Book Title: Jambudwip aur Adhunik Bhaugolik Manyato ka Tulnatmak Vivechan
Author(s): Harindrabhushan Jain
Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ फैले क्रमशः भद्रवर्ष, इलावर्ष तथा उत्तरकुरु हैं। (४) जम्बूद्वीप-जैन मान्यता तत्पश्चात् पुनः उत्तर की ओर क्रमशः नील पर्वत, समस्त जैन पुराण, तत्त्वार्थ सूत्र (तृतीय श्वेत वर्ष, श्वेत पर्वत, हिरण्यक वर्ष, शृंगवान् अध्याय), त्रिलोक प्रज्ञप्ति आदि में समस्त विश्व पर्वत हैं। पश्चात् ऐरावत वर्ष और भीर का भौगोलिक वर्णन उपलब्ध होता है। लोक के समुद्र है। इसी प्रकार मेरु के दक्षिण में पश्चिम से तीन विभाग किये गये हैं-अधोलोक, मध्यलोक पूर्व तक फैले हुए केतुमाल वर्ष एवं जम्बूद्वीप हैं। तथा ऊर्ध्वलोक । मेरु पर्वत के ऊपर ऊर्ध्वलोक, पश्चात् पुनः दक्षिण की ओर क्रमशः निषध पर्वत, नीचे अधोलोक एवं मेरु की जड़ से चोटी पर्यन्त हरिवर्ष, हेमकूट या कैलाश, हिमवतवर्ष, हिमा- मध्यलोक है। लय पर्वत, भारतवर्ष तथा लवण समुद्र है।' यह मध्यलोक के मध्य में जम्बूद्वीप है, जो लवण समुद्र वर्णन जैन भौगोलिक परम्परा के बहुत निकट है। से घिरा है । लवण समुद्र के चारों ओर धातकीखण्ड (३) जम्बूद्वीप-पौराणिक मान्यता नामक महाद्वीप है। धातकीखण्ड द्वीप को कालोप्रायः समस्त हिन्दू पुराणों में पृथ्वी और उससे दधि समुद्र वेष्टित किये हुए है । अनन्तर पुष्करवर सम्बन्धित द्वीप, समुद्र, पर्वत, नदी, क्षेत्र आदि का द्वीप, पुष्करवर समुद्र आदि असंख्यात द्वीप समुद्र वर्णन उपलब्ध होता है। पुराणों में पृथ्वी को सात हैं । पुष्करवरद्वीप के मध्य में मानुषोत्तर पर्वत है द्वीप-समुद्रों वाला माना गया है। ये द्वीप और जिससे इस द्वीप के दो भाग हो गये हैं । अतः जम्बूसमुद्र क्रमशः एक-दूसरे को घेरते चले गये हैं। द्वीप, धातकीखण्ड द्वीप और पुष्कराध द्वीप इन्हें इस बात से प्रायः सभी पुराण सहमत हैं कि मनुष्य क्षेत्र कहा गया है। जम्बूद्वीप पृथ्वी के मध्य में स्थित है और लवण जम्बूद्वीप का आकार थाली के समान गोल है। समुद्र उसे मेरे हुए है। अन्य द्वीप समुद्रों के नाम इसका विस्तार एक लाख योजन है। इसके बीच और स्थिति के बारे में सभी पूराण एकमत नहीं में एक लाख चालीस योजन ऊँचा मेरु पर्वत है। हैं । भागवत, गरुड़, वामन, ब्रह्म, मार्कण्डेय, लिंग, मनुष्य क्षेत्र के पश्चात् छह द्वीप-समुद्रों के नाम इस कूर्म, ब्रह्माण्ड, अग्नि, वायु, देवी तथा विष्णु पुराणों प्रकार हैं-वरुणवर द्वीप-वरुणवर समुद्र, के अनुसार सात द्वीप और समुद्र क्रमशः इस प्रकार क्षीरवर द्वीप-क्षीरवर समुद्र, घृतवरद्वीप-घृतवर समुद्र, इक्षुवरद्वीप-इक्षवर समुद्र, नन्दीश्वर-द्वीप१-जम्बूद्वीप तथा लवण समुद्र, नन्दीश्वर समुद्र, अरुणवरद्वीप, अरुणवर समुद्र, २-प्लक्ष द्वीप तथा इक्षु सागर, इस प्रकार स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त असंख्यात ३-शाल्मली द्वीप तथा सुरा सागर, द्वीप समुद्र हैं। ४-कुशद्वीप तथा सपिषु सागर, __ जम्बूद्वीप के अन्तर्गत सात क्षेत्र, छह कुला५.-क्रौंच द्वीप तथा दधिसागर, चल और चौदह नदियाँ हैं। हिमवान्, महाहिम६-शक द्वीप तथा क्षीर सागर और वान्, निषध, नील, रुक्मो और शिखरी ये छह ७-पुष्कर द्वीप तथा स्वादु' सागर कुलाचल हैं। ये पूर्व से पश्चिम तक लम्बे हैं । ये १ श्री एस० एम० अली, "दि ज्याग्राफी आफ द पुरान्स' पृ० ३२ तथा पृ० ३२-३३ के मध्य में स्थित, चित्र म सं०२ 'दि वर्ल्ड आफ महाभारत-डायनामेटिक' । २ "जियो ऑफ पुरान्स" पृष्ठ-३८, अध्याय-द्वितीय-"पुराणिक कान्टीनेन्ट्स एण्ड औशन्स"। पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास 00-600 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 6000 ३८५ Loucation International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10