Book Title: Jainendra Kahani 03
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 20
________________ देवी-देवता अपने ऊपर हम एक स्वामी चाहती हैं। सतीत्व और पत्नीत्व और मातृत्व, इनका बोझ जब हम खुद उठाना चाहती हैं तब देवताओं को क्यों चिन्ता होती है ? असल बात तो यह है कि पत्नी का स्वामी बनकर भी उस देवता को तो अपनी उच्छृखलता पर बाधा ही मालूम होती है । वह निर्द्वन्द्व रहना चाहता है निर्द्वन्द्व । लेकिन हम गुलाम बनकर भी उसकी निर्द्वन्द्वता नष्ट करेंगी, नष्ट करके ही छोड़ेंगी। आखिर ब्रह्माजी के पास मामला पहुँचा । उन्होंने दोनों पक्षों को सुनकर देवी-देवताओं को किंचित् प्रतीक्षा करने का परामर्श दिया। कहा, "विवाह का उदाहरण पहले आप लोग देख लीजिए। तब विचारपूर्वक जैसा हो, निर्णय कीजिएगा। देखिए, दूर, वह ग्रह आपको दीखता है न । उसका नाम पृथ्वी है। अभी तो वहाँ धरती ही तैयार हो रही है। किन्तु बहुत ही शीघ्र, अर्थात् कुछ ही लक्ष वर्षों में, वहाँ मनुष्य नामक प्राणी की सृष्टि कर दूंगा। वे पृथ्वी के व्यक्ति परस्पर पति-पत्नी बना करेंगे और वे परस्पर आकांक्षापूर्वक ही सन्तति प्राप्त किया करेंगे । वहाँ सतीत्व की भी महिमा होगी। तुम लोग उनके समाज को देखना। उसके बाद अपनी सम्मति स्थिर करना और मुझको कहना। तब तक के लिए असहयोग स्थगित रक्खो। इतने स्वर्ग को स्वर्ग ही रहने दो और उसका वर्तमान कान्स्टिट्य शन भी रहने दो। पीछे उसे मानवलोक की ही भाँति बनाना चाहो तो दूसरी बात है। तबका तब देखा जायगा।" ___ उस समय से स्वर्गलोक में यद्यपि असहयोग स्थगित है, किन्तु इधर उनमें जोर-शोर से इस सम्बन्ध में विवेचन होने लगा है। दुनिया में विवाह भी है, तलाक भी है। स्वच्छन्दता भी है,

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