Book Title: Jain Sahitya me Ram Bhavna Author(s): Shashirani Agarwal Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf View full book textPage 2
________________ कर के तीर्थ-काल में हुए थे।' राम-कथा के प्रमुख तीन पात्र—राम, लक्ष्मण, रावण-क्रमशः आठवें बलदेव, वासुदेव तथा प्रतिवासुदेव माने जाते हैं। ये तीनों सदैव समकालीन रहते हैं। ध्यान देने योग्य है कि जैन-परम्परा में रावण राम के विपरीत प्रति-बलदेव नहीं, बल्कि लक्ष्मण के विपरीत प्रतिवासुदेव है। इसीलिए जैन-ग्रन्थों में रावण का वध राम द्वारा न होकर लक्ष्मण द्वारा होता है। इसी भांति ब्राह्मण-परम्परा में वासुदेव संज्ञा जहां विष्णु के अवतार कृष्ण और संभवत: राम को दी गई है तथा बलदेव संज्ञा लक्ष्मण की हो सकती है, वहां जैन-परम्परा में इस क्रम को उलट दिया गया है । जैन-ग्रन्थों में राम ही बलदेव हैं और लक्ष्मण वासुदेव । इस नाम-विपर्यय के साथ ही वर्ण-विपर्यय भी हो गया है। फलस्वरूप जैन लक्ष्मण श्याम-वर्ण हैं और राम का 'पद्म' नाम रूढ़ हो गया। जैन-परम्परा में राम पद्म-वर्ण अर्थात् गौर-वर्ण माने गए हैं जबकि ब्राह्मण-परम्परा उन्हें बराबर नील-कमल की तरह श्याम-वर्ण मानती आई है। डॉ० रमेश कुन्तल मेघ के अनुसार वर्ण, प्रेम और कृपा-तीनों दृष्टियों से राम मेघ-धर्मा हो गए हैं। जैन-परम्परा में राम-कथा का सबसे प्राचीन क्रम-बद्ध वर्णन 'पउमचरिय' में मिलता है, जिसके प्रणेता नागिलवंशीय स्थविर आचार्य राहुप्रभ के शिष्य स्थविर श्री विमल सूरि हैं । ईसा से प्रथम शताब्दी पश्चात् इस ग्रन्थ की रचना हुई। पउम-चरिय के आरम्भ में ही कवि का कथन है कि "उस पद्म-चरित को मैं आनुपूर्वी के अनुसार संक्षेप में कहता हूँ जो आचार्यों की परम्परा से चला आ रहा है और नामावली निबद्ध है।"५ ‘णामावलियनिबद्ध' शब्द से प्रतीत होता है कि विमलसूरि के पूर्व जैन-समाज में राम का चरित पूरी तरह विकसित नहीं हो पाया था। यहां एक बार पुनः यह तथ्य उल्लेख्य है कि जिस समय विमलसूरि ने जैन राम-कथा का सविस्तार वर्णन प्रथम बार किया, उनके सामने न केवल जैन साधु-परम्परा में प्रचलित ‘णामावलिय निबद्धं' राम-कथा का रूप था, वरन् पूर्ववर्ती वाल्मीकि रामायण, बौद्ध जातकों और महाभारत के रामोपाख्यान में वणित राम-कथा के रूप भी अवश्य वर्तमान रहे होंगे। किन्तु विमलसूरि और परवर्ती जैन कवियों ने न्यूनाधिक परिवर्तन के साथ ही पूर्ववर्ती राम-कथा को स्वीकार किया। यह परिवर्तन नामों से आरम्भ होता है। जैन राम-काव्यों में राम 'पद्म' हो जाते हैं। उनकी मां का नाम भी कौशल्या नहीं रह जाता। पउम-चरिय के अनुसार पद्म (राम) की माता का नाम अपराजिता था और वह असहस्थल के राजा सुकोशल तथा अमृतप्रभा की पुत्री थी । शुक्ल जैन रामायण में भी पद्म की माता अपराजिता दर्भस्थल के राजा सुकोशल और अमृतप्रभा की पुत्री कही गयी है। गुणभद्र के उत्तरपुराण तथा पुष्पदन्त के महापुराण में पद्म की माता का नाम सुबाला माना गया है। पूर्व-जन्म-विषयक कथाओं के अनुसार कौशल्या पहले अदिति', शतरूपा और कलहा" थीं। राम के पिता का नाम जैन-परम्परा में भी दशरथ है। वाल्मीकीय रामायण, रघुवंश तथा हरिवंशपुराण के अनुसार अज और दशरथ में पिता और पुत्र का सम्बन्ध है किन्तु पउमचरिय (पर्व २१-२२) में दशरथ की जो विस्तृत वंशावली उल्लिखित है, उसके अनुसार अनरण्य के दो पुत्र थे--अनन्तरथ और दशरथ । अनन्तरथ अपने पिता अनरण्य के साथ जिन-दीक्षा ले लेते हैं, जिससे दशरथ को राज्याधिकार मिलता है । मुनिश्री शुक्लजी महाराज की रामायण में दशरथ के पिता का नाम वर्णान्तर होकर अणरन्य हो गया है। जैन धर्म-ग्रन्थों में राम-कथा के प्रधान पात्रों के पूर्वजन्म की कथाओं को अपेक्षाकृत अधिक महत्त्व दिया गया है । पउमचरिउ में राम के तीन पूर्व जन्मों का उल्लेख है। जिसके अनुसार राम क्रमशः वणिक-पुत्र धनदत्त, विद्याधर राजकुमार नयनानन्द तथा राजकुमार श्री चन्द्रकुमार थे। लक्ष्मण किसी पूर्व-जन्म में धनदत्त (राम) का भाई वसुदत्त था; बाद में वह हरिण के रूप में प्रकट हुआ तथा अन्य १. जैन, डा. देवेन्द्रकुमार : अपभ्रश भाषा और साहित्य, पृ०८७ २. दिनकर, रामधारी सिंह : संस्कृति के चार अध्याय, पृ०३७६, पादटिप्पणी २ ३. सिंह, नामवर : मैथिलीशरण गप्त अभिनन्दन ग्रंथ, पृ०६८९ ४. तुलसी : आधुनिक वातायन से, पृ० ३०६ ५. णामावलियनिबद्ध आयरिय परागयं सम्वं । ___ वोच्छामि पउमरियं अहाणु पुग्विं समासेण ॥१/८ ६. प्रेमी, नाथ राम : जैन साहित्य और इतिहास पृ. ६२ ७. विमलमूरि, २२/१०६-७ ८. पं शुक्लचन्द्र महाराज : शुक्ल जैन रामायण, पृ० १५८ १. विभिन्न ग्रन्थों में तपस्या द्वारा अदिति के विष्णु की मां बनने का उल्लेख है-मत्स्यपुराण, म०२४३/६ तथा महाभारत, ३/१३५/३ तथा वाल्मीकीय रामायण (दाक्षिणात्य पाठ) १/२६/१०-१७ १०. पद्मपुराण, उत्तरकाण्ड, अ०२६६ ११. उपरिवत्, अ० १०६ १२. शुक्ल जैन रामायण, पृ० १५८ आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज भभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.Page Navigation
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