Book Title: Jain Sanskruti me Nari Ka Mahattva Author(s): Dharmashilashreeji Publisher: Z_Sumanmuni_Padmamaharshi_Granth_012027.pdf View full book textPage 7
________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि उसने सामाजिक क्षेत्र में भी नारी को पुरुष के समान ही ये लब्धियां महाकाल की तूफानी आंधी में भी कभी महत्व दिया है। संयम के क्षेत्र में भिक्षुणियाँ ही नहीं धूल-धूसरित न होगी। वस्तुतः जैनागमों में नारी जीवन गृहस्थ उपासिकाएँ भी अनवरत आगे बढ़ी हैं। भगवान् की विविध गाथाएं उन नन्हीं दीप शिखाओं की भांति है महावीर के प्रमुख श्रमणोपासक/गृहस्थों का नामोल्लेख जो युग-युगान्तर तक आलोक की किरणें विकीर्ण करती जहां होता है वहीं प्रमुख उपासिकाएं की भी चर्चाएं आती रहेगी। यह दीप शिखाएं दिव्य स्मृति-मंजूषा में जगमगाती हैं। सुलसा, रेवती, जयंती, मृगावती जैसी नारियां महावीर । रहेगी। वर्तमान परिस्थितियों में यह ज्योति अधिक प्रासंगिक के समवशरण में पुरुषों के समान ही आदर व सम्मानपूर्वक है, क्योंकि आज भी नारी विविध विषमताओं के भयानक बैठती है। भगवती सूत्रानुसार जयंती नामक राजकुमारी दृश्यों से स्वयं को मुक्त नहीं कर पा रही है। यदि हम ने भगवान् महावीर के पास गंभीर तात्विक एवं धार्मिक जैन श्रमणियों और आदर्श श्राविकाओं की सुष्ठु एवं चर्चा की है। तो कोशा वेश्या अपने निवास पर स्थित ज्योतिर्मय परंपरा को एक बार पुनः समय के पटल पर मुनि को सन्मार्ग दिखाती है। स्मरण करें तो आनेवाले कल का चेहरा न केवल कुसुमादपि नारी : श्रद्धा की पर्याय कोमल होगा अपितु उसमें हिमालयादपि दृढ़ता का भी ___ उत्तराध्ययन सूत्र में महारानी कमलावती एक आदर्श समावेश हो जायेगा। श्राविका थी, जिसने राजा इषुकार को सन्मार्ग दिखाया विश्वायतन की नारियाँ है। महारानी चेलना ने अपने हिंसापरायण महाराज श्रेणिक । संसार के इतिहास पर दृष्टिपात किया जाए तो प्रतीत को अहिंसा का मार्ग दिखाया। श्रमणोपासिक सुलसा की होगा कि विश्व में शान्ति के लिए तथा विभिन्न स्तर की अडिग श्रद्धा सतर्कता के विषय में हमें भी विस्मय में रह । शान्त क्रांतियों में नारी की असाधारण भूमिका रही है। जाना पड़ता है। अम्बड़ ने उसकी कई प्रकार से परीक्षा जब भी शासनसूत्र उसके हाथ में आया है, उन्होंने पुरुषों ली। ब्रह्मा, विष्णु, महेश बना, तीर्थंकर का रूप धारण की अपेक्षा अधिक कुशलता, निष्पक्षता एवं ईमानदारी के कर समवशरण की लीला रच डाली, किंतु सुलसा को साथ उसमें अधिक सफलता प्राप्त की है। इन्दौर की रानी आकष्ट न कर सका। सलसा की श्रद्धा देखकर मस्तक अहिल्याबाई, कर्णाटक की रानी चेनम्मा, महाराष्ट्र की श्रद्धावनत हो जाता है। रेवती की भक्ति देवों की भक्ति चांदबीबी सुल्तान, इंग्लैंड की साम्राज्ञी विक्टोरिया, इजराइल का अतिक्रमण करने वाली थी। की गेलडामेयर, श्रीलंका की श्रीमती भंडारनायके, ब्रिटेन की एलिझाबेथ, भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती नारी सहिष्णु है इंदिरा गांधी आदि महानारियाँ इसकी ज्वलंत उदाहरण उपर्युक्त विश्लेषण से यह प्रमाणित हो जाता है कि है। पुरुष शासकों की अपेक्षा स्त्री शासिकाओं की सुझबूझ, जैन दर्शन के मस्तक पर नारी तप शील और दिव्य सौंदर्य करुणापूर्ण दृष्टि, सादगी, सहिष्णुता, मितव्ययिता, के मुकुट की भांति शोभायमान है। उसकी कोमलता में अविलासिता तथा शान्ति स्थापित करने की कार्यक्षमता हिमालय की दृढ़ता और सागर की गंभीरता छिपी हुई है। इत्यादि विशेषताएँ अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुई हैं। सीता, अंजना, द्रौपदी, कौशल्या, सुभद्रा आदि महासतियों माता जीजाबाई की प्रेरक कहानियों से ही बाल शिवाजी का जीवन चरित्र जैन संस्कृति का यशोगान है। इनके छत्रपति शिवाजी बने । साधु मार्ग से च्युत होनेवाले भवदेव संयम, सहिष्णुता एवं विविध आदर्शों को यदि देवदुर्लभ को स्थिर करनेवाली नागिला ही थी। तुलसी से महाकवि सिद्धि कहा जाये तो अतिशयोक्ति न होगी। तुलसीदास बनने के पीछे नारी का ही मर्मस्पर्शी वचन था। १४२ जैन संस्कृति में नारी का महत्व | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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