Book Title: Jambuswami Charitram
Author(s): Rajmalla Pandit, Jagdishchandra Shastri
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
View full book text
________________
(११)
शिष्य थे । इस पुस्तकको जिनदासने किसी संस्कृत काव्यके आधारसे रचा है। इसमें और पं० राजमल्लके जम्बूस्वामीके कथानकमें कुछ अंतर्कथामें भेद भी पाया जाता है।
जम्बूस्खामीकी कथा जम्बूद्वीप-भरतक्षेत्रमें मगध नामक देश है । उसमें श्रेणिक नामका राजा राज्य करता था। एक दिन राजा श्रेणिक सभामें बैठे हुए थे। वनपालने आकर विपुलाचल पर्वतपर वर्धमान स्वामीके समवशरणके आनेका समाचार दिया। श्रेणिक सुनकर परम आनन्दित हुए और उन्होंने अपने सैन्य, कुटुम्ब आदिके साथ भगवान्का दर्शन करनेके लिये प्रयाण कियो । श्रेणिक वर्धमान स्वामीको नमस्कार करके बैठ गये और उन्होंने तत्त्वोपदेश सुननेकी अभिलाषा प्रकट की। श्रेणिकने तत्त्वोपदेशका श्रवण किया। इतनेमें कोई तेजोमय देव आकाशमार्गसे अवतरित होता हुआ दृष्टिगोचर हुआ। श्रेणिक राजाके द्वारा इस देवके विषयमें पूछे जानेपर गौतम स्वामीने उत्तर दिया कि इसका नाम विद्युन्माली है और यह अपनी चार देवांगनाओंके साथ यहाँ
१ इस पुस्तकको मुन्शी नाथूराम लमेचूने सन् १९०२ में लखनऊमें छपाया था। इसीके आधारसे मास्टर दीपचंदजीने इसे हिन्दी गद्यमें किया है, जो सूरतमें छपा है। ____२ हेमचन्द्र आचार्यकी कथानुसार महावीरकी बन्दना करनेके लिये जाते हुए दो सैनिक मार्ग में तपश्चरण करते हुए प्रसन्नचन्द्र मुनिको देखकर उसके तपके विषयमें कुछ चर्चा करते हैं । बादमें उसी मार्गसे जाते हुए श्रोणिक राजा उस मुनिको बन्दना करके समवशरणमें पहुंचकर गौतम खामीसे उक्त मुनिके विषयमें प्रश्न करते हैं । गौतम खामी इस प्रश्नके उत्तरमें पोतनपुरके राजा सोमचन्द्र तथा उनके प्रसन्नचन्द्र और वल्कलचीरी नामके दो पुत्रोंकी कथाको विस्तारसे कहते हैं। यह कथा बहुत रोचक है । इसके लिये पाठकोंको परिशिष्टपर्व देखना चाहिये।