Book Title: Jain Vishwabharati Ladnu Ek Parichay
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ ११० र्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड (१) जयाचार्य स्मृति ग्रन्थ के रूप है आगम मंथन शीर्षक ग्रन्थ का प्रकाशन । (२) जयाचार्य-रचित समग्र साहित्य (लगभग तीन लाख पद्य) का प्रकाशन । (३) जयाचार्य-रचित प्रत्येक ग्रन्थ पर भूमिका एवं मूल्यांकन सम्बन्धी निबन्धों का प्रकाशन । परम श्रद्धेय आचार्यप्रवर, युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी एवं उनकी विद्वशिष्य मण्डली तो उपर्युक्त योजनाओं की सम्पूर्ति में संलग्न हैं ही--इनके अतिरिक्त समाज के अनेक विद्वानों का भी सक्रिय सहयोग मिला है और वे भी पूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त कर इस महाकार्य में जुट गये हैं । जयाचार्य का सम्पूर्ण साहित्य तीस ग्रन्थों व ५२ खण्डों में प्रकाशित किया जायेगा। श्री जथाचार्य ने राजस्थानी भाषा के गद्य और पद्य साहित्य की अनेक विधाओं में विपुल साहित्य का सृजन किया था। उनकी एक कृति भगवती सूत्र की जोड़ राजस्थानी भाषा का विशालतम ग्रन्थ माना जाता है। साहित्य जगत् में उपरोक्त योजनाओं की क्रियान्विति वस्तुतः एक अनमोल देन मानी जायेगी। अनुवाद इस संस्था के अन्तर्गत आगम व अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्थों का अंग्रेजी तथा दूसरी भाषाओं में अनुवाद का विभाग रथापित किया गया है। अब तक अग्रेजी भाषा में निम्नांकित १० ग्रन्थों का अनुवाद किया जा चुका है.-- (१) जैन सिद्धान्त दीपिका आचार्यश्री तुलसी (२) जैन न्याय का विकास आचार्य महाप्रज्ञजी (३) मन के जीते जीत युवाचार्य महाप्रज्ञजी (४) मैं, मेरा मन, मेरी शान्ति युवाचार्य महाप्रज्ञजी (५) अणुव्रत के आलोक में आचार्यश्री तुलसी (६) दशवकालिक सूत्र : एक समीक्षा, एक अध्ययन आचार्यश्री तुलसी एवं युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी (७) उत्तराध्ययन सूत्र : एक समीक्षा, एक अध्ययन (८) भगवान महावीर आचार्यश्री तुलसी (६) आपारो वाचनाप्रमुख आचार्यश्री तुलसी संपादक एवं विवेचक युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी (१०) उत्तराध्ययन (मूल) इसके अतिरिक्त और भी कई ग्रन्थ प्रकाशनार्थ तैयार हैं और हो रहे हैं। समस्त विश्व में जैन आगम, जैन दर्शन, जैन इतिहास एवं जैन साहित्य को प्रचलित करने हेतु संस्थान द्वारा संपादित यह अनुवाद-कार्य भी कम महत्त्व का नहीं है। साधना विश्राम-तुलसी अध्यात्म नीडम् (प्रज्ञा प्रदीप) जैन विश्वभारती के कार्यक्रम में साधना को विशेष महत्त्व दिया गया है। अध्यात्म साधना की विशिष्ट पद्धतियों को व्यवहार्य बनाने के लिए भगवान महावीर द्वारा प्रयुक्त ध्यान-पद्धतियों के पुनरद्धार हेतु प्रयत्न किये जा रहे हैं। साधना के लिए एक बासठ कक्षीय भवन का निर्माण चौथमल वृद्धिचंद गोठी चेरीटेबल ट्रस्ट द्वारा प्रदत्त राशि से किया गया है जिसका नाम 'प्रज्ञाप्रदीप' रखा गया है। इसका मुख्य कार्य है साधना की पद्धतियों का प्रशिक्षण देना । प्रेक्षाध्यान इसके द्वारा स्वीकृत साधना पद्धति है । प्रेक्षाध्यान के अभ्यास हेतु प्रेक्षा-ध्यान शिविरों का आयोजन किया जाता है। ऐसे उन्नीस शिविर अब तक हो चुके हैं । इन शिविरों द्वारा विभिन्न प्रान्तों के हजारों व्यक्ति अब तक लाभान्वित हो चुके हैं और होते जा रहे है । जनता में नीडम् (साधना) की प्यास का अनुभव कर ध्वनि मुद्रित प्रवचनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5