Book Title: Jain_Satyaprakash 1948 10
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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२४ ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[ વર્ષ ૧૪ होता है। याने स्वच्छ रहता है। जिन महाशयों को ऐसे पुण्यशाली कार्य में सहायता प्रदान करने की शुभेच्छा होवे निल लिखित स्थान पर पत्र व्यवहार करें या द्रव्य भेजें।
__ इति शम्। पत्र व्यवहार करने एवं द्रव्य | श्री दीयाणाजी तीर्थोद्वार कमीटी
मेजने का पता श्री मुनोमजो शा. झवेरचंद देवचंदजी कोठारी
शा. चुनीलाल तिलोकचंदजी मु, नीतोडा
शा. देवचंद ताराचंदजी पो. स्टे. सरूपगंज (सिरोहीराज्य)। शा. दोपचंद चेलाजी कनककुशलकी रचनाओंके सम्बन्धमें कतिपय सूचनायें
लेखक : श्रीयुत अगरचन्दजो नाहटा । " जैन सत्य प्रकाश" के गतांक में प्रो. हीरालाल कापडिया का "कनककुशलगणि अने एमनी कृत्तिओ" शीर्षक लेख प्रकाशित हुआ है, उनके सम्बन्धमें कतिपय ज्ञातव्य सूचनायें यहां दी जा रही हैं।
१ हरिश्चंद्र रास वास्तव में कनककुशल का नहीं है पर कनकसुन्दर का है। किसी सूचीकर्ताने अधिक परिचित नाम स्मरण रहनेसे भ्रमवश उसका कर्ता कनककुशल लिख दिया प्रतीत होता है। अतः कनककुशल की रचनाओंका समय सम्बत १६९७ तक न रह कर से. १६५९ तक ही मानना उचित है।
२ 'देवाः प्रभो' स्तोत्रवृत्ति एवं साधारण जिनस्तववृत्ति एक ही है। हमारे यहा साधारण जिनस्तोत्रवृत्तिकी प्रति है उसमें देवाः प्रभो आध पदवाला स्तोत्र ही है। इसी प्रकार "ऋषभ नम्र स्तोत्रवृति" एवं चतुर्विशति जिनस्तोत्रवृत्ति भी एक ही है। मेरे ख्यालसे जिनस्तुतिवृत्ति भी विशाललोचन या स्नातस्यावाली हो संभव है। इस प्रकार ३ कृतियें कम हो जाती हैं। गौडी पार्श्वनाथ छंद व वरदत्त गुण मंजरीबावनी भी संदिग्ध प्रतीत होती है। ज्ञानपंचमी बालावबोध भी प्रति देख के निर्णय करना आवश्यक है। यदि बालावबोध में कर्त्ता का नामोल्लेख न हो तो वह अन्य कर्तृक संभव है। कनककुशलकी सबसे अधिक प्रसिद्ध रचना ज्ञानपंचमी कथा है।
___ पंचमी पर्व स्तुति ( वृत्ति) मूलको १३२ पधको बतलानेसे वह स्तुतिसंज्ञक शायद ही हो, स्तुति संज्ञा प्रायः ४ गाथावाली स्तुतियों के लिये कही जाती है, इसको प्रति बडोदेके कांतिविजयजी भंडार में (नं १७२८) होनेसे देख के निर्णय करलेना आवश्यक है। बडोदा चातुर्मास स्थित मुनियोंका इसकी और ध्यान आकर्षित किया जाता है।
जैन सत्य प्रकाशके गतांक में प्रकाशित केशरिया तीर्थ लावणो बृहत्स्तवनावली भादि में पूर्व प्रकाशित हो चुकी है।
बारह भावना सम्बन्धी अन्य कई ग्रन्थ भी फिर अवलोकन में आये हैं।
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