Book Title: Jambuswami Charitram
Author(s): Rajmalla Pandit, Jagdishchandra Shastri
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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अध्यात्मकमळकी रचना की हो, अथवा यह भी संभव है कि पहिले अध्यात्मकमळकी रचना हो चुकी हो तथा कविने पंचाध्यायीका निर्माण आरंभ कर दिया हो और असमयमें ही वे काल-धर्मको प्राप्त हो गये हों ।
इन चार कृतियोंके अतिरिक्त संभव जान पड़ता है कि कविने और भी रचनाओंका निर्माण किया है और उन रचनाओं में किसी एक गद्यकी कृतिके होनेका भी अनुमान है।
जैन- साहित्य में जम्बूखामीका स्थान
दिगम्बर और श्वेताम्बर- परम्परामें जम्बूस्वामीका नाम बहुत महत्त्वके साथ लिया जाता है। महावीर स्वामीके निर्वाणके पश्चात् गौतम, सुधर्मा और जम्बूस्वामी इन तीन केवलियोंका होना दोनों ही आम्नायोंको मान्य है । इसके बाद ही दोनों सम्प्रदायोंकी परम्परामें भेद पाया जाता है । दिगम्बर- परम्परामें जम्बूस्वामीके पश्चात् विष्णु, नन्दी, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु, तथा श्वेताम्बर - परम्परामें प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, आर्यसंभूतविजय और भद्रबाहु इन पाँच श्रुतकेवलियोंके नाम आते हैं। जो कुछ भी हो, संप्रदायोंमें अन्तिम केवली स्वीकार किये गये हैं और इसी कारण दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों विद्वान् इनका जीवनचरित लिखने में प्रवृत्त हुए हैं। श्वेताम्बर वाङ्मय में सर्वप्रथम पयन्ना (प्रकीर्णक) साहित्यमें जम्बूपयन्नाका नाम आता है। श्वेताम्बर जैन कान्फरेन्सद्वारा प्रकाशित जैन ग्रंथावलिसे विदित होता है कि जम्बूपयन्नाकी यह प्रति डेक्कन कालेज पूनाके भंडार ( भांडारकर इन्स्टिट्यूट) में मौजूद है । इसके कर्त्ताका नाम अविदित है । लोकके कॉलम में 'पत्र ४५ लाइन ५
जम्बूस्वामी दोनों