Book Title: Jainagamo me Mukti marg aur Swarup
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ जैनागमों में मुक्ति : मार्ग और स्वरूप | २९९ भुक्ति से प्राप्त सुख क्षणिक होता है इसलिए उसे पाकर प्राणी कमी तृप्त नहीं होता अपितु तृष्णा की ज्वाला में ही अहर्निश झुलसता रहता है । 'शाश्वत सुख' मुक्ति से ही मिलता है। उसे पाकर आत्मा असीम आनन्द की अनुभूति भी करता है पर भुक्ति की अपेक्षा मुक्ति का मिलना जरा मुश्किल है । भुक्ति और मुक्ति का द्वन्द्र "म" और "म" वर्णमाला के पवर्ग में जनम जनम के साथी हैं। भोग प्रवृत्ति का "भ" और भोग निवृत्ति का "म" प्रतीक है । भुक्ति एवं मुक्ति का शाब्दिक प्रादुर्भाव "भ" और "म" की प्रसूति का परिणाम है । 1 मुक्ति और मुक्ति की व्याप्ति व्यतिरेकव्याप्ति है का साम्राज्य है । अतः भुक्ति का भगत मुक्ति का उपासक सकता । आत्मा अनादिकाल से भुक्ति के लिए मटकता रहा है। मुक्ति का संकल्प अब तक मन में उदित नहीं हुआ है । क्योंकि वह अनन्तकाल से " तमसावृत" रहा है । अतः अपूर्वकरण के अपूर्व क्षणों में आत्मा का मोहावरण सम्यक्त्व सूर्य की प्रखर रश्मियों से जब प्रतनुभूत हुआ तो उसमें अमित ज्योति की आभा प्रस्फुटित हुई है और उसी क्षण वह भुक्ति से विमुख होकर मुक्ति की ओर मुड़ा है। लौकिक जीवन में भुक्ति का लोकोत्तर जीवन में मुक्ति और मुक्ति का उपासक भुक्ति का भगत नहीं बन भुक्ति आत्मा को अपनी ओर तथा मुक्ति आत्मा को अपनी ओर आकृष्ट करती रहती है । यही स्थिति मुक्ति एवं मुक्ति के इन्द्र की सूचक है। मुक्ति की अनुभूति (१) रत्नजटित स्वर्णपिंजर में पालित शुक बादाम - पिश्ते आदि खाकर भी सुखानुभव से शून्य रहता है । वह चाहता है— पिंजरे से मुक्ति और अनन्त आकाश में उन्मुक्त विहार । (२) पुंगी की मधुर स्वरलहरी से मुग्ध एवं पयपान से तृप्त पन्नगराज पिटारी में पड़कर पराधीनता की पीड़ा से अहर्निश पीड़ित रहता है। वह चाहता है- पिटारी की परिधि से मुक्ति और स्वच्छन्द संचरण । श्रम किये बिना ही कोमल शय्या, सरस आहार एवं शीतल सरस सलिल आदि की मानव अन्तर्वेदना से अनवरत व्यथित रहता है। वह चाहता है—स्वतन्त्रता एवं (३) नजर कैद में अनेकानेक सुविधाएँ पाकर भी स्वैर बिहार । कठोर परिश्रम के बाद भले ही उसे निवास के लिए पर्णकुटी, शयन के लिए भू-शय्या और भोजन के लिए अपर्याप्त अरस-विरस आहार भी क्यों न मिले, वह इतने से ही सन्तुष्ट रहेगा । पिंजर से मुक्त पक्षी, पिटारी से मुक्त पन्नग एवं नजरकैद से मुक्त नर मुक्ति के आनन्द की झलक पाकर शाश्वत सुख का स्वर समझ सकता है । न संसार रिक्त होगा और न मुक्ति भरेगी मुक्तिक्षेत्र में अनन्तकाल से अनन्त आत्माएँ स्थित हैं। मानव क्षेत्र में से अनेक आत्माएँ कर्म-मुक्त होकर प्रतिक्षण मुक्ति-क्षेत्र में पहुंचती रहती हैं किन्तु मुक्त आत्माएँ मुक्ति क्षेत्र से परावर्तित होकर मानव क्षेत्र में कभी नहीं आती हैं। क्योंकि कर्मबन्धन से सर्वथा मुक्त आत्मा के पुनः बद्ध होकर मानव क्षेत्र में लौट आने का कोई कारण नहीं है। अल्पज्ञ मन में यदा-कदा यह आशंका उभर आती है कि अनन्तकाल से मुक्त आत्माएँ मुक्ति क्षेत्र में जा रही हैं और लोटकर कभी कोई आत्मा आएगी ही नहीं तो क्या यह विश्व इस प्रकार आत्माओं से रिक्त नहीं हो जाएगा ? जैनागमों में इस आशंका का समाधान इस प्रकार दिया गया है healhadka Jain Education international For Private & Personal Use Only 000000000000 - 100 DREYF .:S.Bhaste/ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3