Book Title: Jain Tirth Yatra Vivaran
Author(s): Dahyabhai Shivlal
Publisher: Dahyabhai Shivlal

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Page 13
________________ नेमें किस वातकी त्रुटि है, धर्मशाला व मंदिरकी क्या व्यवस्था है, भण्डारमें यात्री जो रकम देते है वह सब कहा जाती है, उसका क्या उपयोग होता है, इन सब बातोंका निरीक्षण करके स्वतंत्रता पूर्वक सम्मतिप्रदर्शिका पुस्तकों (विजीटर वुकमें) अपनी सम्मति लिखना चाहिये. अपनेसे जो त्रुटि दूर हो सकती हो उसको उदारतापूर्वक दूर करना चाहिये. ७. तीर्थके मैनेजरके प्रबंधमें जो त्रुटि मालूम हो वह त्रुटि मैनेजरको बता देनी चाहिये, जिससे वह उसको आगेके लिये सुधार देवे. ___ तीर्थके भंडारमें यथाशक्ति द्रव्य जमा कराना चाहिये। क्योंकि बिना द्रन्यके मैनेजर यात्रियोंके आरामके लिये कैसे प्रबंध कर सकेगा. किसी २ माई का यह विचार है, कि तीर्थस्थानोंमें द्रन्य देनेकी क्या आवश्यक्ता है, पर उनलोगोंका यह विचार गलत है, क्योंकि द्रन्यके विना किसी भी संस्थाका उचित प्रबंध नहीं हो सकता फिर तीर्थकी संभाल रखनेके लिये तथा यात्रियोंको आराम देनेके लिये जो २ बंदोबस्तकी आवश्यकता है सो पाठकवर्ग स्वयं विचार सक्ते हैं, कि द्रव्यके विना इतना बड़ा कार्य मैनेजर तो क्या कोई भी आदमी नहीं कर सक्ता इसलिये प्रत्येक भाईको प्रत्येक तीर्थमें यथाशक्ति द्रव्यदान अवश्य प्रदान करना चाहिये. ८. तीर्थयात्राकी स्मृतिमें कोई न कोई ऐसी उत्तम प्रतिज्ञा __ अवश्य लेनी चाहिये जिससे देश व समानकी उन्नतिके साथ ही साथ अपने आत्माकी उन्नति हो.

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