Book Title: Jain Stotra Ratnakar
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 6
________________ नास, मगल कल्याण श्रावासं ॥१॥ विसहरफुलिंगमंतं, कंठे धारे जो सया मणु ॥ तस्स गह रोग मारी, जरा जति उवसामं॥२॥ चिहउ पूरे संतो, तुप्न पणामोवि बहुफलो होश ॥ नर तिरिएसुवि जीवा, पावंति न पुरक दोग (दोहगं) ॥३॥ तुह सम्मत्ते लके, चिंतामणि कप्पपोयवप्नहि ए ॥ पाति अविग्घेणं, जीवा अ यरमरं गणं ॥४॥ अ संथुन महायस, नत्तिप्पर निप्तरेण हि. अएण ॥ ता देव दिऊ बोहिं नवे . Jain Educationa Internatioelsonal and Private Use www.jainelibrary.org

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