Book Title: Jain Thought and Culture
Author(s): G C Pandey
Publisher: University of Rajasthan
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Music in the Thanamga Sutra
एएसि ण सत्तरह सराण सत्त मरलक्खणा पण्णत्ता, त जहासज्जैण लहई वित्ति कय च न विणस्सइ । गाव पुत्ताय मित्ताय नारीण होइ वल्लहो 118 11 रिमहेण य एमज्ज सेणावच्च धणाणि य । वत्थ गधमलकार इत्थियो सयणाणि य ॥19॥
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एएसि ण सतह तो गामा पण्णत्ता, त जहा - सज्जगामे मज्झिमगामे धारगामे मज्जगामस्स ण सत्त मुच्छणाश्रो पण्णताओ, त जहा
मगी कोरवीया हरी य रयणी च सारकता य । छुट्टीय सारसी नाम सुद्धसज्जा य सत्तमा 11151 मज्झिमगामस्स ण सत्त मुच्छणा पण्णत्ताश्रो त जहाउत्तरमदा रयणी उत्तरा उत्तरासमा । समोकता यसौवीरा श्रवभीरु' हवइ सत्तमा ||16|| गधारगामस्स ण सत्त गुच्छणाओ पण्णत्ताओ, त जहानदी य खुड्डिया पूरिमा च चउत्थी च सुद्धगधारा । उत्तरगधारा विय पचमिया हवइ मुच्छा उ ॥17॥
हवति ।
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धारे गीयजुत्तिणा वज्जवित्ती कलाहिया । हवति कइणो पण्णा जे अण्णे सत्यपारगा 11101 मज्झिमस्सरसपन्ना भवति सुहजीविणो । खायई पियई देई मज्झिमस्सरमस्सियो ॥11॥ हवत पुढवीवई ।
पचमस्सरसपन्ना
सूरा सगहकत्तारो प्रणेगगणनायगा ।।12।। घेवयस्मरमपन्ना हवति कलहप्पिया | माउनिया वग्गुरिया शेयरिया मच्छवधा य 11131
चडाला मुट्ठिया सेया 7 जे अण्णो पावकम्मिणो ।
गोघातगा य जे चोरा णिसाय सरमस्सिया ||14||
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गणरणायगा ।
घेवयसरमता ।
मेता ।
उत्तरायता ।
ग्रमीरु ।
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