Book Title: Jain Tirthankaro ke Lanchan
Author(s): Rushabhchandravijay
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म परमात्मा के जीवन में उत्कृष्ट रूप में देखने को मिलता है। माता १४. अनंतनाथ- वज्र के देख हुए स्वप्न, स्वयं शरीर का वर्ण अथवा अन्यरूप लक्षण १५. धर्मनाथ- वज भी लांछन के साथ अर्थात् उसके गुण से जुड़ा हुआ होता है, जैसे १६. शांतिनाथ-हिरन पद्मप्रभु की कांति अथवा प्रभा पद्म के समूह के समान थी। १७. कुंथुनाथ - बकरा उनका शरीर पद्म के समान रक्तवर्ण था, उनकी माता को पद्म १८. अरनाथ- नंदावर्त की शैय्या में सोने का दोहद उत्पन्न हुआ था। माता ने स्वप्न में १९. मल्लिनाथ- कुंभ पद्मसरोवर देखा था और स्वयं भगवान् के शरीर पर पद्म का २०. मुनिसुव्रत- कछुआ लांछन भी था। इसी प्रकार चन्द्रप्रभु की कांति चन्द्रमा जैसी थी, २१. नमिनाथ- नीलकमल उनकी माता को चन्द्रमा का पान करने इच्छा की इच्छा हुई थी। २२. नेमिनाथ- शंख उनकी माता ने चौदह स्वप्नों में चंद्र का स्वप्न भी देखा और २३. पार्श्वनाथ - सर्प भगवान् के शरीर पर लांछन भी था। पार्श्वनाथ भगवान् के गर्भ में २४. महावीर-सिंह आने के बाद माता को एक अँधेरी रात में अँधेरे में ही सर्प दिखा चौबीस तीर्थकारों के लांछनों को अनुक्रम से बताते हुए था जो उनके पिता अश्वसेन को नहीं दिखा। वह गर्भ में रहने वाले श्री हेमचन्द्राचार्य ने अभिधानचिंतामणि में इसी प्रकार लिखा है पुत्र का ही चमत्कार था। भगवान् के शरीर पर सर्प का लांछन तथा लांछन के लिए ध्वज शब्द का प्रयोग किया है। गुरुदेव प्रभु भी था। इस तरह लांछन मात्र चिन्ह न होकर तीर्थंकर के समग्र श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरिजी म.सा. ने अभिधानराजेन्द्रकोष के चतुर्थ जीवन में अर्थ और भाव की दृष्टि से विविध प्रकार से जुड़ा हुआ प्रकार स जुड़ा हुआ भाग में लांछन के लिए चिह्न शब्द का प्रयोग किया हैदेखने को मिलता है। जैन-मान्यतानुसार इस अवसर्पिणीकाल में भरतक्षेत्र में २४ तीर्थंकर हुए। प्रत्येक तीर्थंकर का पृथक् लांछन वसह गय तुरय वानर कुंचो कमल व सत्थिओ चन्दो। है जैसे कि बैल ऋषभदेव प्रभु का लांछन है, हाथी अजितनाथ मयर सिविवच्छ गंडय महिष वराहो सेणो य।।। भगवान् का लांछन है, सर्प पार्श्वनाथ का लांछन है, सिंह भगवान् वज्ज हरिणो छगतो नन्दावत्तो य कलस कुम्भो य नीलुप्पल संख फणी, सीहो अजिणाण चिण्हाई।। महावीर का लांछन है। तीर्थकरों की माताओं को आने वाले स्वप्न के बारे में वर्तमान चौबीसी के तीर्थंकरों के लांछन इस प्रकार हैं जिस प्रकार दिगम्बर-श्वेताम्बर परंपरा के बीच थोड़ा भेद है, १. ऋषभदेव - बैल उसी प्रकार तीर्थंकरों के लांछनों को लेकर भी थोड़ा भेद देखने २. अजितनाथ -हाथी को मिलता है। जैसे पाँचवें सुमतिनाथ का लांछन श्वेताम्बर ३. संभवनाथ - अश्व परम्परानुसार कौञ्च पक्षी है और दिगम्बर परम्परा के अनुसार ४. अभिनन्दन - बंदर चक्रवाक पक्षी है। दसवें शीतलनाथ तीर्थंकर का लांछन ५. सुमतिनाथ- क्रौञ्च श्वेताम्बरानुसार श्रीवत्स एवं दिगम्बरानुसार कल्पवृक्ष है। चौदहवें ६. पद्मप्रभु- कमल तीर्थकर अनन्तनाथ का लांछन श्वेताम्बरों के अनुसार वज्र है, ७. सुपार्श्वनाथ- स्वस्तिक दिगम्बरों के अनुसार वज्रदण्ड है एवं इक्कीसवें नमिनाथ भगवान् ८. चन्द्रप्रभुजी- चन्द्रमा का लांछन श्वेताम्बरों के अनुसार नीलकमल है जबकि दिगम्बरों ९. सुविधिनाथ - मगर के अनुसार रक्तकमल है। १०. शीतलनाथ- श्रीवत्स प्रत्येक तीर्थंकर के शरीर पर अद्वितीय सर्वथा पृथक ही ११. श्रेयांसनाथ- गैंडा लांछन हो ऐसा नहीं है। वर्तमान चौबीसी के तीर्थकरों के लांछन १२. वासुपूज्य-महिष १३. विमलनाथ - सूअर अलग-अलग हैं। परन्तु बीस विहरमाण जिनेश्वरों में वृषभ, हाथी, सूर्य, चन्द्र, कमल जैसे लांछन एक से अधिक तीर्थंकरों के हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4