Book Title: Jain Sanskruti me Sangit ka Sthan Author(s): Nirupama Khandelwal Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf View full book textPage 3
________________ जैन-संस्कृति में संगीत का स्थान १८३ साहित्य-संगीत कला विहीनः । साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः ।।-नीतिशतक महात्मा गाँधी का कथन है कि 'संगीत के बिना तो सारी शिक्षा अधूरी लगती है, चौदह विद्याओं में संगीत एक प्रमुख विद्या मानी गई है । संगीत में जितनी सहजता, सरलता एवं मधुरता है, उतनी अन्य कलाओं में नहीं है । माधुर्य ही संगीत-कला का प्राण है जो जादू की तरह अपना प्रत्यक्ष प्रभाव दिखलाता है। संगीत का सौन्दर्य श्रवण की मधुरता में है। श्रीकृष्ण ने नारद जी से कहा है नाहं वसामि वैकुण्ठे, योगिनां हृदये न च । मद्भक्ता यत्र गायन्ति, तत्र तिष्ठामि नारद । 'मेरा निवास वैकुण्ठ में नहीं है और न मैं योगियों के हृदय में भी रहता हूँ। हे नारद ! मैं तो वहाँ रहता हूँ जहाँ पर मेरे भक्त तन्मय होकर सुमधुर स्वरलहरी से गाते हैं।' संगीत की मधर स्वरलहरी भाषा को भी द्रवित करने में प्रथम है। संगीत हृदय की वह भाषा है जो राग-रागिनियों के माध्यम से व्यक्त होती है । इसका मूल आधार राग है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की टीका में आचार्य विमल गिरि ने 'पद-स्वर-तालवधनात्मक गान्धर्व को गीत कहा है।' गीत शब्द से पूर्व 'सम्' उपसर्ग लगने से संगीत शब्द बना है, जिसका अर्थ सम्यक् प्रकार से लय, ताल और स्वर आदि के नियमों के अनुसार पद्य का गायन है। राग की परिभाषा सभी मूर्धन्य मनीषियों ने प्रायः एक ही प्रकार की है कि 'जो ध्वनि विशेष स्वर, वर्ण से विभूषित हो, जनचित्त को अनुरञ्जन करने वाली हो, वह राग' है।' धर्म और संगीत संगीत मानव के चंचल मन को कीलित करने का एक सुन्दर साधन है। आठ रस मन को और अधिक चंचल बनाने वाले हैं । एक भक्तिरस जिसका स्थायीभाव अनुराग है, जो शान्तरस के निर्वेद नामक स्थायीभाव पर निर्भर है, शान्ति प्रदान करने वाला है। वीतराग भगवान के चिन्तन में संगीत, गायन के द्वारा हम अपने में वीतराग भाव उत्पन्न करने का प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार श्रमण-संस्कृति में संगीत का विशेष महत्व सिद्ध होता है। जैनागमों में संगीत ___ जैन कला एवं दर्शन के मूल स्रोत 'आगम' हैं । इनमें 'गीत' शब्द का विभिन्न दृष्टि से निरूपण हुआ है। यह निरूपण कहीं कला की दृष्टि से है, कहीं विषय प्रतिपादन की दृष्टि से और कभी प्रभाव की दृष्टि से । प्रभाव की दृष्टि से इसका विवेचन विरक्ति के प्रसंग में हुआ है। जिन प्रमुख आगम ग्रन्थों में 'गीत' शब्द की व्युत्पत्ति एवं विवेचन मिलता है, वे ये हैं-जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रश्नव्याकरण, जीवाभिगम, ज्ञातृधर्मकथा, समवायाङ्ग, बृहत्कल्प, स्थानाङ्ग और अनुयोगद्वार । __ कल्पसूत्र के अनुसार भगवान् श्री ऋषभदेव ने प्रजा के हितार्थ, अभ्युदयार्थ एवं जन-जीवन में सुख और शान्ति के संचारार्थ कलाओं का उपदेश दिया। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के अनुसार उन कलाओं में MAMACONDA MEMAIाय: प्रध५ श्रीआनन्दन . mamimaraweimeron Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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