Book Title: Jain Thought and Culture
Author(s): G C Pandey
Publisher: University of Rajasthan

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Page 192
________________ 170 Jain Thought and Culture सुटु त्तरमायामा सा छट्ठी नियमसो उणायव्वा । अह उत्तरायया कोडिमा य सा सत्तमी मुच्छा ।।1811 सत्तसरा को सभवंति गीयस्स का हवति जोणी । कड समया उस्मासा कइ वा गीयस्स आगारा ।।19।। सत्तसरा नाभिन्नो हवति, गीय च रुइयजोणिय । पायसमा ऊमामा, तिण्णि य गीयस्स आगारा ।।2011 प्राइमिउ प्रारभता समुन्वहता या मज्झगारमि । अवसाणे तजवितो तिन्नि य गीयस्स आगारा 1121।। छद्दोसे अढगुणे तिण्णि य वित्ताइ दो य भणिईयो । जाणाहिइ सो गाहिइ सुसिक्खिनो रगमज्झम्मि ॥22॥ भीय दुय रहस्स12 गायतो माय गाहि उत्ताल । काकस्सर अणुणास च होति गीयस्म छद्दोसा ।।23।। पुण्ण रत्त च अलविय च वत्त तहा अविघुटु । महुर सम सुललिय अट्टगुणा होति गेयस्म ।।24।। सरकठमिरपसत्य15 गिज्जइ मउरिभियपदवद्ध ।। समतालपडुक्खेव सत्तस्सरसीभर गीय ।।2511 निद्दोस सारमत च हेउजुत्तमलेकिय । उवणीय सोवयार य मिय महुरमेव य ।।26॥ सम अद्धसम चेव सवत्थ विमम च ज । तिण्णि वित्तप्पयाराइ चउत्थ नोवलन्भड ।।27।। सक्कया पायया चैव दुहा भणि ईअो प्राहिया । सरमडलम्मि गिज्जते पमत्था इसिभासिया ।।28।। केसि गायइ महुर के मि गायइ खर च रुक्ख च । केसि गायइ चउर केसी य दिलबिय दुत केसी 1129।। 10 रुन्नजोणीय । 11 अवसाणे य झवेंता । 12 दुयमुप्पिच्छ । 13 उत्ताल च कमसो मुणयव्व । 14 रद्दोसा होति गीयस्म । 15 विसुद्ध ।

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