Book Title: Jain Vishwabharati Ladnu Ek Parichay
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
Catalog link: https://jainqq.org/explore/210864/1

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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... ...... .............. ...... ..... .. ........ .. .. .... ... .... . .. ..... जैन विश्वभारती, लाडनूं : एक परिचय 0 डॉ कमलेश कुमार जैन (जैन विश्व भारती, लाडनू) जैन विश्वभारती की अन्तश्चेतना के प्रेरणा-स्रोत हैं--जगत-बन्ध, अणुव्रत-अनुशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी। जो महामानव होते हैं, उन्हें स्वप्न बहुत ही कम आते हैं और जो स्वप्न आते हैं, वे समय पाकर अवश्य ही साकार होते हैं । कई दशकों पूर्व आचार्यप्रवर को जो स्वप्न आया, आपने अपने अन्तर्मन में जो कल्पना संजोयी, उसी का साकार रूप है शिक्षा, शोध, साधना, सेवा और संस्कृति के विकास एवं अभ्यास की तपोभूमि यह जैन विश्वभारती, जिसका जन्म आज से करीब दस वर्ष पूर्व हुआ। आचार्यप्रवर के इस स्वप्न को संजोने में स्व० श्री मोहनलालजी बांठिया, श्री जब्बरमलजी भण्डारी, श्री संपतमलजी भूतोड़िया, श्री सूरजमलजी गोठी आदि समाज के कर्णधार, लब्धप्रतिष्ठित व्यक्तियों का भी पूरा हाथ रहा । मानव-जाति को अध:पतन से बचाने के लिए व्यावहारिक स्तर पर मानवता-निर्माण की योजना की क्रियान्विति का साकार रूप यह विश्वभारती का आज जो चित्र सामने है, वह आज से तीन चार वर्ष पहले इतना विकसित नहीं था । जहाँ परमाराध्य आचार्यप्रवर एवं युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी की सतत बलवती सात्त्विक व आध्यात्मिक प्रेरणा से भारती में अन्तश्चेतना स्वरूप ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की त्रिवेणी का अजस्र स्रोत निरन्तर प्रवाहित होने से प्राण-प्रतिष्ठा का महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान फलीभूत हो रहा है, वहाँ समाज के उदारचेता, दानवीर, श्रद्धानिष्ठ महानुभावों की विसर्जन-वृत्ति एवं अमूल्य सेवाओं से भारती का बाह्याकार उत्तरोत्तर विकासोन्मुख है। भारती में पंचसूत्री विकास अबाधगति से प्रवहमान है। इस संस्थान की विविध गतिविधियाँ व्यापक हैं। इसके अन्तर्गत अध्ययन-अध्यापन, शोध-अनुसन्धान, साहित्यसंस्कृति प्रकाशन, योग-साधना, सेवा-चिकित्सा, मानव-कल्याण और अन्तर्राष्ट्रीय सौमनस्य मुख्य रूप से आते हैं। इन सभी गतिविधियों का प्रयोजन भारतीय संस्कृति और विशेषतः जैन-संस्कृति से प्राप्त होने वाले मानवीय मूल्यों को प्रकाश में लाना है। राजस्थान राज्य में नागौर जिले के सुप्राचीन लाडनू नगर के उत्तरी छोर पर ६० एकड़ भूमि पर जैन विश्वभारती के विशाल परिसर का विकास किया जा रहा है। अब तक इसके सुरम्य हरित आकर्षक परिसर में ६ क्वार्टर, ७ भवन एवं कई कुटीर व लघु आवास-कक्षों का निर्माण हो चुका है। जैन विश्वभारती की वर्तमान और भावी प्रवृत्तियाँ विभाग क्रम से निम्न प्रकार हैं१ शिक्षा विभाग-महिला महाविद्यालय (ब्राह्मी विद्यापीठ) (क) प्राक् स्नातक शिक्षा (ख) स्नातक शिक्षा (ग) स्नातकोत्तर शिक्षा २. साहित्य एवं साहित्यिक विभाग (क) जैन विद्या में डिप्लोमा (ख) पत्राचार शिक्षा (क) प्राक Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड (ग) जैन विद्या के अध्यापकों का प्रशिक्षण क्रम (घ) आवासीय विद्यालय एवं तकनीकी प्रशिक्षण (शिक्षा विकास में) शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा तथा साहित्य एवं सांस्कृतिक विभाग के अन्तर्गत ठोस कार्य किये जा रहे हैं। छात्र के बौद्धिक, नैतिक, चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास पर बल दिया गया है। अध्ययन और अध्यापन की आधुनिक तथा परम्परागत शैली का समन्वय कर एक नयी शैली का प्रयोग किया जा रहा है। यहाँ विश्व संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में जैनविद्या के मौलिक तत्त्वों के अध्यापन की विशेष व्यवस्था है। महिला महाविद्यालय और पारमार्थिक शिक्षण संस्था के पाठ्यक्रम में जैन दर्शन के गम्भीर अध्ययन की व्यवस्था को ध्यान में रखा गया है। यहाँ सभी स्तरों पर शैक्षणिक कार्यक्रमों में साधना (ध्यान) को अनिवार्य प्रवृत्ति के रूप में स्वीकार किया गया है। जैन विश्वभारती विद्या के क्षेत्र में एक विशेष प्रयोग है। इसलिए विशेष योग्यता वाले विद्यार्थी पूर्ण योग्यता की शर्त बिना ही इसके विशिष्ट पाठ्यक्रमों का अध्ययन कर सकेंगे। जहाँ जैन विद्या परीक्षाओं द्वारा प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में बालक-बालिकाएँ, युवक-युवतियाँ, तत्त्वज्ञान प्राप्त कर लाभान्वित हो रहे हैं, जहाँ पत्राचार पाठमाला द्वारा सैकड़ों जैन दर्शन एवं धर्म के जिज्ञासु घर बैठे व्यापक तथा व्यवस्थित ढंग से सन्तुष्ट हो अपने आपको धन्य मान रहे हैं। सभी स्तरों के विद्यार्थियों को चिन्तन की व भावाभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतन्त्रता रहती है। धर्म और दर्शन के विद्यार्थियों के लिए इस प्रकार की स्वतन्त्रता बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये विषय निरन्तर अपनी सीमाओं का विस्तार करते जाते हैं और आधुनिक अध्ययन-पद्धति पर आधारित मौलिक तथा साहसपूर्ण चिन्तन की इनके लिए बहुत आवश्यकता है। इस दृष्टि से विद्यार्थियों के लिए पुस्तकालय (वर्धमान ग्रन्यागार) जो विभिन्न धर्मों के करीब दस हजार ग्रन्थ व पुस्तकों (जिनमें अमूल्य व दुष्प्राप्य हस्तलिखित व मुद्रित ग्रन्थ भी शामिल हैं) का सचमुच ही आगार है, उनके उपयोग की पूर्ण स्वतन्त्रता रहती है। इन विभागों के अन्तर्गत अन्य प्रवृत्तियों के अलावा इस वर्ष अभी-अभी जय विद्यापीठ (आवासीय छात्रावास) की योजना और क्रियान्वित की गई है जिसका उद्देश्य छात्रों को सुसंस्कारी, आचारवान एवं प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के रूप में तैयार करना है। उक्त विभागों के अन्तर्गत चालू प्रवृत्तियों के अतिरिक्त छोटे-छोटे बच्चों को मनोवैज्ञानिक आधार पर परिचालित मोंटेसरी पद्धति पर आधारित शिक्षा देने की योजना को क्रियान्वित करना भी नितान्त अपेक्षित है। इस सम्बन्ध में करीब दो वर्ष पहले अधिकृत रूप से घोषणा की हुई है। शिक्षा विभाग के पदाधिकारी -अध्यक्ष श्री राणमलजी जीरावला, ब्राह्मी विद्यापीठ के निदेशक श्री भैरू लालजी बरड़िया एवं छात्रावास के निदेशक श्री सदासुखजी कोठारी हैं जो कि समाज के सुपरिचित एवं प्रतिष्ठित अनुभवी कार्यकर्ता हैं । साहित्य एवं संस्कृति विभाग के पदाधिकारी श्री वन्दजी रामपुरिया अध्यक्ष श्री जैन विश्वभारती एवं निदेशक श्री गोपीचन्द चोपड़ा, संस्था के कुलसचिव हैं। दोनों ही शिक्षा-प्रेमी, समाजसेवी, ध्येय-निष्ठ व्यक्ति हैं। ३. शोध-विभाग (अनेकान्त शोधपीठ) अनुसन्धान के क्षेत्रों में जैन विश्वभारती का दृष्टिकोण समीक्षात्मक, तुलनात्मक और ऐतिहासिक है। जैनागम, धर्म और दर्शन, विज्ञान, गणित, भाषा आदि अनेक विषयों पर अनुसन्धानात्मक प्रवृत्तियाँ चल रही हैं, जिनके द्वारा जैन संस्कृति, प्राकृत, जैन साहित्य, जैन इतिहास, जैन संस्कृति एवं पुरातत्त्व के क्षेत्र में अपने शोध कार्यों द्वारा श्रमणसंस्कृति के विकास में रचनात्मक योगदान मिलता है। इसके अन्तर्गत उच्चस्तरीय शोध ग्रन्थों का प्रकाशन भी होता है। जैन आगम अनुसन्धान के अन्तर्गत आचार्यप्रवर ने करीब पच्चीस वर्ष पूर्व अनुसन्धान दृष्टि, गम्भीर अध्ययन, उदार तथा असाम्प्रदायिक दृष्टिकोण से आगम सम्पादन का कार्य हाथ में लिया । इस विभाग द्वारा प्रकाशित आगम और आगमेतर ग्रन्थों ने विद्वानों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। अब तक ग्यारह अंगों का मूलपाठ संशोधित होकर तीन भागों में (अंगसुत्ताणि) प्रकाशित हो चुका है । बारह उपांगों के मूल पाठ संशोधित होकर तैयार हो Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन विश्वभारती, लाडनू : एक परिचय १०६. ........................................... ......... . . ..... चुके हैं । चार मूल, चार छे. व आवश्यक का कार्य भी सम्पन्न हो चुका है। आगम शब्दकोश (अंगसुत्ताणि शब्द सूची) प्रकाशित हो चुका है। बारह उपांग, चार मूल, चार छेद व आवश्यक की शब्द सूची भी तैयार करने का कार्य तीव्रगति से चालू है। जैन विश्वभारती के परिसर में पुस्तकालय के निकटस्थ के खुले वातावरण में अलग-अलग समूहों में बँटकर छायादार वृक्षों के नीचे जगह-जगह आगम-कोष के महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादन में अनेक विदुषी साध्वियाँ तथा स्नातकोत्तर कक्षा की साधिका शिक्षाथिनी बहिनें जिस तन्मयता से उस कार्य में जुटी हैं यह पुराने युग के शिक्षण केन्द्रों की याद दिलाता है। इसके अतिरिक्त साध्वी श्री कनकधीजी, साध्वी श्रीयशोधराजी आदि सात विदुषी साध्वियों के संयोजकत्व में सात शोध मण्डलियों द्वारा शोध कार्य सम्पादित किया जाता है। स्व० श्री मोहनलालजी बाँठिया द्वारा जैन विश्वभारती के तत्त्वावधान में बनाये गये पुद्गलकोष, ध्यान कोष, लेश्या कोष आदि स्मरणीय उपलब्धि हैं। ___आचार्यप्रवर, युवाचार्यश्री तथा साधु-साध्वियों के अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बौद्ध एवं जैन धर्म के प्रख्यात विद्वान डॉ० नथमल टाँटिया आदि विशिष्टि विद्वानों द्वारा जैन आगमों का विश्व कोष तैयार किया जा रहा है । सम्प्रति मुनि महेन्द्रकुमारजी तथा डॉ. टाँटिया द्वारा आचार पर लेख तैयार किया गया है । जैन विश्वभारती द्वारा जैन ग्रन्थों में गणित, भौतिकी, रसायनशास्त्र, प्राणीशास्त्र तया ज्योतिष जैसे विज्ञानों से सम्बन्धित विपुल सामग्री उपलब्ध है। जैन विश्वभारती द्वारा इस क्षेत्र में अनुसन्धान कार्य को प्रोत्साहन दिया जा रहा है । अनुसन्धाताओं द्वारा किये जाने वाले