकीर्ति, विनयमेरु, महाकवि जिनहर्ष, जैसलमेर) के शुभप्रयत्न से प्राप्त हुई है। एतदर्थ वे लाभवर्धन, उपाध्याय रामविजय, उपाध्याय साधुवादाह हैं। जोधपुर में इस पुस्तकनुमा हस्तलिखित लक्ष्मीवल्लभ, भुवनकीर्ति, अमरसिंधुर इत्यादि। प्रति क्रमांक 29813 में अनेक लघु-दीर्घ रचनाओं के साथ जिनकी रचित सहस्रों कृतियों से न केवल जैन प्रस्तुत कृति पृष्ठ संख्या 149 पर लिखी हुई है। प्रति के साहित्य अपितु समग्र भारतीय वाङ्मय समृद्ध हैं। हर पृष्ठ पर प्रायः सत्ताइस पंक्ति और हर पंक्ति में लगभग प्रस्तुत कृति के रचनाकार उपाध्याय बीस अक्षर है। अक्षर सुंदर व स्पष्ट है। लक्ष्मीवल्लभजी महाराज है। ये खरतरगच्छीय क्षेमकीर्ति शाखा के उपाध्याय लक्ष्मीकीर्ति के शिष्य थे। पईयावसानमुश्रीवीरनारे धरिमनि इनका मूल नाम 'हेमराज' और उपनाम सादसंग पामीडडासवधी नपानदरसागरवारि 'राजकवि' था। आपकी जन्म-दीक्षा तगुणवंगकि सुपिडरिसुविवारी हतडिश आदि तिथि और स्थलों की जानकारी गवेषणीय है। संस्कृत, राजस्थानी और रमनऊतीसककि घाइड्यासमकितारी डिन हिन्दी तीनों भाषाओं में इन्होंने अनेक तिमादिममारिणीमाधीश्रीदिनगड समकिन रचनायें की हैं। कल्पसूत्र की धरमनिसरदसवडलानिधितरिवानेडिदाज कल्पद्रुमकलिका टीका आपकी प्रसिद्ध कि सुय अदनानामडापासीयर धरीयाडहनीया कृति है। साथ ही संस्कृत भाषा में कुमारसंभव महाकाव्य टीका, ण मतितासमुदायूता सफकरणारघाटाअपमाण उत्तराध्ययन टीका, धर्मोपदेश काव्य कि सुप३ वंदनादसंरे समकितीअरिहंत स्वोपज्ञ टीका, पंचकुमार कथा, देव तिमरिदतनाविनी मनसूरसारनितसे जिनकुशलसूरि अष्टक सहित स्फुटक |वकि सुनाममणवातावसंरे श्रीअनुयोग कृतियां भी प्राप्त होती है। प्राकृत में चौवीस दंडक विचार कुलक उपलब्ध होता है। मरुगुर्जर लक्ष्मीवल्लभोपाध्यायजी रचित रचनाओं में अभयंकर श्रीमती चौपई, अमरकुमार जिनप्रतिमा के विषय में सम्यग्दृष्टी को रास, भावना विलास, भर्तृहरि कृत शतकत्रय स्तबक, शिक्षा सज्झाय नेमि राजुल बारहमासा, विक्रमादित्य पंचदंड चौपाई, कृष्ण रुक्मिणी वेली बालावबोध, संघपड़क चरण नमुं श्री वीर ना रे, धरि मनि भाव अभंग बालावबोध, नवतत्त्व भाषा बन्ध, वर्तमान जिन पामीजै जसु सेवथी, ज्ञान दरसण रे चारित गणचंग । 11 चौवीसी, बत्तीसी साहित्य, बावनी साहित्य सहित कि सुणज्यो रे सुविचारी, विविध स्तवनों की रचना कर श्रुतज्ञान की सेवा की तुम्हे तजिज्यो रे मनहुंती संक है। वैद्यक सम्बन्धी भी दो रचनायें मिलती है-मूत्र कि थाइज्यो समकितधारी। आंकडी।। परीक्षा और कालज्ञान। जिनप्रतिमा जिनसारिखी रे, भाषी श्रीजिनराज जिनप्रतिमा विषये सम्यग्दृष्टीनां शिक्षा सज्झाय नामक कृति खरतरगच्छ साहित्य कोश में समकितधर मनि सरदहे, भवजल निधि रे तरिवानै जिहाज क्रमाक 6060 पर अंकित है। परंतु कर्ता के रूप में कि सुणज्यो रे सुविचारी,।।2।। लब्धिकल्लोल उपाध्याय गुरुनाम- विमलरंग। जेहनौ नाम जपी जीयै रे, धरीयै जेहनी आण उपाध्याय लिखा गया है जो त्रुटिपूर्ण है। मूरति तास उथापता, सहु करणी रे थाये अप्रमाण प्रति परिचय कि सुणज्यो रे सुविचारी, | 3 || जिनप्रतिमा विषये सम्यग्दृष्टीनां शिक्षा वंदे पूजै भावसुं रे, समकिती अरिहंत देव सज्झाय नामक हस्तलिखित कृति की प्रतिलिपि तिम अरिहंतना बिंबनी, मनसुधइ रे सारे नितसेव राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर सग्रहालय कि सुणज्यो रे सुविचारी,114|| से महेन्द्रसिंहजी भंसाली (अध्यक्ष जैन ट्रस्ट, जहाज मन्दिर • फरवरी - 2017 |16

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