Book Title: Jain_Satyaprakash 1949 05 06
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ટાઈટલના બીજા પાનાનુ’ અનુસધાન ] ३ पं. अंबालालजीने ग्रन्थकी भाषा राजस्थानी बतलाई है पर वास्तवमें वह हिन्दी कहलाने योग्य है। यहाँ एक बातका स्पष्टीकरण कर देना आवश्यक समझता हूं कि 'हेम' नामके कई अन्य जैन कवि हो गये हैं, जिनमें से १ खरतरगच्छीय उपा० लक्ष्मीवल्लभ भी हैं। उनका गृहस्थावस्था का नाम हेमराज था। २ जोधपुर के महाराजा गजसिंह के सम्बन्ध में गुणरूपक व गुणभाषाचित्र ग्रन्थ बनानेवाले एक और हेम कवि का उल्लेख मारवाड राजा के इतिहास में महा० विश्वेश्वरनाथ रेऊने किया है। इस प्रन्थको मैंने देखा नहीं है। एक अन्य जरूरी बातका स्पष्टीकरण कर देवा भी परमावश्यक है । वह यह है कि प्रस्तुत अंचलगच्छीय हेम कविका मुझे जो 'छंदमालिका' ग्रन्थ मिय है उसकी रचना सं १७०६ का भादवा वदी १ को सूरत के पासके हंसपुर स्थान में हुई थी। प्रस्तुत मदनयुद्धका निर्माण १७०६ के भाद्रवा सुदी ६ को वुरानपुर में होने का उल्लेख है। इनमें एक विरोध नजर आता है, क्योंकि पहेले तो भादवा वदी ९ के पश्चात् पर्युषण पर्व आ जाता है उसके ८ दिनों में मदनयुद्ध जैसे ग्रन्थकी रचना चालु रखना संभव कम है। कदाचित् वैसा मान भी ले तो स्थान मिलना तो संभव ही नहीं है । कहां सूरत के पासका हंसपुर और कहां बुरानपुर। चौमासे व विशेषकर पजूसणों में विहार भी संभव नहीं। अतः इसके सम्बन्ध में दो ही कल्पना हो सकती हैं। पहली बुरानपुर हंसपुर का ही अपर नाम हो या एकदम पासके ही किसी स्थानका नाम नुरानपुर हो, जहाँ धर्माराधन कराने के लिये जाना संभव हो । दूसरी कल्पना गुजराती (कार्तिकादि) एवं मारवाडी (चैत्रादि) संवत का अन्तर होने की है। मुझे दूसरी कल्पना ही संगत प्रतीत होती है। बुरानपुर में संभवतः चैत्रादि संवत का प्रचार हा और सूरत तो गुजरातवर्ती होनेसे वहां कार्तिकादि संवत होनेसे चैत्रादि १७०७ होने पर भी गुजरात प्रचलित १७०६ का ही निर्देश किया गया हो । कवि की दोनों रचनाओं का पढनेसे दोनों ग्रन्थो के रचनाके समय आ. कल्याणसागरसूरि के साथ ही थे एसा प्रतीत होता है। छंदमालिका की लेखनप्रशस्ति के अनुसार कवि का पूरा नाम हेमसागर था। १ आचार्य धूव स्मारक ग्रंथ में साराभाईने बंदनमलयागिरि च उपई प्रकाशित को है । उसकी भाषा भी राजस्थानी बतलाई गई है। पर उसे भी हिन्दी कहना ही ज्यादा उचित है। - भ :૩૦) શાંતાક્રુજ તપગચ્છ જૈનસંઘ તરફથી. For Private And Personal Use Only

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