अनुसन्धान कार्य का प्रकाशन इस संस्थान द्वारा प्रकाशित "तुलसी प्रज्ञा" शोध पत्रिका में किया जाता है। जैन विश्वभारती प्रतिवर्ष अपने परिसर में तथा विभिन्न स्थानों पर जैन विद्या परिषद का आयोजन करती है । जैन विद्या तथा सम्बन्धित विषयों पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में अनुसन्धान करने वाले विद्वान् इस संगोष्ठी में भाग लेते हैं । अब तक दिल्ली, जयपुर, हिसार, लाडनू आदि स्थानों पर ऐसी ७ गोष्ठियाँ हो चुकी हैं। दिल्ली की गोष्ठी में प्रसिद्ध जर्मन विद्वान डॉ. ऐल्सफोर्ड को जैन विद्यामनीषी की मानद उपाधि दी गई है। बाद में डॉ० ए० एन० उपाध्ये तथा संस्थान के वर्तमान अध्यक्ष श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया को भी इस उपाधि से विभूषित किया गया । इस परिषद का आठवाँ अधिवेशन १८, १९, २० अक्टूबर, १९८० को लाडनूं में हुआ था जिसमें अनेक विद्वानों ने भाग लिया था। एक अन्य योजना और क्रियान्वित की गयी है वह है तेरापंथ विद्वपरिषद् । जिसका उद्देश्य है कि समाज के शिक्षाधियों को जैनाभिमुख कर जैन दर्शन, जैन साहित्य, जैन इतिहास आदि विषयों में उनकी रुचि का विकास करना । कई विद्वान इस परिषद् के सदस्य भी बने हैं। इस विभाग के अध्यक्ष हैं -श्री श्रीचन्दजी बैंगानी, जो इस संस्थान को तीन वर्ष मन्त्री के रूप में सेवा दे चुके हैं एवं वर्तमान में इसके उपाध्यक्ष और निदेशक हैं-अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान डॉ० नथमल टाँटिया । शासन-समुद्र (तेरापंथ इतिहास) ___मुनि श्री नवरत्नमलजी तेरापंथ सम्प्रदाय में आज तक दीक्षित हुए करीब २२०० साधु-साध्वियों का पद्य व गद्य मय जीवन-चरित्र तैयार कर रहे हैं । पद्य में संक्षिप्त जीवन परिचय है एवं विस्तृत रूप में वर्णन गद्य में है । इस संग्रह का नाम 'शासन समुद्र' रखा गया है। यह कार्य भी प्रायः पूर्ण हो चुका है। मुनिश्री ने बड़ी निष्ठा एवं लगन से पूरा परिश्रम करके इसे तैयार किया है। जैन विश्वभारती के विविध आयामों में "शासन समुद्र" की रचना एक अनूठा आयाम है। जयाचार्य-निर्वाण शताब्दी जैन विश्वभारती द्वारा तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य (१८०३-१८८१) निर्वाण शताब्दी-समारोह के अवसर पर अनेकानेक योजनाओं के साथ निम्नांकित तीन महत्त्वपूर्ण एवं सुव्यवस्थित योजनाएँ क्रियान्वित की जा रही हैं Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० र्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड (१) जयाचार्य स्मृति ग्रन्थ के रूप है आगम मंथन शीर्षक ग्रन्थ का प्रकाशन । (२) जयाचार्य-रचित समग्र साहित्य (लगभग तीन लाख पद्य) का प्रकाशन । (३) जयाचार्य-रचित प्रत्येक ग्रन्थ पर भूमिका एवं मूल्यांकन सम्बन्धी निबन्धों का प्रकाशन । परम श्रद्धेय आचार्यप्रवर, युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी एवं उनकी विद्वशिष्य मण्डली तो उपर्युक्त योजनाओं की सम्पूर्ति में संलग्न हैं ही--इनके अतिरिक्त समाज के अनेक विद्वानों का भी सक्रिय सहयोग मिला है और वे भी पूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त कर इस महाकार्य में जुट गये हैं । जयाचार्य का सम्पूर्ण साहित्य तीस ग्रन्थों व ५२ खण्डों में प्रकाशित किया