Book Title: Jain_Satyaprakash 1953 05
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ : ८ ] સાહ રાજસી રાસકા સાર 1 [ १४१ प्रचुरतासे किया जा रहा था । जलयात्रादिके अनन्तर श्रीकल्याणसागरसूरिजीने जिनबिम्बों की अंजनशलाका - प्रतिष्ठा की । शिखरबद्ध प्रासादमें संभवनाथ प्रभुकी स्थापना की, सन्निकट ही उपाश्रय बनाया । ईश्वर देहरा, रोजकोट-ठाकुरद्वारा, पानी परब और विश्रामस्थान किये गये । सं. १६८२में राजसी साहने मूलनायक चैत्यके पास चौमुख विहार बनवाया। रूपसी वास्तुविद्या विशारद थे | इस शिखरबद्ध विशाल प्रासादके तोरण, गवाक्ष, चौरे इत्यादिको कोरणी अत्यन्त सूक्ष्म और प्रेक्षणीय थी। नाट्य पुत्तलिकाएं कला में उर्वशीको भी मात कर देती थी। जगतीमें आमलसार पंक्ति, पगथिये, द्वार, दिक्पाल, घुम्मट आदिसे चौमंजला प्रासाद सुशोभित था । चारों दिशाओंमें चार • प्रासाद कैलासशिखर जैसे लगते थे । यथास्थान बिम्स्थापनादि महोत्सव सम्पन्न हुआ । सं. १६८२ में राजसी साहने श्रीगौड़ीपार्श्वनाथजीके यात्राके हेतु संघ निकाला । नेता, धारा, मूलराज, सोमा, कर्मसी, रामसी आदि भ्राता भी साथ थे। रथ, गाडी, घोड़े ऊंट आदि पर आरोहण कर प्रमुदित चित्तमें श्री गौड़ीपार्श्वनाथजीकी यात्रा कर सकुशल संघ नवानगर पहुंचा। सं. १६८७ में महादुष्काल पड़ा । वृष्टिका सर्वथा अभाव होनेसे पृथ्वीने एक कण भी अनाज नहीं दिया । लूट खसोट, मुखमरी, हत्याएं, विश्वासघात, परिवारत्याग आदि अनैतिकता और पापका साम्राज्य चहुं ओर छा गया। ऐसे विकट समयसे तेजसीके नन्दन राजसीने दानवीर जगडू साहकी तरह अन्नक्षेत्र खोलकर लोगोंको जीवनदान दिया। इस प्रकार दान देते हुए सं. १६८८का वर्ष लगा और घनघोर वर्षासे सर्वत्र सुकाल हो गया । राजसी साह नवानगरके शान्ति जिनालय में स्नात्र महोत्सवादि पूजाएं सविशेष करवाते । हीरा - रत्नजटित आंगी एवं सतरहभेदा पूजा आदि करते, याचकोंको दान देते हुए राजसी साह सुखपूर्वक काल निर्गमन करने लगे । मेघ मुनिने सं. १६९० मिति पोष वदि ८के दिन राजसी साहका यह रास निर्माण किया । श्रीधर्ममूर्त्तिसूरि पट्टधर आचार्य श्रीकल्याणसागरसूरिके शिष्य वाचक ज्ञानशेखर ने नवानगर में चतुर्मास किया । श्रीशांतिनाथ भगवान ऋद्धि-वृद्धि, सुखसंपत्ति मंगलमाला विस्तार करें। साह राजसीके सम्बन्ध में विशेष अन्वेषण करने पर अंचलगच्छकी मोटी पट्टावली में बहुतसी ऐतिहासिक बातें ज्ञात हुई । लेखविस्तार भयसे यद्यपि उन्हें यहां नहीं दी जा रही हैं पर विशेषार्थियों को उसके पृ. २४८ से ३२४ तक में भिन्न भिन्न प्रसंगों पर जो वृत्तान्त प्रकाशित हैं उन्हें देख लेने की सूचना दे देना आवश्यक समझता हूं । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28