Book Title: Jambudwip aur Adhunik Bhaugolik Manyato ka Tulnatmak Vivechan Author(s): Harindrabhushan Jain Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf View full book textPage 4
________________ जिन सात क्षेत्रों को विभाजित करते हैं उनके नाम (५) जम्बूद्वीप-प्राचीन एवं आधुनिक भौगोलिक ! हैं-भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत मान्यताओं का तुलनात्मक विवेचन और ऐरावत । इन सातों क्षेत्रों में बहने वाली चौदह (क) सप्तद्वीप-विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण | नदियों के क्रमशः सात युगल हैं, जो इस प्रकार हैं- वायुपुराण और ब्रह्माण्ड पुराण प्रभृति पुराणों में गंगा, सिन्धु, रोहित-रोहितास्या, होन्त-हार- सप्तद्वीप और सप्तसागर वसुन्धरा का वर्णन आया कान्ता, सीता-सीतोदा, नारी-नरकान्ता, सुवर्णकूला है। वह वर्णन जैन हरिवंश पुराण और आदि-K रुप्यकुला तथा रक्ता-रक्तोदा। इन नदी युगलों में पर पुराण की अपेक्षा बहुत भिन्न है। महाभारत में से प्रत्येक युगल की पहली-पहली नदी पूर्व समुद्र तेरह द्वीपों का उल्लेख है। जैन मान्यतानुसार को जाती है और दूसरी-दूसरी नदी पश्चिम प्रतिपादित असंख्य द्वीप-समद्रों में जम्ब, क्रौंच समुद्र को। और पुष्कर द्वीप के नाम वैदिक पुराणों में सर्वत्र भरत क्षेत्र का विस्तार पाँच सौ छब्बीस सही हा आए हैं। छह बटे उन्नीस योजन है । विदेह पर्यन्त पर्वत और समुद्रों के वर्णन के विष्णु पुराण में जल के स्वाद क्षेत्रों का विस्तार भरतक्षेत्र के विस्तार से दूना- के आधार पर सात समुद्र बतलाए हैं । जैन परम्परा दना है। उत्तर के क्षेत्र और पर्वतों का विस्तार में भी असंख्यात समुद्रों को जल के स्वाद के आधार दक्षिण के क्षेत्र और पर्वतों के समान हैं। पर सात ही वर्गों में विभक्त किया गया है। लवण, जम्बूद्वीप के अन्तर्गत देवकुरु और उत्तरकुरु सूरा, घत, दुग्ध, शुभोदक, इक्ष और मधुर जल । नामक दो भोगभूमियाँ हैं। उत्तरकुरु की स्थिति इन सात वर्गों में समस्त समुद्र विभक्त हैं। विष्ण सीतोदा नदी के तट पर है। यहाँ निवासियों की पुराण में 'दधि' का निर्देश है, जैन परम्परा में इसे इच्छाओं की पूर्ति कल्पवृक्षों से होती है। इनके 'शुभोदक' कहते हैं। अतः जल के स्वाद की दृष्टिमा अतिरिक्त हैमवत, हरि, रम्यक तथा हैरण्यवत क्षेत्र में सात प्रकार का वर्गीकरण दोनों ही परम्पराओं भी भोगभूमियाँ हैं। शेष भरत, ऐरावत और में पाया जाता है। विदेह (देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़कर) कर्म- जिस प्रकार वैदिक पौराणिक मान्यता में भूमियाँ हैं। अन्तिम द्वीप पुष्करवर है, उसी प्रकार जैन मान्यता भरतक्षेत्र हिमवान् कुलाचल के दक्षिण में में भी मनुष्य लोक का सोपान वही पुष्करार्ध हैं। पर्व-पश्चिमी समुद्रों के बीच स्थित है। इस क्षेत्र में तुलना करने से प्रतीत होता है कि मनुष्य लोक की सुकोशल, अवन्ती, पूण्ड, अश्मक, कुरु, काशी, सीमा मानकर ही वैदिक मान्यताओं में द्वीपों का कलिग, बंग, अंग, काश्मीर, वत्स, पांचाल, कथन किया गया है। इस प्रकार जैन परम्परा में मालव, कच्छ, मगध, विदर्भ, महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मान्य जम्बू, धातकी और पुष्करार्ध, इन ढाई द्वीपोंस कोंकण, आन्ध्र, कर्नाटक, कौशल, चोल, केरल, में वैदिक परम्परा में मान्य सप्तद्वीप समाविष्ट हो । शूरसेन, विदेह, गान्धार, काम्बोज, बाल्हीक, जाते हैं । यद्यपि क्रौंच द्वीप का नाम दोनों मान्यतरुष्क, शक, कैकय आदि देशों की रचना मानी जामसाज पाया है.7 शान निया गई है। की दृष्टि से दोनों में भिन्नता है। डा० नेमिचन्द्र शास्त्री-"आदिपुराण में प्रतिपादित भारत", गणेशप्रसाद वर्णी ग्रन्थमाला वाराणसी,१६६८, पष्ठ ३६-६४: आदिपुराण में: प्रतिपादित भगोल प्रथम परिच्छेद तथा तत्त्वार्थसूत्र की सर्वार्थसिद्धि टीका, सम्पा दक पं० फूलचन्द्र शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, १९६५, तृतीय अध्याय, पृष्ठ २११-२२२ । । २ डा० नेमिचन्द्र शास्त्री 'आदिपुराण में प्रतिपादित भारत', पृष्ठ ३६-४० । पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास ३८६ 000 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain E l international Cate&Personaruse OnlyPage Navigation
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