Book Title: Jain_Satyaprakash 1946 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[વર્ષ ૧૨
अपायविचय ध्यानका लक्षण, पिंडस्थ रूपस्थ वगैरह ध्यानके लक्षण, मंत्राक्षरी ध्यानका विधान, और विद्वेषणादि दूमन्त्रे वगैरह वगैरह ।
९-भ. सोमसेनजीने केवल जैनेतर ग्रन्थोंके श्लोक ही नहीं उठाए मगर उनसे आचार -विचार भी उठा लिये हैं। और न केवल दिगम्बर शास्त्रोंसे ही खिलाफ लिखा, बल्कि जैन मान्यतासे भी उलटा लिख मारा है। कितनेक विरुद्ध-कथन इस प्रकार है।
१. सबेरे शौचमें कुरला करनेवालेकी चारों ओर देव व्यन्तर और ऋषि वगैरह आकर खडे रहते हैं । २-६० ।
२. रविवारको स्नानादिकी मना । २-९७ । ३. ठंडे जलसे स्नानका निषेध और बगैर स्नान तिलकका निषेध । ३-३५ । ४. सात दिन तक स्नान नहीं करनेवाले गृहस्थको शूद्र मानना । २-९७ ।
५. ब्रह्मचर्यावस्थामें कन्याको रजोदर्शन हो, तो उसके माता पिता व भाई वगैरहको नरकप्राप्ति । ११-१९५ । (यानी आबाल ब्रह्मचारिणी रहनेकी मना ।)
६. खाने पीनेके बाद झूठा छोडनेका फरमान । ६-२२५ (स्मृ० र०)। ७. भोजनके समय मंडल करनेका विधान । ६-१६४ । ८. दर्भके सिवय पूजनकी मना । ३-९३, ९५, ९७ । ९. पिप्पलके दरख्तको पूजा-विधि । ९-४५ से ५२।
१०. पुरुषोंका तिसरा विवाह अर्क (आक)के साथ करनेका फरमान । अ० ११२०४, २०५।
११. शूद्रके दर्शनादिमें विचित्र-आज्ञा । ३-१२५, ७-१३०, १३१ ।
१२. ऋतुकालोपसेवन, ऋतुस्नाता स्त्रीके लिए उपसेवनका फरमान । ऋतुस्नानके दिन मैथुन नहीं करनेवाले मर्द व स्त्रीका भविष्य-फल । ८-४८, ४९, ५० । यानी ब्रह्मचर्य पालनकी सख्त मना, और मैथुनक्रियाका उपदेश । व्रत नियम और तिथि मर्यादाके भंगका फरमान।
१३. मैथुन सेवनमें दीपप्रकाशको आवश्यकता व परस्पर ताडना क्रोध रोष और उच्छिष्ट खानेकी छूट बतलाना । अ. ८ श्लो. ३७ । ताम्बूल (पान) खानेकी अनिवार्यता एवं मुख में पान न रखनेवाली स्त्रीसे भोगका निषेध, अ० ८ श्लो, ३८, ३९ । सम्भोगविधि और कामसेवनमंत्रका विधिविधान कथन । अ. ८ श्लो. ४१ से ४५ । इत्यादि न लिखा जाय ऐसा अश्लील वर्णन किया है । २
२ त्रिवर्णाचारका हिंदी अनुवाद करनेवाले पं. पन्नालालजी सोनी और मराठी अनुवाद करनेवालं पं. कलाप्पा भरमाप्पाने भी उन गाथाओंका सच्चा अर्थ लिखनेमें शरम आनेसे अंट
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