Book Title: Jain Satyaprakash 1937 03 SrNo 20
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૧૯૯૩ સમીક્ષાભ્રમાવિષ્કરણુ ૪૬* क्षुल्लिका एटले नानी साध्वी, आ बन्नेनी क्षुल्लक अवस्था क्यां सुधी बे वार आहारोचित गणवी तेने माटे कोई व्यवस्थापक विशेषण आपवानी जरूरत छे आटला माटे ' अवंजणजाएण' शब्द वापरवामां आवेल छे [आने बदले वर्षनी अवधि जगावनार कोई शब्द मुकवो हतो, एवी शंका करवानी जरूरत नथी कारण के ज्यां उमरना वर्षनी चोकस खातरी नहि होय त्यां अव्यवस्था रहेशे, अथवा तो कोई बे क्षुल्लकव्यक्ति उमरसां भले समान होय परन्तु शरीरना बंधारणनो विषमताने अंगे वे बार आहारोचित क्षुल्लक अवस्थाना कानी न्यूनाधिकता जणाववाने माटे पण आ विशेषण आपेल होय तेम कही शकाय । ] ' अवंजणजाएण' शब्द प्राकृत भाषानो छे, अने प्राकृत भाषा लईने पञ्चमीना स्थानमा तृतीया थयेल होवाथी अव्यञ्जन जातात् ' ए प्रमाणे संस्कृतमां थाय छे । आ समास पामेल पद छे, आनो विग्रह नीचे प्रमाणे छे " न जातानि व्यञ्जनानि यस्य सोऽव्यञ्जनजात : तस्मादव्यञ्जन जातात् प्राकृत भाषाना आनुलोम्यथी जातशब्दनो परनिपात करवामां आवेल छे । आ विशेषणने 'क्षुल्लकात् ' ' क्षुल्लिकायाः ' आ बन्नेनी साथे जोडवानुं छे, 'क्षुल्लिकायाः नी साथे अन्वय करती वखते अर्थवशात् लिङ्गविपरिणाम समजवो । अर्थ—जेने व्यञ्जन नथी आव्या एवा नाना साधु साध्वी सिवाय मां.... चोमासु रहेला एकाशन करनार मुनि गृहस्थने त्यां एकवार भात पाणी माटे जाय, अर्थात् उपर्युक्त क्षुल्लक का वार पण आहार लई शके छे । बे 6 उपरमां जे 'व्यञ्जन' शब्द बतावी गया तेनो अर्थ लेखक दाढी मुछ करे छे, जो के व्यञ्जन शब्दनो अर्थ दाढी मुछ पण थाय छे । परन्तु प्रस्तुतमां ते अर्थ लेवाथी, जे ध्येयथी आ विशेषण आपवामां आवेल छे ते पार पडी शकतुं नथी । क्षुल्लक एवा साधु साध्वीनी बे वार आहारोचित क्षुल्लक अवस्थाने जणाववा माटे आ विशेषण आपल छे, अने दाढी मुछ अर्थ करवाथी अर्थ एवो थशे के दाढी मुछ जेने नथी आवेल एवा नाना साधु साध्वी बेवार आहार लई शके । आ अर्थ उचित नथी कारण के केटलाएक पुरुषोने मोटी उमर सुधो पण दाढी मुछ आवतां नथी अने केटलाएकने तो ते पहेलां पण आवी जाय छे, अने स्त्रीजातिने तो दाढी मुछ होतां ज नथी । माटे विशेषणनी व्यवस्थापकता अने ध्येयनी अधिगति माटे ' व्यञ्जन' शब्दनो अर्थ निचे प्रमाणे करवो -" व्यज्यते वारद्वयाहारोचितबाल्यावस्थाया अभाव प्रकटीक्रियतेऽमीभिरिति व्यञ्जनानि बे वार आहारने लायक जे बाल्यावस्था तेनो अभाव जेनाथी जणाय ते व्यञ्जन कहेवाय छे, अर्थात् बे वार आहारने उचित बाल्यावस्थाना अभावने सूचन करनारा जे चिह्नविशेषो ते व्यञ्जन कहेवाय छे । " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only

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