Book Title: Jain Shastro aur Mantra vidya Author(s): Ambalal P Shah Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 5
________________ इस प्रकार अंगन्यास करके पंचांग रक्षा करनी चाहिये अथवा 'क्षिप ओं स्वाहा' इन बीजाक्षरों से मस्तक, मुख, हृदय, नाभि और पाँव अंगों में सुलटे उलटे क्रम से न्यास करने से पंचांग रक्षा होती है. ४. ओं णमो उवज्झायाणं हो नाभि रक्ष रक्ष स्वाहा । ५. ओ णमो लोए सव्वसाहूणं हः पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा । ५. उपचार -- सकली क्रिया करने के बाद पंचोपचार पूजा के यन्त्र के अधिष्ठाता देव की पूजा नीचे बताई हुई विधि से करनी चाहिए. वे पांच उपचार ये हैं-१ आह्वान, २ स्थापन, ३ संनिधीकरण, ४ पूजन, ५ विसर्जन मुद्रापूर्वक करना चाहिए. उनके मंत्र इस प्रकार हैं आह्वान पूरक प्राणायाम से; स्थापन, याम से करना चाहिये. अंत में इस प्रकार बोलना चाहिये पं० अंबालाल प्रेमचन्द शाह : जैनशास्त्र और मंत्रविद्या : ७७७ १. ओ ह्रीं नमोऽस्तु' २. ओं ह्रीं नमोऽस्तु ३. ओ ह्रीं नमोस्तु ४. श्री ही नमो ५. ओ ह्रीं नमो ओं एहि एहि संवौषट् । (आह्वान ) . तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ( स्थापन ) मम संनिहिता भव भव व (संनिधीकरण) गन्धादीन् गृहाण गृहाण नमः (अष्टयों से पूजन ) स्वस्थानं ग ज ज ( विसर्जन ) संनिधीकरण और पूजन ये तीन कुंभक प्राणायाम से और विसर्जन रेचक प्राणा ६. जप - सामान्य रीति से मंत्र के जाप की संख्या १०८ अथवा १००८ मानी गई है. जप के भी तीन प्रकार हैं- ( १ ) मानस जप, (२) उपांशुजप और (३) वाचिकजप सब मन्त्र मानस जप- - मन में जिह्वा से धीरे से शुद्ध बोलना चाहिये. आह्वानं नैव जानामि न च जानामि पूजनम् । विसर्जनं न जानामि प्रसीद परमेश्वर ! ।। "आताही कियाहीन महीने च यत् कृतम् । क्षमस्व देव ! तत् सर्वं प्रसीद परमेश्वर ! ॥” जाप से मंत्र अपनी शक्ति प्राप्त करता है और मन्त्र- चैतन्य स्फुरित होता है, और होम व पूजा आदि से मन्त्र का स्वामी तृप्त होता है. ७. होम - एक तो स्वयं अग्नि और उसमें यदि पवन की सहायता मिले तो वह क्या नहीं कर सकता. इस प्रकार मन्त्रजाप के पश्चात् होम करने से यथेष्ट फल प्राप्त हो सकता है. *** जाप के समय मंत्र के अन्त में कर्मानुसार पल्लवों का उपयोग होता है, क्योंकि मंत्रों का निवास ही पल्लव में होता है. जाप के समय मंत्र के अन्त में 'नमः' पल्लव और होम के समय 'स्वाहा' पल्लव लगाना चाहिए. Jain Education International मूल मंत्र की जापसंख्या से दशवें भाग का जाप होम के समय में करना चाहिए अर्थात् एक हजार जाप को होम के साथ करें तब १०० संख्या का जाप करना चाहिए. सामान्य जाप पूरा होते ही होम करना चाहिए. होमविधि - होमकुंड तीन प्रकार के होते है- १. चतुष्कोण, २. त्रिकोण, ३. गोल. १. चतुष्कोण - शांति, पौष्टिक, स्तंभन आदि कर्म में. २. त्रिकोण मारण, आकर्षण कर्म में. १. इस रिक्त जगह में जिन देवता की आराधना करनी हो उन देवता का नाम बोलना चाहिये. जैसे पद्मावती की आराधना करनी हो तो "भगवति पद्मावति देवि !” *** *** For Private & Personal Use Only *** * wwwwwwwwwwn www.jainelibrary.orgPage Navigation
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