Book Title: Jain Sahitya me Ram Bhavna
Author(s): Shashirani Agarwal
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 3
________________ जन्म में वह दशरथ-पुत्र हुआ। गुणभद्र के उत्तरपुराण में राम-लक्ष्मण अपने पूर्व जन्म में अन्तरंग मित्र थे, भाई नहीं । लक्ष्मण राजा प्रजापति का पुत्र चन्द्रचूल था तथा राम राजमंत्री का विजय नामक पुत्र था । दुराचरण के कारण राजा ने दोनों को प्राणदण्ड की आज्ञा दी थी, किन्तु मन्त्री उनको एक महाबल नामक साधु के पास ले गया। साधु ने भविष्यवाणी की कि वे वासुदेव तथा बलदेव होंगे, जिसे सुनकर चन्द्रचूल तथा विजय दीक्षा लेकर तप करने लगे और स्वर्ग में क्रमश: मणिचूल तथा स्वर्णचूल देवता बन गए । अगले जन्म में वे लक्ष्मण तथा राम के रूप में प्रकट हुए। पुष्पदन्त द्वारा रचित 'महापुराण' या 'तिट्ठि -महापुरिस गुणालंकार" तीन खण्डों में विभक्त है। द्वितीय खण्ड में ६६ से ७९वीं संधि तक रामायण की कथा है। इसी को जैन मतावलम्बी पउम-चरियं या पद्म पुराण कहते हैं । 'महापुराण' (६५६-६६५ ई०) के राम और लक्ष्मण की पूर्वजन्म-विषयक कथा पूर्ववर्ती रचना गुणभद्र के उत्तरपुराण (नवीं शताब्दी) से पूर्णतः साम्य रखती है। स्वयंभूदेव के पउमचरिय (७००-८०० ई.) में भी राम-लक्ष्मण का भवान्तर कथन जैन मान्यतानुसार ही है । इसमें स्वयंभू का अपने पूर्ववर्ती कवियों से कोई उल्लेख्य पार्थक्य नहीं है। राम-लक्ष्मण के अतिरिक्त हनुमान, रावण आदि प्रमुख पात्रों के भी पूर्व भावों का वर्णन जैन-रामायणों में विस्तार से मिलता है। इस प्रकार विमल सूरि, रविषेण, जिनसेन, गुणभद्र, हरिभद्र आदि सभी जैन कवियों ने पुनर्जन्म और जन्मचक्र का विस्तृत वर्णन किया है। पूर्ववर्ती जन्म-वर्णन में राम-लक्ष्मण का चरित्र भी अत्यन्त सामान्य मनुष्यों की तरह मानवीय दुर्बलताओं से युक्त दिखाया गया है। समस्त जैन-साहित्य में राम-जन्म के पूर्व उनकी माताओं के स्वप्नों को पर्याप्त महत्त्व दिया गया है। पउमचरियं के पच्चीसवें पर्व में इन स्वप्नों का विस्तार से वर्णन है। राम की माता से स्वप्न सुनकर दशरथ ने कहा था कि ये स्वप्न उत्तम पुरुष का जन्म सूचित करते हैं (इमे वरपुरिसं सुन्दरि पुत्तं निवेएन्ति) । पद्म-चरित के अनुमार भी ये स्वप्न 'महापुरुष-वेदी' (महापुरुष का जन्म सूचित करने वाले) थे । गुणभद्र के उत्तरपुराण में भी राम की माता के शुभ स्वप्नों का तथा कैकेयी के पाँच महाफल देने वाले स्वप्नों का उल्लेख किया गया है। इससे भी प्रमाणित होता है कि जैन धर्म में राम को अवतारी रूप में नहीं, महापुरुष के रूप में ही चित्रित किया गया है । अवतारवाद के अभाव के कारण ही जैन रामकथाओं में दशरथ के किसी यज्ञ का निर्देश नहीं मिलता है। जैन ग्रन्थों में पात्रों के पारस्परिक सम्बन्ध भी वाल्मीकि से भिन्न हैं। विमलसूरि के पउमचरियं में सर्वप्रथम भरत और शत्रुघ्न यमल माने गये हैं। परवर्ती कुछ रामकथाओं में भी भरत और शत्रुघ्न सहोदर कहे गये हैं ; उदाहरण के लिए संघदास की वसुदेव हिण्डी और गुणभद्र का उत्तरपुराण देखें। जैन उत्तरपुराण में भरत लक्ष्मण के अनुज माने गये हैं। इसी प्रकार सीता भी पउमचरियं तथा अन्य अधिकांश जैन रामायणों में भूमिजा न होकर जनकात्मजा हैं किन्तु गुणभद्र के उत्तरपुराण और वसुदेव हिण्डी में वे रावणात्मजा हैं । जैन साहित्य के अनुसार जनक की पुत्री में गुण-रूपी धान्य (गुणशस्य) का बाहुल्य था, अतः भूमि की समानता होने के कारण उसका नाम सीता रखा गया —'भूमिसाम्येन सीता' (पद्म-चरित २६/१६६)। जहाँ वाल्मीकि के राम 'स्वदार-निरत' हैं और लक्ष्मण सीता के चरणों तक अपनी दृष्टि सीमित रखते हैं, वहां जैन मान्यता के अनुसार राम के अनेक विवाह हुए थे। पुष्पदन्त की राम-कथा में राम की सीता के अतिरिक्त सात और लक्ष्मण की सोलह रानियां हैं। गुणभद्र के उत्तरपुराण में राम की आठ हजार रानियां बताई गई हैं। विमलसूरि के 'पउमचरियं' में भी राम की आठ हजार पलियों में से सीता, प्रभावती, रतिनिभा तथा श्रीदामा प्रधान हैं । इन दोनों ग्रन्थों में लक्ष्मण की सोलह हजार पत्नियों का (जिनमें से विशल्या आदि आठ पटरानियां हैं) उल्लेख किया गया है। यहां पर राम और लक्ष्मण का चरित्र उन क्षत्रिय राजाओं का है जो युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात् शत्रु-देश की सभी कुमारियों को अपनी पत्नी बना लेते थे। ऐसे स्थलों पर प्रायः राम स्वयं को पीछे रख लक्ष्मण को आगे कर देते हैं; इसी से लक्ष्मण की रानियों की संख्या राम की अपेक्षा बहुत अधिक है । राम के गृहस्थी रूप का वर्णन भी किया गया है। गृहस्थ धर्म सब धर्मों का परम धर्म कहा गया है । (पउमचरियं, २/१३)। गुणभद्र के उत्तरपुराण में राम का १८० पुत्रों के साथ साधना करने का उल्लेख है। १. पउमचरियं, पर्व १०३ २. गुणभद्र : उत्तरपुराण, सन्धि ६७, ६० आदि ३ जैन साहित्य में 'पुराण' प्राचीन कथा और महापुराण' प्राचीन काल की महती कथा का सूचक शब्द है। पुराण में प्रायः एक ही महापुरुष का जीवनांकन होता है, महापुराण में ६३ शलाकापुरुषों का चरित्र-वर्णन होता है । पुष्पदन्त ने इसी विशिष्टता को दर्शाने के लिए अपने ग्रन्थ को 'महापुराण' या 'तिसट्ठि महापरिस गुणालंकार' कहा है। ४. विमल सूरि : पउमरियं, २५/१४ ५. उत्तरपुराण, ७०/१३/६-१० जैन साहित्यानुशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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