Book Title: Jain Shastro aur Mantra vidya
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 6
________________ ७७८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय ३. गोल-विद्वेषण और उच्चाटन कर्म में. इन तीन प्रकार के कुंडों की गहराई और चौड़ाई एक हाथ प्रमाण होनी चाहिए. उनमें तीन पालियाँ बांधी जाती हैं. उनमें से पहली पाली का विस्तार और ऊंचाई पांच अंगुल, दूसरी की चार अंगुल और तीसरी की तीन अंगुल रखनी चाहिए. होम करने वाले को सकलीकरण से अपने मन को शुद्ध कर, नयी धोती और चद्दर पहन कर पन्नासन से बैठना चाहिए. होम में मुख्यतः पलाश की लकड़ी होनी चाहिए. यदि पलाश न मिले तो दूधवाले वृक्ष अर्थात् पीपल आदि वृक्षों की लकड़ी (कीड़ा और जीव-जन्तु रहित) होम के लिये लानी चाहिये. उसके साथ श्वेत चन्दन, लाल चन्दन, शमी वृक्ष की लकड़ी भी होम के लिए लानी चाहिए. पत्ते पीपल और पलाश के होने चाहिए. होम में १ सेर दूध, १ सेर घी, और अष्टांग धूप आदि मिलाकर दो सेर वजन की होम सामग्री होनी चाहिए. लकड़ी भी उस-उस कृत्यकारित्व के अनुसार ही अमुक नाप की रखनी चाहिए. जैसे-वध, विद्वेषण, उच्चाटन में आठ अंगुल लंबी ; पौधिक कर्म में नव अंगुल लंबी ; शांति, आकर्षण, वशीकरण, स्तंभन में बारह अंगुल लंबी लानी चाहिए. शांति, पुष्टि आदि शुभ कार्यों में उत्तम द्रव्यसामग्री से प्रसन्नचित्त से होम करना चाहिए और मारण उच्चाटन आदि अशुभ कार्यों में अशुभ द्रव्यों से आक्रोशपूर्वक होम करना चाहिए. जल, चंदन आदि अष्ट द्रव्यों से महामंत्र का जाप करते हुए अग्नि की पूजा करे. पीछे दूध, घी, गुड और साथ में एक लकड़ी को अपने हाथों से होमकुंड में रखे और पीछे अग्नि स्थापन करके सबसे पहले आहुति देते हुए श्लोक बोले. पीछे लकड़ी को आहुति के द्रव्यों के साथ मिलाकर जाप्य मंत्र का उच्चारण करते हुए आहुति दे. इस प्रकार होम की विधि शास्त्रों में बतायी गई है। पांच कलशों की स्थापना करके होमविधि करनी चाहिए, जिससे संपूर्ण मंत्र विधि से मंत्र भली प्रकार साध्य हो सके. अब मंत्र की जपसाधना में दिशा, काल, मुद्रा, पल्लव आदि प्रकार और मंत्र के कृत्यकारित्व के प्रकार संक्षेप में इस प्रकार हैं-[१] शांति, [२] पौष्टिक, [३] वशीकरण, [४] आकर्षण, [५] स्तंभन, [६] मारण, [७] विद्वेषण और उच्चाटन. १. शांति कर्म-पश्चिम दिशा, अर्धरात्रि का समय, ज्ञानमुद्रा, पद्मासन, 'नम:' पल्लव, श्वेत वस्त्र, श्वेत पुष्प, पूरकयोग, स्फटिक मणि की माला, दाहिना हस्त, मध्यमा अंगुली और जलमंडल से करे. २. पौष्टिक कर्म-नैऋत दिशा, प्रात:काल, ज्ञानमुद्रा, स्वस्तिक प्रासन, 'स्वधा' पल्लव, श्वेत वस्त्र, श्वेत पुष्प, पूरक, योग, मोतियों की माला, मध्यमा अंगुली, दाहिना हस्त और जलमंडल से करे. ३. वशीकरण-उत्तरदिशा, प्रातःकाल, कमलमुद्रा, पद्मासन, 'वषट्' पल्लव, लालवस्त्र, लाल पुष्प, पूरक योग, प्रवालमणि की माला, बांया हस्त, अनामिका अंगुली और अग्निमंडल से करे. ४. श्राकर्षण-दक्षिण दिशा, प्रात:काल, अंकुशमुद्रा, दंडासन, 'वौषट्' पल्लव, रक्तवस्त्र, रक्तपुष्प, पूरकयोग, प्रवाल की ___ माला, कनिष्ठिका अंगुली, बांया हस्त, बांया वायु और अग्निमण्डल से करें. ५. स्तम्भन कर्म--पूर्व दिशा, प्रात:काल, शंखमुद्रा, वज्रासन 'ठः ठः' पल्लव, पीतवस्त्र, पीतपुष्प, कुंभक योग, स्वर्ण की माला, कनिष्ठिका अंगुली, दाहिना हाथ, दक्षिणवायु और पृथ्वीमंडल से करे. ६. मारण कर्म-ईशान दिशा, संध्याकाल, वज्रमुद्रा, भद्रासन, 'घे घे' पल्लव, काला वस्त्र, काले पुष्प, रेचक योग, पुत्र जीव मणि की माला, तर्जनी अंगुली, दाहिना हाथ, और वायुमंडल से करें.

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