जायेगा। श्री जथाचार्य ने राजस्थानी भाषा के गद्य और पद्य साहित्य की अनेक विधाओं में विपुल साहित्य का सृजन किया था। उनकी एक कृति भगवती सूत्र की जोड़ राजस्थानी भाषा का विशालतम ग्रन्थ माना जाता है। साहित्य जगत् में उपरोक्त योजनाओं की क्रियान्विति वस्तुतः एक अनमोल देन मानी जायेगी। अनुवाद इस संस्था के अन्तर्गत आगम व अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्थों का अंग्रेजी तथा दूसरी भाषाओं में अनुवाद का विभाग रथापित किया गया है। अब तक अग्रेजी भाषा में निम्नांकित १० ग्रन्थों का अनुवाद किया जा चुका है.-- (१) जैन सिद्धान्त दीपिका आचार्यश्री तुलसी (२) जैन न्याय का विकास आचार्य महाप्रज्ञजी (३) मन के जीते जीत युवाचार्य महाप्रज्ञजी (४) मैं, मेरा मन, मेरी शान्ति युवाचार्य महाप्रज्ञजी (५) अणुव्रत के आलोक में आचार्यश्री तुलसी (६) दशवकालिक सूत्र : एक समीक्षा, एक अध्ययन आचार्यश्री तुलसी एवं युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी (७) उत्तराध्ययन सूत्र : एक समीक्षा, एक अध्ययन (८) भगवान महावीर आचार्यश्री तुलसी (६) आपारो वाचनाप्रमुख आचार्यश्री तुलसी संपादक एवं विवेचक युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी (१०) उत्तराध्ययन (मूल) इसके अतिरिक्त और भी कई ग्रन्थ प्रकाशनार्थ तैयार हैं और हो रहे हैं। समस्त विश्व में जैन आगम, जैन दर्शन, जैन इतिहास एवं जैन साहित्य को प्रचलित करने हेतु संस्थान द्वारा संपादित यह अनुवाद-कार्य भी कम महत्त्व का नहीं है। साधना विश्राम-तुलसी अध्यात्म नीडम् (प्रज्ञा प्रदीप) जैन विश्वभारती के कार्यक्रम में साधना को विशेष महत्त्व दिया गया है। अध्यात्म साधना की विशिष्ट पद्धतियों को व्यवहार्य बनाने के लिए भगवान महावीर द्वारा प्रयुक्त ध्यान-पद्धतियों के पुनरद्धार हेतु प्रयत्न किये जा रहे हैं। साधना के लिए एक बासठ कक्षीय भवन का निर्माण चौथमल वृद्धिचंद गोठी चेरीटेबल ट्रस्ट द्वारा प्रदत्त राशि से किया गया है जिसका नाम 'प्रज्ञाप्रदीप' रखा गया है। इसका मुख्य कार्य है साधना की पद्धतियों का प्रशिक्षण देना । प्रेक्षाध्यान इसके द्वारा स्वीकृत साधना पद्धति है । प्रेक्षाध्यान के अभ्यास हेतु प्रेक्षा-ध्यान शिविरों का आयोजन किया जाता है। ऐसे उन्नीस शिविर अब तक हो चुके हैं । इन शिविरों द्वारा विभिन्न प्रान्तों के हजारों व्यक्ति अब तक लाभान्वित हो चुके हैं और होते जा रहे है । जनता में नीडम् (साधना) की प्यास का अनुभव कर ध्वनि मुद्रित प्रवचनों Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंन विश्वभारती, लाडन : एक परिचय 111 .. ............................ ... ..... .. . . की व्यवस्था की गई है। इस केन्द्र में आत्मा, दिव्यात्मा, निद्रा-स्वप्न, अतीन्द्रिय ज्ञान, पुनर्जन्म, प्रेतात्मा, जातिस्मृति, लेश्या और कवाय आदि के सम्बन्ध में प्रायोगिक अनुसन्धान योजनाओं की क्रियान्विति की जाएगी। इसकी प्रयोगशाला में इस प्रकार के आधुनिकतम उपकरण होंगे जिनकी सहायता ने विधिवत् परीक्षण किया जा सके / इसके लिए गंगाशहर के नागरिकों द्वारा अनुदान की घोषणा की गई है / यह 'प्रज्ञा प्रदीप मानसिक चिकित्सा (अध्यात्म-चिकित्सा) की पद्धति के विकास के लिए उपयुक्त विशेषज्ञ के