Book Title: Jain_Satyaprakash 1953 05
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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म:८] પદ્ધશનિકે ૧૦૨ નામ
[१४3 प्रारंभका लगता है । इस लिये पहिली संभावना ही अधिक ठीक प्रतीत होती है । ९६की भी कोई परंपरा रही होगी, जो कविको मिली । १०२की नामावली उन्हें नहीं मिली। इस संबंधमें और किसी प्राचीन ग्रंथमें उल्लेख आता हो या १०२के भेदोके नामबालोंका विशेष विवरण कहीं प्राप्त हो तो प्रकाशमें लानेका अनुरोध है। कई नाम तो इनमें सर्वथा अपरिचितसे लगते हैं, जिनकी परंपरा आगे नहीं चली। आचार्य हरिभद्रसूरिके 'षड्दर्शन समुच्चय' एवं उसकी वृत्तिसे षड्दर्शनियोंके आचार-विचार आदिकी झांकी मिल जाती है। 'सर्वदर्शनसंग्रह' आदि दार्शनिक ग्रंथोंमें कोई नई सूचना मिल सके तो उसे मा प्रकाशमें लाना चाहिये।
यह नामावली साधारणतया लिखी गई प्रतीत होती है । विशेष विचारपूर्ण अन्यथा सभी दर्शनियोंके एक ही समान संख्यावाले १६-१६ या १७-१७ ही भेद हों, यह संभव नहीं । अन्य दर्शनियोंका तो मुझे इतना पता नहीं, पर जैन दर्शनियोंके जो १७ भेद इस सूचीमें लिखे मिले है, वे अधिक संगत एवं विचारपूर्ण नहीं प्रतीत होते ।
उदाहरणार्थ :-दिगंबर और उसके काष्टा और मूला संघका उल्लेख है। पर दिगंबरियोंके अन्य संघ भी उल्लेखनीय थे । इसी प्रकार श्वेताम्बर गच्छोंमेंसे कुछका ही नाम पाया है। शेषको १७की संख्या कायम रखनेके लिये 'वेसधरा सर्वे में समावेष्टित कर लिया है। खैर, मुझे तो जिस रूपमें नाम मिले हैं-तीनों पत्रोंको सामने रखते हुए यहां उपास्थित कर देना है। विशेष विचार एवं ज्ञातव्य अन्य विद्वान प्रकट करें। तीनों पत्रोंकी नामावली भी एकसी नहीं है। इससे सहज ही यह अनुमान होता कि जिसे जो याद रहे लिख लिये गये प्रतीत होता है । नामावली इस प्रकार है
१. जैनदर्शन-१ श्वेताम्बर, २ दिगांबर (दियाकृत), ३ काष्टासंगी, ४ मूलासंगी (मयूरशृंगी), ५ जायलिया (जांगलिया), ६ चउदसिया, ७ पूनमिया (पोरणिया), ८ डगछा, ९ धर्मघोष, १० खरतर, ११ आंचलिया, १२ आगमिया १३ मलधारी (नटावा), १४ भावसार (वैधाया), १५ पूजारा (ऊचहरा), १६ ऊकट (कुटिया), १७ वेषधराः सर्वे (धूर्तकितव)
२. नैयायिकदर्शन-१ भाट (भरज), २ शैव, ३ पाशुपति, ४ कपालिक, ५ घंटाल, ६ पाह्न (पाहू), ७आकट (-ड), ८ केदारपुत्र, ९ नग्न (नग्रड), १० अयाचक, ११ एक भिक्षु (एक चक्षु) (एक भक्षु), १२ घाडीवाहा, १३ आयारी (आयरिय), १४ पतियाणा, १५ मठ पतिया,,१६ चारण (वाइण), १७ कालमुख
३. सांख्यदर्शन-१ भगवंत, २ त्रिदंडिया, ३ स्नातक, ४ चंद्रायणा (णी), ५ मुनिया (मोनीया), ६ गुरिया (गउरिया), ७ कवि, ८ बूडारा (कू, छू-), ८ विग (ठिन), १० गूगलिया, ११ दांभिक, १२ गलतडिया (वहड़िया, गुलद्वाडि), १३
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