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जैन विश्वभारती, लाडनू : एक परिचय
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चुके हैं । चार मूल, चार छे. व आवश्यक का कार्य भी सम्पन्न हो चुका है। आगम शब्दकोश (अंगसुत्ताणि शब्द सूची) प्रकाशित हो चुका है। बारह उपांग, चार मूल, चार छेद व आवश्यक की शब्द सूची भी तैयार करने का कार्य तीव्रगति से चालू है।
जैन विश्वभारती के परिसर में पुस्तकालय के निकटस्थ के खुले वातावरण में अलग-अलग समूहों में बँटकर छायादार वृक्षों के नीचे जगह-जगह आगम-कोष के महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादन में अनेक विदुषी साध्वियाँ तथा स्नातकोत्तर कक्षा की साधिका शिक्षाथिनी बहिनें जिस तन्मयता से उस कार्य में जुटी हैं यह पुराने युग के शिक्षण केन्द्रों की याद दिलाता है। इसके अतिरिक्त साध्वी श्री कनकधीजी, साध्वी श्रीयशोधराजी आदि सात विदुषी साध्वियों के संयोजकत्व में सात शोध मण्डलियों द्वारा शोध कार्य सम्पादित किया जाता है। स्व० श्री मोहनलालजी बाँठिया द्वारा जैन विश्वभारती के तत्त्वावधान में बनाये गये पुद्गलकोष, ध्यान कोष, लेश्या कोष आदि स्मरणीय उपलब्धि हैं।
___आचार्यप्रवर, युवाचार्यश्री तथा साधु-साध्वियों के अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बौद्ध एवं जैन धर्म के प्रख्यात विद्वान डॉ० नथमल टाँटिया आदि विशिष्टि विद्वानों द्वारा जैन आगमों का विश्व कोष तैयार किया जा रहा है । सम्प्रति मुनि महेन्द्रकुमारजी तथा डॉ. टाँटिया द्वारा आचार पर लेख तैयार किया गया है । जैन विश्वभारती द्वारा जैन ग्रन्थों में गणित, भौतिकी, रसायनशास्त्र, प्राणीशास्त्र तया ज्योतिष जैसे विज्ञानों से सम्बन्धित विपुल सामग्री उपलब्ध है। जैन विश्वभारती द्वारा इस क्षेत्र में अनुसन्धान कार्य को प्रोत्साहन दिया जा रहा है । अनुसन्धाताओं द्वारा किये जाने वाले अनुसन्धान कार्य का प्रकाशन इस संस्थान द्वारा प्रकाशित "तुलसी प्रज्ञा" शोध पत्रिका में किया जाता है।
जैन विश्वभारती प्रतिवर्ष अपने परिसर में तथा विभिन्न स्थानों पर जैन विद्या परिषद का आयोजन करती है । जैन विद्या तथा सम्बन्धित विषयों पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में अनुसन्धान करने वाले विद्वान् इस संगोष्ठी में भाग लेते हैं । अब तक दिल्ली, जयपुर, हिसार, लाडनू आदि स्थानों पर ऐसी ७ गोष्ठियाँ हो चुकी हैं। दिल्ली की गोष्ठी में प्रसिद्ध जर्मन विद्वान डॉ. ऐल्सफोर्ड को जैन विद्यामनीषी की मानद उपाधि दी गई है। बाद में डॉ० ए० एन० उपाध्ये तथा संस्थान के वर्तमान अध्यक्ष श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया को भी इस उपाधि से विभूषित किया गया । इस परिषद का आठवाँ अधिवेशन १८, १९, २० अक्टूबर, १९८० को लाडनूं में हुआ था जिसमें अनेक विद्वानों ने भाग लिया था।
एक अन्य योजना और क्रियान्वित की गयी है वह है तेरापंथ विद्वपरिषद् । जिसका उद्देश्य है कि समाज के शिक्षाधियों को जैनाभिमुख कर जैन दर्शन, जैन साहित्य, जैन इतिहास आदि विषयों में उनकी रुचि का विकास करना । कई विद्वान इस परिषद् के सदस्य भी बने हैं। इस विभाग के अध्यक्ष हैं -श्री श्रीचन्दजी बैंगानी, जो इस संस्थान को तीन वर्ष मन्त्री के रूप में सेवा दे चुके हैं एवं वर्तमान में इसके उपाध्यक्ष और निदेशक हैं-अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान डॉ० नथमल टाँटिया । शासन-समुद्र (तेरापंथ इतिहास)
___मुनि श्री नवरत्नमलजी तेरापंथ सम्प्रदाय में आज तक दीक्षित हुए करीब २२०० साधु-साध्वियों का पद्य व गद्य मय जीवन-चरित्र तैयार कर रहे हैं । पद्य में संक्षिप्त जीवन परिचय है एवं विस्तृत रूप में वर्णन गद्य में है । इस संग्रह का नाम 'शासन समुद्र' रखा गया है। यह कार्य भी प्रायः पूर्ण हो चुका है। मुनिश्री ने बड़ी निष्ठा एवं लगन से पूरा परिश्रम करके इसे तैयार किया है। जैन विश्वभारती के विविध आयामों में "शासन समुद्र" की रचना एक अनूठा आयाम है। जयाचार्य-निर्वाण शताब्दी
जैन विश्वभारती द्वारा तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य (१८०३-१८८१) निर्वाण शताब्दी-समारोह के अवसर पर अनेकानेक योजनाओं के साथ निम्नांकित तीन महत्त्वपूर्ण एवं सुव्यवस्थित योजनाएँ क्रियान्वित की जा रही हैं
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