द्वारा रोग-मुक्ति का आध्यात्मिक मार्ग प्रस्तुत करेगा। मानसिक चिकित्सा के इस केन्द्र में भय, आवेग एवं कषाय से उत्पन्न विभिन्न क्लेशों से मुक्ति मिल सकती है / इस केन्द्र के अन्तर्गत आसन, प्राणायाम तथा ध्यान की दैनिक कक्षाओं का भी आयोजन किया जाता है। "प्रेज्ञा-ध्यान" नाम से एक मासिक पत्रिका का नियमित प्रकाशन भी किया जा रहा है, जिसमें ध्यान-विषयक प्रेरणादायक सामग्री प्रकाशित होती है। इस विभाग के अध्यक्ष हैं श्री जेठाभाई एस० जेवेरी एवं निदेशक हैं जैन विश्वभारती के नव निर्वाचित मंत्री पड़िहारा निवासी श्री श्रीचन्दजी सुराणा / दोनों ही महानुभाव ध्यान एवं योगसाधना में मँजे हुए एवं श्रद्धानिष्ठ व्यक्ति हैं। सेवा विभाग (सेवाभावी कल्याण केन्द्र) ___ इसका प्रमुख कार्य स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना है / आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को तो महत्त्व दिया ही जायेगा, उसके साथ ही प्राकृतिक चिकित्सा, होमियोपैथिक तथा एलोपैथिक पद्धतियाँ भी अपनायी जायेंगी। रोग-मुक्ति के लिए योग-साधना का प्रमुख स्थान रहेगा। एलोपैथिक विभाग में चाडवास के युवक डॉ० मंगलचन्द वैद की अमूल्य अवैतनिक सेवा उल्लेखनीय हैं / गरीब एवं असहाय रोगियों को निःशुल्क चिकित्सा सेवा का प्रावधान है / आयुर्वेदिक विभाग में वैद्य श्री सोहनलालजी अच्छी सेवा कर रहे हैं। आयुर्वेदिक औषधालय एवं रसायनशाला के माध्यम से प्रति मास लगभग छः सात हजार रोगी लाभान्वित होते हैं / सेवा-विभाग की ही एक महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति है -कैसर चिकित्सा विभाग-इस विभाग में अब तक असाध्य समझे जाने वाले कैंसर रोग के प्रभावशाली उपचार की खोज में पर्याप्त सफलता मिली है / यह खोज दुर्लभ ग्रन्थों के आधार पर की गई है। कला संस्कृति विभाग इसके अन्तर्गत "कालूकला-वीथी" का निर्माण सरदारशहरनिवामी श्री रविप्रकाशजी दूगड़ द्वारा प्रदत्त डेढ़ लाख की राशि से किया जा रहा है / सुन्दर तथा शीत मुद्रण को ध्यान में रखकर आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित एक प्रिटिंग प्रेस भी कलकता की मित्र परिषद के द्वारा प्रदत आर्थिक सौजन्य से प्रारम्भ की जायेगी। संस्था के सर्वतोमुखी विकास हेतु चिन्तनार्थ एक परामर्शक मण्डल की योजना भी की गयी--जिसकी एक बैठक गत दिनांक 30 व 31 अगस्त 1980 को आयोजित की गई। इसमें विकास हेतु एक विकास समिति का गठन किया जाना निश्चित हुआ जिसके गठन का भार श्री गुलाबचंदजी चंडालिया व श्री शुभकरणजी दस्पानी को दिया गया / इस प्रकार हम देख रहे हैं कि जैन विश्वभारती अपनी चहुँमुखी प्रगति की ओर प्रगतिशील है। बड़े हर्ष का विषय है कि इस वार श्री श्रीचंदजी रामपुरिया सर्वसम्मति से इसके पुनः अध्यक्ष चुने गये हैं। इससे भी अधिक हर्ष का विषय यह है कि अब इस संस्थान के मंत्री के रूप में पड़िहारानिवासी श्री श्री चंदजी सुराणा का सर्वसम्मति से चुनाव कर युवाशक्ति को-नयी पीढ़ी को कार्यक्षेत्र में आगे लाने का कार्य प्रारम्भ हो चुका है / वयोवृद्ध अनुभवी मंजे हुए महानुभावों के निर्देशन में अगर इस प्रकार युवापीढ़ी को आगे आने का अवसर मिलता रहेगा तो यह संस्था शीघ्र ही सांगोपांग विकास कर सकेगी--ऐसा विश्वास है।