Book Title: Jambuchariyam
Author(s): Jinvijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 10
________________ प्रथमावृत्तिकी प्रस्तावना गुणपाल मुनि रचित प्राकृत भाषामय इस 'जंबुचरियं' की एकमात्र प्राचीन प्रति हमको जेसलमेर के एक ज्ञानभण्डार में उपलब्ध हुई जो ताडपत्रों पर लिखी हुई है । सन् १९४२ के डीसेंबर मास से १९४३ के अप्रेल तक, हमने जेसलमेर के ज्ञानभण्डारों का निरीक्षण किया और वहाँ पर उपलब्ध सैंकडों ही ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ आदि करवाई एवं उनमें से अनेक अप्रकाशित और अन्यत्र अप्राप्य ग्रन्थों को प्रकाश में लाने का भी यथाशक्य और यथासाधन प्रयत्न प्रारम्भ किया । इनमें से कुछ ग्रन्थ इसी 'सिंघी जैनग्रन्थमाला' में ग्रथित हो कर प्रकट होने जा रहे हैं और कुछ ग्रन्थ, हमारे निर्देशकत्व में प्रस्थापित और प्रचालित जोधपुरावस्थित 'राजस्थान प्राच्यतत्त्वान्वेषण मन्दिर (राजस्थान ओरिएण्टल रीसर्च इन्स्टीट्यूट)' द्वारा प्रकाश्यमान 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' में गुम्फित हो कर प्रकट हो रहे हैं । जिन जम्बू महामुनि के जीवन को उद्दिष्ट कर इस चरित की रचना हुई है उनकी यह जीवन कथा जैनसाहित्य में बहुत प्रसिद्ध है। इस कथा का वर्णन करने वाली सैंकडों ही ग्रन्थरचनाएँ जैन साहित्य के विपुल भण्डार में उपलब्ध होती हैं । प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, प्राचीन हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी आदि भारत की आर्यकुल की कई प्राचीन-अर्वाचीन भाषाओं में इस कथा विषयक छोटी-बड़ी अनेकानेक रचनाएँ मिलती ही हैं पर कन्नड और तामिल जैसी द्राविड भाषाओं की साहित्य निधि में भी जम्बू मुनि की अनेक कथाएँ उपलब्ध होती हैं। जैन इतिहास के अवलोकन से निश्चित होता है कि ये जम्बू मुनि एक ऐतिहासिक व्यक्ति हो गए हैं और वे श्रमण भगवान् श्रीमहावीर देव के विशिष्ट शिष्य एवं उत्तराधिकारी गणधर सुधर्म के मुख्य शिष्य थे । ज्ञातपुत्र श्रमण तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर के निर्वाण के बाद, उनके अनुगामी निर्ग्रन्थ श्रमणसमूह के नेता के रूप में, जम्बू मुनि का सर्वप्रधान स्थान रहा है । महावीर देव के हजारों ही श्रमणशिष्यों में, जम्बू मुनि अन्तिम केवली माने जाते हैं और इनके बाद किसी श्रमण को निर्वाणपद की प्राप्ति नहीं हुई ऐसा विधान मिलता है । तीर्थंकर महावीर के निर्वाण के बाद, ६४ वर्ष अनन्तर, जम्बू मुनि निर्वाणपद को प्राप्त हुए। JainEducation International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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