Book Title: Jain Satyaprakash 1935 09 SrNo 03
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिगम्बर शास्त्र कैसे बनें ? २ संघभेद (गतांकसे चालु) लेखक:-मुनि दर्शनविजयजी श्रवण बेलगोलमें चन्द्रगिरि पहा- गौतमगणधर-साक्षात् शिष्य लोहार्य २० डीके उपर चन्द्रगुप्त वस्ती ( पार्श्वनाथ जम्बू-विष्णुदेव-अपराजित-गोवर्धनवस्ती ) को सामने १५ फीट ७ इंच (प्रथम) भद्रबाहु-विशाख-पोष्ठिल-क्ष. लंबा ओर ४ फीट ७ इंच चौडा कन विकार्य -जयनाम-सिद्धार्थ-धृनषेण-बुडी-शिलालेख है। जिसमें खुदा है कि- बुद्धिलादि गुरु एवं महापुरुषोकी परं तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी परामें अष्टांग निमित्तवेदी त्रिकालदर्शी के निर्वाण के बाद भगवान् परमऋषि द्वितीय भद्रबाहुस्वामीने निमित्तोसे बारह २० लोहार्यमुनि भगवान्महावीर स्वामीके हस्तदक्षिीत शिष्य थे, वे ही केवलज्ञान होनेके बाद भगवान् को गोचरी ला देते थे । देखिए पाठ - १ श्री जिनदासगणि महत्तरजी आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की गाथा ४६३ पाणीयत्तं० की चूर्णिमें लिखते हैं कि उप्पन्नणाणस्स उ लोहज्जो आणेति ॥ धन्नो सो लोहज्जो, खंतिखमो पवरलोहसरिसवन्नो ॥ जरस जिणो पत्ताओ, इच्छइ पाणीहिं भोत्तुं जे ॥१॥ किं तत्थ ता ण अडितं वा, भणितं चदेविंदचक्कवट्टी, मंडलिया ईसरा तलवरा य ।। अभिगच्छंति जिणिंद, गोयरवडियं न सो अडइ ॥ १॥ ऋषभदेवजी केसरिमलको पेढो-रतलाम से प्रकाशित, पृष्ट २७१ ॥ २ आचार्यश्री मलयगिरिजी आवश्यक सूत्र-नियुक्तिको गाथा ४६३ पाणीपत्तं० की चूर्णिमें लिखते ह कि उत्पन्नकेवलज्ञानस्य तु लोहार्य आनीतवान् । तथा चोक्तं-उप्पन्नणाणस्स० ॥ -देवचन्द लालभाइ पुस्तकोद्धार फंड-सुरत, से प्रकाशित, पृ. २६८ ॥ For Private And Personal Use Only

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