Book Title: Jain Vishwabharati Ladnu Ek Parichay Author(s): Kamleshkumar Jain Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 1
________________ ... ...... .............. ...... ..... .. ........ .. .. .... ... .... . .. ..... जैन विश्वभारती, लाडनूं : एक परिचय 0 डॉ कमलेश कुमार जैन (जैन विश्व भारती, लाडनू) जैन विश्वभारती की अन्तश्चेतना के प्रेरणा-स्रोत हैं--जगत-बन्ध, अणुव्रत-अनुशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी। जो महामानव होते हैं, उन्हें स्वप्न बहुत ही कम आते हैं और जो स्वप्न आते हैं, वे समय पाकर अवश्य ही साकार होते हैं । कई दशकों पूर्व आचार्यप्रवर को जो स्वप्न आया, आपने अपने अन्तर्मन में जो कल्पना संजोयी, उसी का साकार रूप है शिक्षा, शोध, साधना, सेवा और संस्कृति के विकास एवं अभ्यास की तपोभूमि यह जैन विश्वभारती, जिसका जन्म आज से करीब दस वर्ष पूर्व हुआ। आचार्यप्रवर के इस स्वप्न को संजोने में स्व० श्री मोहनलालजी बांठिया, श्री जब्बरमलजी भण्डारी, श्री संपतमलजी भूतोड़िया, श्री सूरजमलजी गोठी आदि समाज के कर्णधार, लब्धप्रतिष्ठित व्यक्तियों का भी पूरा हाथ रहा । मानव-जाति को अध:पतन से बचाने के लिए व्यावहारिक स्तर पर मानवता-निर्माण की योजना की क्रियान्विति का साकार रूप यह विश्वभारती का आज जो चित्र सामने है, वह आज से तीन चार वर्ष पहले इतना विकसित नहीं था । जहाँ परमाराध्य आचार्यप्रवर एवं युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी की सतत बलवती सात्त्विक व आध्यात्मिक प्रेरणा से भारती में अन्तश्चेतना स्वरूप ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की त्रिवेणी का अजस्र स्रोत निरन्तर प्रवाहित होने से प्राण-प्रतिष्ठा का महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान फलीभूत हो रहा है, वहाँ समाज के उदारचेता, दानवीर, श्रद्धानिष्ठ महानुभावों की विसर्जन-वृत्ति एवं अमूल्य सेवाओं से भारती का बाह्याकार उत्तरोत्तर विकासोन्मुख है। भारती में पंचसूत्री विकास अबाधगति से प्रवहमान है। इस संस्थान की विविध गतिविधियाँ व्यापक हैं। इसके अन्तर्गत अध्ययन-अध्यापन, शोध-अनुसन्धान, साहित्यसंस्कृति प्रकाशन, योग-साधना, सेवा-चिकित्सा, मानव-कल्याण और अन्तर्राष्ट्रीय सौमनस्य मुख्य रूप से आते हैं। इन सभी गतिविधियों का प्रयोजन भारतीय संस्कृति और विशेषतः जैन-संस्कृति से प्राप्त होने वाले मानवीय मूल्यों को प्रकाश में लाना है। राजस्थान राज्य में नागौर जिले के सुप्राचीन लाडनू नगर के उत्तरी छोर पर ६० एकड़ भूमि पर जैन विश्वभारती के विशाल परिसर का विकास किया जा रहा है। अब तक इसके सुरम्य हरित आकर्षक परिसर में ६ क्वार्टर, ७ भवन एवं कई कुटीर व लघु आवास-कक्षों का निर्माण हो चुका है। जैन विश्वभारती की वर्तमान और भावी प्रवृत्तियाँ विभाग क्रम से निम्न प्रकार हैं१ शिक्षा विभाग-महिला महाविद्यालय (ब्राह्मी विद्यापीठ) (क) प्राक् स्नातक शिक्षा (ख) स्नातक शिक्षा (ग) स्नातकोत्तर शिक्षा २. साहित्य एवं साहित्यिक विभाग (क) जैन विद्या में डिप्लोमा (ख) पत्राचार शिक्षा (क) प्राक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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