Book Title: Jain Tirthankaro ke Lanchan
Author(s): Rushabhchandravijay
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 4
________________ यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म महाविदेह क्षेत्र में वर्तमान विचरते बीस विहरमान तीर्थंकरों के बीस विहरमान तीर्थंकरों में बहुत से लांछन एक समान लांछन इस प्रकार हैं है। परन्तु पृथक्-पृथक् पाँच महाविदेहों के कारण पृथक् गिने 1. सीमंधर स्वामी - वृषभ जाते हैं। वर्तमान चौबीसी के द्वितीय तीर्थंकर भगवान् अजितनाथ 2. युगंधर स्वामी- हाथी के समय से पाँचों भरत, पाँचों एरवत, पाँचों महाविदेह क्षेत्र में 3. बाहुजिन- हिरण कुल मिलाकर 170 तीर्थंकर एक ही समय में विचरण करते थे। 4. सुबाहु-बंदर तब उन सब तीर्थकरों के लांछन अलग-अलग नहीं थे, अर्थात् कुल 170 लांछन अलग-अलग ही थे ऐसा नहीं है। यद्यपि इन 5. सुजात- सूर्य सभी तीर्थंकरों के लांछनों की सम्पूर्ण जानकारी देखने को नहीं 6. स्वयंप्रभ- चन्द्र मिलती है। परन्तु बीस विहरमान तीर्थंकरों के लांछनों में से ऊपर 7. ऋषभानन- सिंह बताये अनुसार कितने ही लांछन एक से अधिक तीर्थंकरों के हैं। 8. अनन्तवीर्य- हाथी इससे स्पष्ट है कि सभी काल के लिए प्रत्येक तीर्थंकर के लांछन ९.सुरप्रभ- अश्व सर्वथा पृथक् होना कोई जरूरी नहीं है। अपने-अपने क्षेत्रानुसार 10. विशाल- सूर्य अन्यान्य भी होते हैं। 11. वज्रधर- शंख आनेवाली चौबीस तीर्थकर-परंपरा के चिह्न-विलोमक्रम से 12. चन्द्रानन- वृषभ होंगे, अर्थात् प्रथम तीर्थंकर पद्मनाभप्रभु को सिंह का लांछन होगा 13. चन्द्रबाहु- कमल जो वर्तमान में चौबीसवें तीर्थंकर महावीरस्वामी का लांछन है। 14. भुजंग- कमल ऋषभ, चंद्रानन, वर्धमान और वारिषेण ये चार तीर्थंकर 15. ईश्वर- चन्द्र शाश्वत माने जाते हैं। अर्थात् इनमें जो कोई तीर्थंकर निर्वाण प्राप्त 16. नेमिपुत्र- सूर्य होते हैं कि तुरंत इन नामों में से उस नाम वाले तीर्थंकर होते हैं। 17. वारिषेण- वृषभ इन चार तीर्थकरों के लांछन भी शाश्वत हैं, ऐसी मान्यता है, इस 18. महाभद्र- हाथ विषय में ज्ञानी ज्ञातार्थ गुरु भगवंतों से विशेष जानकारी की 19. चन्द्रयश- चन्द्र जिज्ञासा रखें, क्योंकि शाश्वत प्रतिमाओं के लांछन में भी कहीं२०. अज्ञितवीर्य- स्वस्तिक कहीं अन्तर नजर आता है। awardroloradoodwardrobordoordaridroidAsadivadi59/6orGrowondridrowardwormowondemonoranoranoramiomborder Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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